
अविनाश भदौरिया
राजस्थान के कोटा में जेके लोन अस्पताल में बच्चों के मरने की संख्या 100 हो गई है। यह संख्या अभी और भी बढ़ सकती है। कोटा की इस घटना ने बिहार के मुजफ्फरपुर और उत्तर प्रदेश में हुई बच्चों की मौत की याद दिला दी है। इन सभी मामलों में मुद्दा लगभग एक जैसा ही है बस फर्क है तो सत्ता में बैठी राजनीतिक पार्टियों का है।
उत्तर प्रदेश में जब मासूम बच्चे दम तोड़ रहे थे तो बीजेपी सरकार के मंत्री संवेदनहीनता दिखा रहे थे और विपक्ष भाषणबाजी करने में लगा था, उसके बाद जब बिहार में गरीब और लाचार लोग अपनी नन्ही सी जान की मौत का तांडव देख रहे थे तो लोग नीतीश कुमार पर हमलावर थे अब राजस्थान में जहां कांग्रेस सत्ता में है वहां बच्चे मर रहे हैं और मुख्यमंत्री बयान दे रहे हैं कि देश भर के अस्पताल में 3-4 मौतें रोज होती हैं, यह नई बात नहीं।

कुलमिलाकर कांग्रेस के अनुसार दिसंबर में मौतें होती रहती हैं, बीजेपी के अनुसार नवम्बर में मौते होती रहती हैं। ऐसे ही अन्य दलों के अनुसार कोई न कोई महिना होगा जब ये मौतें सामान्य लगती होगी। सच तो ये हैं कि हर रोज और हर सरकार में आम जनता के अरमानों की मौत होती है और हमारे हुक्मरानों को ये मौतें तभी दिखती हैं जब वो विपक्ष में हो। इनकी संवेदशीलता तभी हिलोरे मारती है जब इनके पास सत्ता न हो। बस एकबार सत्ता हाथ में आ जाए तो सड़क से लेकर सांसद तक हंगामा करने वाले नेता धृतराष्ट्र बन जाते हैं और जनता इन्हें कीड़ा-मकौड़ा नजर आने लगती है।

बेशर्मी का आलम देखिये कि नागरिकता कानून के खिलाफ पीड़ित लोगों की चिंता करने वाली कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी इस मामले में एक भी ट्वीट करके दुःख भी प्रकट नहीं करती जबकि बीजेपी शासित राज्य में हर एक छोटी-छोटी घटना पर क्रांति करती नजर आती हैं।
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