उत्कर्ष सिन्हा

लोकसभा चुनावो के लिए भले ही अभी सीटों के बंटवारे की कवायद होना बाकी है , मगर गठबंधन के दलों ने अपनी अपनी ताकतवर सीटो की पहचान शुरू कर ली है. सूत्रों की मने तो बिहार और महाराष्ट्र सरीखे राज्यों में यह मामला करीब करीब तय हो चुका है लेकिन सबसे ज्यादा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में अभी फार्म्युले ही गढ़े जा रहे हैं. फिलहाल गठबंधन में समाजवादी पार्टी , कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल एक साथ है मगर मायावती ने अपने पत्ते नहीं खोले है.
इस बीच सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने गठबंधन की चर्चा में हमेशा बड़े दिल का जिक्र किया है, लेकिन उनकी निगाहें भी बसपा की चालों को समझने में लगी हुयी है. इसी संभावना के मद्देनजर अखिलेश ने कांग्रेस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. फिलहाल सूबे की सबसे प्रमुख विपक्षी दल के रूप में समाजवादी पार्टी यूपी में गठबंधन की ड्राईविंग सीट नहीं छोड़ना चाहती है.

अखिलेश यादव एक तरफ गठबंधन के अटूट होने की बात करते हैं और साथ ही यह भी कह देते हैं कि उनकी पार्टी गठबंधन में सीट मांग नहीं रही बल्कि सीट दे रही है. इशारा बहुत साफ़ है यूपी में अखिलेश इस गठबंधन के कैप्टन बने रहना चाहते हैं और वे कांग्रेस को लगातार ये एहसास दिलाते भी रह रहे हैं.
कांग्रेस पर दवाब बनाये रखने की रणनीति के चलते ही अखिलेश यादव ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ में विधान सभा में प्रत्याशियों का ऐलान भी कर दिया, हालाकि कांग्रेस और सपा – दोनों पार्टियों के बड़े नेता यह भी कह रहे हैं कि इन राज्यों में भी गठबंधन मजबूत है और सीटों पर समझौता हो ही जायेगा.लेकिन सपा के चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद अब ये सवाल तो खड़ा हो ही गया है कि क्या INDIA गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए है या फिर विधान सभा चुनावो में भी यह काम करेगा ?
दूसरी तरफ यह खबरे भी आने लगाती हैं कि कांग्रेस का एक खेमा मायावती को अपने साथ लेना चाहती है , ऐसी खबरें अखिलेश यादव के मन में यह शंका जरुर जगती हैं कि यूपी की अस्सी में से कितनी सीटें उसके खाते में आएँगी ?
समाजवादी पार्टी के लिहाज से यह शंका जायज भी है. बसपा की गैरमौजूदगी में वह करीब 60 सीटों पर लड़ सकती है लेकिन बसपा के आने के बाद उसके खाते में इसकी आधी यानी 30 सीटें ही आएँगी. ऐसा होने के बाद आने वाले विधानसभा चुनावो में सपा खुद को किस तरह प्रमुख विपक्षी पार्टी का दावा कर पाएगी ?
दबाव की राजनीति को अपने हक़ में रखने के लिए एक तरफ तो तीन राज्यों में सपा ने विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी और दूसरी तरफ 50 से ज्यादा सीटों पर यूपी में अपने उम्मीदवारों को हरी झंडी देने की कवायद भी शुरू कर दी है. वे लखनऊ से बाहर दूसरे जिलों में दौरे कर रहे हैं और लखनऊ में होने के वक्त अपने नेताओं के साथ लम्बी बैठके भी कर रहे हैं.
महिला आरक्षण बिल के मामले में कांग्रेस भी खुद को ओबीसी और जातीय जनगणना के पक्ष में खड़ा कर सपा के वोट बैंक को ही खुद के पाले में लाने की कवायद में शामिल हो गयी है. गठबंधन के लिहाज से तो यह एक अच्छा तालमेल है मगर आगे की राजनीती में सपा और कांग्रेस के बीच ओबीसी और मुस्लिम वोटो को ले कर आमना सामना होना तय हो जायेगा.
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ओबीसी और मुस्लमान हमेशा से सपा की ताकत रहे हैं और अगर अखिलेश यूपी में कम सीटो पर लड़ते हैं तो निश्चित रूप से इस वोट ब्लाक में कांग्रेस और आरएलडी के प्रति एक झुकाव होना असंभव बात भी नहीं होगी. इसीलिए अखिलेश यादव राष्ट्रीय लोकदल और कांग्रेस को उतना ही स्पेस देने के मूड में है जितने में खुद उनकी सियासी जमीन पर आंच नहीं आये.
आगामी विधानसभा चुनावो में तीन राज्यों में अपने उम्मीदवार उतारने के पीछे भी अखिलेश की मंशा गेंद को कांग्रेस के पाले में डालने की है. अब यदि कांग्रेस इन राज्यों में सपा को कुछ सीटें नहीं देती तो फिर गठबंधन में बड़ा दिल दिखने की अखिलेश की बात कांग्रेस के लिए एक बड़ा तंज बन जाएगा.
सियासत की शतरंज में शह और मात का खेल हमेशा आमने सामने नहीं होता बल्कि अपने पाले में भी चलता रहता है. इस साल के आखिर में कांग्रेस की सियासी जमीन कितनी मजबूत हो रही है इसका फैसला तो पांच राज्यों के विधानसभा चुनावो के नतीजे ही बता देंगे और उसके बाद ही यूपी में साझेदारी की असल तस्वीर सामने आएगी. जाहिर है इन दबाव वाली चालों के जरिये अखिलेश यादव INDIA गंठबंधन में यूपी की ड्राईविंग सीट की कमान को अपने हांथो में रखना चाहते हैं.
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