जुबिली स्पेशल डेस्क
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में बनी महायुति सरकार को 11 महीने पूरे हो चुके हैं, लेकिन यह गठबंधन शुरुआत से ही आंतरिक टकरावों से जूझता रहा है।
लगभग हर महीने किसी न किसी विवाद ने सरकार की मुश्किलें बढ़ाई हैं। सबसे बड़ा सिरदर्द बीजेपी के दो सहयोगी दल एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी साबित हो रहे हैं। डिप्टी सीएम शिंदे और पवार के बीच अक्सर टकराव की खबरें सामने आती रही हैं, जिससे फडणवीस की चुनौतियां और बढ़ गई हैं।
एनसीपी के मंत्रियों पर लगातार आरोप
बीते महीनों में एनसीपी के कई मंत्री विवादों में फंसे हैं।धनंजय मुंडे को बीड जिले के सरपंच हत्याकांड में उनके करीबी के नाम आने के बाद इस्तीफा देना पड़ा।
कृषि मंत्री माणिकराव कोकाटे विधानसभा सत्र के दौरान ताश खेलते वीडियो में दिखे, जिसके बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा।
अब अजीत पवार के बेटे पार्थ पवार पर पुणे में जमीन घोटाले के आरोप लगने से नया राजनीतिक तूफ़ान खड़ा हो गया है।
विश्लेषकों का कहना है कि शिवसेना के मंत्रियों पर भी आरोप लगे, लेकिन एनसीपी के मामलों ने बीजेपी को ज्यादा राजनीतिक नुकसान पहुंचाया है।

पुणे घोटाले से बढ़ा दबाव
पार्थ पवार पर लगे जमीन घोटाले के आरोपों ने अजीत पवार को सीधा कटघरे में खड़ा कर दिया है। पहले से ही उन पर 70,000 करोड़ रुपये के सिंचाई घोटाले के आरोप रहे हैं।
अब बेटे पर लगे नए आरोपों से न सिर्फ एनसीपी की छवि प्रभावित हुई है, बल्कि पुणे नगरपालिका चुनावों में बीजेपी-एनसीपी गठबंधन के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं।
मुख्यमंत्री फडणवीस ने इस मामले की जांच के लिए समिति गठित की है, जिसे बीजेपी की पारदर्शिता दिखाने की रणनीति माना जा रहा है।
बीजेपी की दोहरी चुनौती
बीजेपी को अपने दोनों सहयोगियों एनसीपी और शिवसेना — के विवादों का खामियाजा उठाना पड़ रहा है।
एक ओर वह स्थानीय चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है, वहीं दूसरी ओर गठबंधन की मजबूरी में उसे बार-बार अपने सहयोगियों का बचाव करना पड़ रहा है।राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, पुणे का यह घोटाला चुनावी एजेंडे में बड़ा मुद्दा बन सकता है। ऐसे में बीजेपी को एक ओर पारदर्शिता की छवि बनाए रखनी होगी और दूसरी ओर अपने गठबंधन की एकता भी बचाए रखनी होगी।
11 महीने पूरे करते-करते महायुति सरकार आंतरिक मतभेदों, भ्रष्टाचार के आरोपों और साख के संकट से जूझ रही है। इस स्थिति में मुख्यमंत्री फडणवीस के लिए सत्ता संभालना जितना चुनौतीपूर्ण था, अब उतना ही जटिल भी होता जा रहा है।
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