जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक दिल दहला देने वाले यौन उत्पीड़न के मामले में सख्त रुख अपनाते हुए आरोपी डॉक्टर की सजा को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि “आदमी शराब पीने के बाद जानवर हो जाता है” और इस तरह की घिनौनी हरकत के लिए कोई राहत नहीं दी जा सकती।
यह मामला उत्तराखंड के हल्द्वानी से जुड़ा है, जहां एक जाने-माने कार्डियोलॉजिस्ट ने कथित रूप से अपनी 7 वर्षीय बेटी का यौन उत्पीड़न किया।
क्या है मामला?
-
यह घटना 23 मार्च 2018 की है, जब आरोपी डॉक्टर अपनी बेटी को हल्द्वानी लेकर गया।
-
30 मार्च को उसने अपनी पत्नी को फोन करके बच्ची को वापस ले जाने को कहा।
-
जब बच्ची अपनी मां के पास लौटी, तो उसने खुलासा किया कि पिता ने उसे गलत तरीके से छुआ।
-
मां ने तुरंत FIR दर्ज कराई और मामला कोर्ट पहुंचा।
डॉक्टर की तरफ से क्या दलील दी गई?
-
वकील ने कहा कि डॉक्टर ने यह हरकत शराब के नशे में की थी।
-
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि बच्ची से गवाही सिखाई गई हो सकती है।
-
साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में 12 लाख मामले लंबित हैं, इसलिए सुनवाई में देरी हो सकती है, और सुप्रीम कोर्ट को दखल देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने डॉक्टर की याचिका खारिज करते हुए कहा:
“जिसने अपनी बच्ची के साथ यह किया, वह किसी भी राहत का हकदार नहीं है।”
“बच्ची खुद अपने पिता के खिलाफ क्यों बोलेगी? वह मासूम है, उसकी गवाही स्पष्ट और सच्ची है।”
“आदमी शराब पीने के बाद जानवर बन जाता है। हमें यह नहीं कहना चाहिए, लेकिन सच्चाई यही है।”
कोर्ट ने साफ किया कि यह अपराध गंभीर और अमानवीय है, और आरोपी को दी गई सजा पूरी तरह जायज़ है।
मां का बयान और वर्तमान स्थिति
-
पीड़िता की मां ने कोर्ट को बताया कि वह अब वाराणसी में रहती है और अपने पति से संबंध पूर्णतः तोड़ चुकी है।
-
आरोपी डॉक्टर हल्द्वानी में एक नर्सिंग होम चलाता है।
ये भी पढ़ें-उत्तर प्रदेश छात्रवृत्ति योजना में बड़ा बदलाव, जानें क्या
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक सशक्त संदेश है कि बच्चों के खिलाफ अपराधों में किसी भी तरह की ढील या माफ़ी नहीं दी जाएगी, चाहे आरोपी की सामाजिक स्थिति कितनी ही ऊँची क्यों न हो। यह फैसला विशेष रूप से उन मामलों में प्रेरणास्रोत है जहां परिवार के भीतर ही अपराध होते हैं और पीड़ितों को न्याय की उम्मीद धुंधली लगती है।