
स्पेशल डेस्क
आज पूरी दुनिया ‘वर्ल्ड वाटर डे’ यानी विश्व जल दिवस मना रहा है। क्या आपने ने कल्पना की है कि पानी के बिना जीवन कैसा होगा। दरअसल जल के बिना जीवन होगा ही नहीं। इसीलिए कहते हैं जल ही जीवन है। लेकिन दुनियभर में जिस तरह से पानी की बर्बादी हो रही है, उसके कारण भविष्य के लिए कई खतरे हमारे सामने खड़े हो गए हैं।
‘बिनीथ द सरफेस: द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड वॉटर 2019’ के ताजा सर्वे के अनुसार,
भारत अपने इतिहास के अब तक के सबसे खतरनाक पानी के संकट से जूझ रहा है। देश का 50% हिस्सा सूखे की चपेट में है। दुनिया में 400 करोड़ लोग पानी की तंगी झेल रहे हैं, इनमें 100 करोड़ तो भारत में ही हैं। पानी के सही इस्तेमाल से ही इस संकट से उबर सकते हैं।
आपको बता दें कि लगातार उपयोग किए जाने वाले कुछ उत्पादों में बड़ी संख्या में ‘वॉटर फुटप्रिंट’ पाया जाता है, जिसके वजह काफी मात्रा में पानी बर्बाद हो जाता है। अगर जन्द इस पर ध्यान न दिया गया तो भविष्य में गंभीर जल जुझना पड़ सकता है।
जाने वॉटर फुटप्रिंट से कैसे बर्बाद होता है जल
- आपकी सुबह की एक कप कॉफी में 200 मिलीलीटर पानी शामिल होता है, इसके बावजूद ग्राउंड कॉफी को बनने में 140 लीटर पानी लगता है।
- गेहूं में 22% भूमिगत जल खर्च होता है। इसमें 1,827 लीटर प्रति किलोग्राम वैश्विक औसत वॉटर फुट प्रिंट होता है, हालांकि ये क्षेत्र के हिसाब से बदलता रहता है। उदाहरण के लिएफ्रांस के गेहूं की बनी 300 ग्राम ब्रेड में 155 लीटर वॉटर फुटप्रिंट होता है जो कि वैश्विक औसत से काफी कम है। भारत में गेहूं का औसत वॉटर फुटप्रिंट 1,654 लीटर प्रति किलोग्राम होता है (जो कि भूगोल और मौसम के हिसाब से बदलता है)।
- चावल में वैश्विक सिंचाई का 40 फीसदी हिस्सा होता है और वैश्विक भूमिगत जल का 17%खर्च होता है और इसका औसत वॉटर फुटप्रिंट 2,500 लीटर पानी प्रति किलोग्राम है। भारत में औसत वॉटर फुटप्रिंट 2,800 लीटर प्रति किलोग्राम है जो कि भूगोल और मौसम के हिसाब से बदलता है।
वी.के. माधवन, वॉटरएड इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का कहना है –
“साफ पानी तक पहुंच की कमी ने वंचित और गरीब समुदाय को गरीबी के और बड़े कुचक्र में फंसा दिया है। रोजमर्रा की जरूरत के लिए पानी तक पहुंच के इनके संघर्ष ने इन्हें शिक्षा, सेहत और आजीविका से जुड़े मौकों का पूरा उपयोग करने से वंचित कर दिया है।
9 में से 1 व्यक्ति के घर के पास साफ पानी उपलब्ध नहीं
दुनिया की दो तिहाई जनसंख्या यानी 400 करोड़ लोग पानी की कमी वाले इलाके में रह रहे हैं, जहां साल के कमसे कम एक अंतराल में मांग, आपूर्ति से ज्यादा बढ़ जाती है। यह आंकड़ा 2050 तक 500 करोड़ तक पहुंच सकता है। वर्तमान में दुनिया भर में 9 में से 1 व्यक्ति के घर के पास साफ पानी उपलब्ध नहीं है।
भारत में यह आंकड़ा और चौंकाने वाला है
विश्व स्तर पर निकाले जाने वाले भूमिगत जल का एक चौथाई हिस्सा भारत के खाते में जाता है जो कि चीन और अमेरिका के हिस्से के जोड़ से ज्यादा है। इसके साथ ही भारत सबसे ज्यादा भूमिगत जल का इस्तेमाल करता है जो कि वैश्विक कुल का 24%है।
- भारत में भूमिगत जल के इस्तेमाल का दर 2000 से 2010 के बीच 23%बढ़ गया है।
- भारत भूमिगत जल का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है ; वैश्विक कुल का 12%
- 75% घरों केभीतर पीने का पानी उपलब्ध नहीं है।
- पानी की गुणवत्ता की सूची में 122 देशो में भारत 120वें स्थान पर है।
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