जुबिली न्यूज डेस्क
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर जातीय समीकरण तेज़ी से करवट ले रहे हैं। विधानसभा के शीतकालीन सत्र के बीच 23 दिसंबर 2025 की शाम लखनऊ में एक ऐसी बैठक हुई, जिसने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी। बाहर से इसे ‘सहभोज’ कहा गया, लेकिन अंदर जो चर्चा हुई, वह ब्राह्मण समाज की राजनीतिक भूमिका, उपेक्षा और भविष्य की रणनीति पर केंद्रित थी।

कुशीनगर से भाजपा विधायक पी.एन. पाठक (पंचानंद पाठक) के सरकारी आवास पर हुई इस बैठक में पूर्वांचल और बुंदेलखंड के 35 से 40 ब्राह्मण विधायक और एमएलसी शामिल हुए। दिलचस्प बात यह रही कि यह जुटान केवल भाजपा तक सीमित नहीं रही, बल्कि अन्य दलों से जुड़े ब्राह्मण नेता भी इसमें पहुंचे।
सहभोज या सियासी संदेश?
बैठक के दौरान विधायकों को लिट्टी-चोखा और फलाहार परोसा गया, लेकिन चर्चा का एजेंडा बेहद गंभीर था। सूत्रों के मुताबिक, विधायकों ने खुलकर कहा कि ठाकुर, पिछड़ा और दलित वर्ग जातिगत राजनीति के जरिए सशक्त हुए, लेकिन ब्राह्मण समाज को लगातार हाशिये पर धकेला जा रहा है।
यूपी विधानसभा में कुल 52 ब्राह्मण विधायक हैं, जिनमें से 46 भाजपा से जुड़े हैं। ऐसे में इस वर्ग की संगठित आवाज अगर तेज होती है, तो यह योगी सरकार और भाजपा नेतृत्व के लिए नई सियासी चुनौती बन सकती है।
बैठक में उठे मुख्य मुद्दे
इनसाइड स्टोरी के मुताबिक, बैठक में सिर्फ नाराज़गी ही नहीं, बल्कि ठोस रणनीति पर भी चर्चा हुई।
🔹 पीड़ितों को आर्थिक सहायता
यदि प्रदेश में कहीं भी ब्राह्मण समाज के किसी व्यक्ति के साथ हत्या, अत्याचार या गंभीर अन्याय होता है, तो पीड़ित परिवार को संगठित तरीके से आर्थिक और सामाजिक मदद देने पर सहमति बनी।
🔹 ‘फंड बैंक’ बनाने का प्रस्ताव
समाज के गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की सहायता के लिए एक फंड बैंक बनाने का निर्णय लिया गया। इसमें
-
ब्यूरोक्रेट्स
-
रिटायर्ड जज
-
वकील
-
डॉक्टर
-
समाज के प्रभावशाली लोग
को जोड़ा जाएगा।
🔹 राजनीतिक हिस्सेदारी की मांग
विधायकों ने साफ कहा कि संख्या के अनुपात में राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। ब्राह्मण समाज को सिर्फ चुनाव के समय याद करना अब स्वीकार नहीं होगा।
🔹 मजबूत नेतृत्व उभारने पर जोर
बैठक में यह भी सहमति बनी कि ब्राह्मण समाज का एक बड़ा और प्रभावी चेहरा उभारा जाए, जो प्रदेश स्तर पर समाज की आवाज बने।
हालिया घटनाओं का जिक्र क्यों अहम?
बैठक में लखनऊ, कानपुर, भदोही, गोंडा, बहराइच और प्रयागपुर जैसी जगहों की उन घटनाओं का जिक्र हुआ, जहां ब्राह्मण समाज के साथ कथित अन्याय की बातें सामने आई थीं। विधायकों ने तय किया कि आगे से ऐसे मामलों में चुप नहीं रहा जाएगा और पीड़ित परिवारों के साथ खुलकर खड़ा हुआ जाएगा।
बैठक में कौन-कौन रहा शामिल?
इस सियासी जुटान में कई प्रभावशाली चेहरे मौजूद थे, जिनमें प्रमुख रूप से—
-
पी.एन. पाठक (कुशीनगर विधायक, आयोजक)
-
रत्नाकर मिश्र (मिर्जापुर विधायक)
-
प्रकाश द्विवेदी (बांदा विधायक)
-
रमेश मिश्र (बदलापुर विधायक)
-
शलभमणि त्रिपाठी (देवरिया विधायक)
-
विनय द्विवेदी (मेहनौन विधायक)
-
प्रेम नारायण पांडेय (तरबगंज, गोंडा विधायक)
-
साकेत मिश्र, बाबूलाल तिवारी, धर्मेंद्र सिंह भूमिहार (एमएलसी)
सहित कई अन्य विधायक और नेता मौजूद रहे।
केशव मौर्य का बयान: डैमेज कंट्रोल?
बैठक के सियासी मायनों पर प्रतिक्रिया देते हुए डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि इसे जातिगत चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा,“सत्र के दौरान विधायक मिलते रहते हैं। इसे कुटुंब बैठक, स्नेह मिलन या ब्राह्मण-क्षत्रिय बैठक के रूप में देखना गलत है।”हालांकि, सियासी जानकार मानते हैं कि यह बयान डैमेज कंट्रोल की कोशिश है।
सियासी मायने: ठाकुर और कुर्मी के बाद ब्राह्मण?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह बैठक किसी संयोग का नतीजा नहीं है।
-
मानसून सत्र में ठाकुर विधायकों की ‘कुटुंब परिवार’ बैठक
-
उसके बाद कुर्मी समाज का कार्यक्रम
-
और अब ब्राह्मण गोलबंदी
यह साफ संकेत देता है कि ऊपरी जातियों में भी असंतोष बढ़ रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, जनवरी 2026 में अगली बैठक प्रस्तावित है और इसके बाद राज्यव्यापी सम्मेलन की तैयारी चल रही है।
2027 चुनाव से पहले बड़ा संकेत?
ब्राह्मण समाज यूपी की राजनीति में हमेशा निर्णायक वोट बैंक रहा है। प्रदेश की आबादी में इसकी हिस्सेदारी करीब 12 से 14 प्रतिशत मानी जाती है और शहरी व ग्रामीण दोनों इलाकों में इसका प्रभाव है।
भाजपा ने 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में ब्राह्मणों के मजबूत समर्थन के दम पर सत्ता हासिल की थी। अब अगर इस वर्ग में नाराज़गी गहराती है, तो इसका असर 2027 विधानसभा चुनाव में दिख सकता है।
विपक्ष को मिला मौका?
समाजवादी पार्टी समेत विपक्षी दल इस हलचल को भुनाने की कोशिश में जुट गए हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि अगर भाजपा ने समय रहते असंतोष को नहीं संभाला, तो ब्राह्मण समाज का यह आंदोलन विपक्ष के लिए बड़ा हथियार बन सकता है।
ये भी पढ़ें-अरावली विवाद: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्यों मचा बवाल, क्या राजस्थान की पहाड़ियां खतरे में हैं?
लखनऊ में हुआ यह ‘सहभोज’ अब केवल भोज नहीं रहा। यह ब्राह्मण समाज की राजनीतिक चेतना और दबाव राजनीति की शुरुआत माना जा रहा है। अब देखना यह है कि भाजपा इस उभरती गोलबंदी को कैसे हैंडल करती है और क्या ब्राह्मण समाज एक बार फिर यूपी की राजनीति में नई शक्ति बनकर उभरता है।
Jubilee Post | जुबिली पोस्ट News & Information Portal
