स्मिता जैन “रेवा”
देखा जाए तो मनुष्य को वर्टेब्रेट या कशेरुकी समूह में जीवविज्ञान विभाजन में रखा गया है क्योंकि उसके पास रीढ़ होती है ताकि वह खड़ा हो सके सीधा तन के चल सके, बैठ सके और अपने अन्य काम सुविधा के साथ कर सके लेकिन आजकल देखा जा रहा है कि हमारी रीढ तो है लेकिन फिर भी हम रीढ़ विहीन होते जा रहे हैं क्योंकि हमारा पेट बड़ा होता जा रहा है और उस पेट में बस खाते जा रहे हैं,रखते जा रहे हैं जिसमें चाहे खाना हो या चाहे रुपया पैसा संपत्ति हो ।
आज हमारे समाज को भी हमने रीढ़ विहीन कर दिया है। हर एक क्षेत्र देखें जैसे की सबसे आवश्यक शिक्षा जो की पूरी तरह से रीढ़ विहीन हो गई है आज सबसे ज्यादा मेहनत से कमाए हुए रुपया माता-पिता का खर्च हो रहा है शिक्षा पर लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं मात्र एक डिग्री सर्टिफिकेट के अलावा क्योंकि हमारे बच्चों को ना तो ढंग से लिखना आता है ,ना ही बोलना और ना पढ़ना ।
दूसरा रीढ़ विहीन पत्रकारिता जिसमें वही लिखा जाता है और वही बोला जाता है जिससे आमदनी हो और पूंजी इकट्ठी हो और हम लग्जरी खरीद सके कई सारे प्लॉट ,मकान खरीद सके और बैंक बैलेंस मजबूत कर सकें।
हमारा खाद्यान्न उत्पादन जो की पूरी तरह है रीड विहीन हो चुका है क्योंकि उसमें जहरीले तत्वों को डाला जा रहा है उत्पादन के समय इस जहरीलेपन से लोगों के पेट नहीं भरते तो दवाई इंजेक्शन के द्वारा फल सब्जियों को अनाजों को प्रदूषित किया जा रहा है और आम जनता को डाक्टरों, कैमिस्ट के द्वारा लुटने और नोचने के लिए छोड़ा जा रहा है।

सबसे अधिक सेवा का भाव रखने वाला क्षेत्र चिकित्सा क्षेत्र जो की महान महान विभूतियां के द्वारा संचालित होता है वह तो जैसे पूरी तरह से रीढ़ विहीन हो गया है। यह भूल ही गया है कि उसका चयन आम जनता की निस्वार्थसेव करनेक्क के लिए किया जाता है।उसको सिर्फ और सिर्फ रूपयों से अपना पेट भरना है ताकि वह मल्टी स्टोरी हॉस्पिटल बना सके। एक शहर के अलावा कई शहरों में मल्टी लेवल चैन बना सके। भले ही आम जनता मरती है तो मरती रहे ।अंगों की चोरी , नकली दवाई इंजेक्शन, घटिया उपकरणऔर भी न जाने कितने गैरकानूनी काम। डॉक्टर को शायद फरिश्ता कहा जाता है इस धरती का लेकिन वह तो सबसे बड़ा राक्षस बन चुका है जो की शराफत का चोला ओढ़े हुए हैं ।
एक और तंत्र जो कि हमारे समाज की धुरी कहलाता है जो ना तो राजनीति है और न ही प्रशासनि है लेकिन आम जनता पर उसकी बहुत तेज पकड़ है बह हैं हमारे वैराग्य और ब्रह्मचारी धार्मिक गुरु और संतसमाज जो की देश का कर्णधार बनने का दावा करता है कि वह चरित्र और नैतिकता, संस्कृति को बढ़ावा देने और बचाने में अपना अमूल्य योगदान देता है। सारा समाज जानता है कि आज वह कितना ज्यादा चरित्रहीन और अनैतिक हो गया है ।यह किसी से छुपा नहीं है क्योंकि उनको भी सत्ता और संसाधनो के मोह ने जकड़ लिया है और विलासिता पूर्ण ऐसा जीवन देखकर तो अच्छे खासे गृहस्थ जीवन वाले लोग भी शरमा जातें हैं ।
देश का इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने वाला इंजीनियर और ठेकेदार जो की अरबों खरबों की ठेके लेते हैं और कुछ ही समय में उनके निर्माण टूट जाते हैं धराशाही हो जाते हैं क्योंकि उनमें अनंत कमीशन खोरी की जाती है ताकि हमारे सामान्य नेताओं से लेकर मजबूत प्रशासन के अधिकारियों को पेट भर के खजाना लुटाया जा सके यहां भी आम जनता मरती है तो मारती रहे उसे क्या ?
नेता कंपनियों से भी लेते है प्रशासनिक अधिकारी और कर्मचारी जिनका उद्देश्य एकमात्र आमदनी करना है क्योंकि उन्होंने बड़ी संघर्षों से पढ़ाई की है और नौकरी पाई है ताकि वह अपने लिए और अपने कई पीढियां के लिए रूपयों को इकट्ठा कर सके और लार्जन देन लाइफ को जी सके और अपना जीवन पूरी लग्जरी का उपयोग कर सके जो कि नित्य नए रूप में रोज आती है इनका तो जैसे पेट ही नहीं भरता आम जनता से भी गिद्ध बनकर नोचते है और नेताओं कंपनियों से भी लेते हैं।
सबसे ज्यादा रीढ़ विहीन तो हमारा लोकतंत्र और उससे जुड़ी संस्थाएं एवं व्यक्ति नेताजी से लेकर छूटभैया नेता भी आज लाखों करोड़ों अरबों खरबों रुपए का मालिक है। कुछ लोग तो अकूत संपत्ति की गिनी ही नहीं जा सकती हैं इसके मालिक बने फिरते हैं क्योंकि उसने चुनाव जीतने के लिए कुछ लाख करोड रुपए खर्च करें लेकिन वह उसे हजारों लाखों गुना बसूलना चाहता है । लेकिन यह महाशय आते हैं कि हम देश का विकास करेंगे आम जनता की समस्याओं को हल करेंगे किंतु वह देश की सेवा जो कर रहे है मुफ्त में थोड़ी करेंगे क्योंकि उसका पेट सबसे बड़ा है आखिर वह प्रशासनिक अधिकारी और नेताजी जो है ।अगर वह इतनी गैर कानूनी रूप से कमाई नहीं करेगा तो उसकी समाज में वैल्यू ही क्या हो जाएगी ???
सोचिए समाज का हर एक मजबूत और सहायक तंत्र जब रीढ़ विहीन हो चुका है तो हम रीढ़ विहीन भविष्य की ही कल्पना करेंगे और आज जो अरबों खरबों रुपए इकट्ठे करके रखे गए हैं वह अपनी रीढ़ विहीन पीढियां में सौंप जाएंगे ताकि आने वाली और रीढ़विहीन संतानों को सुरक्षित रख सके ।
रीढ़ विहीन समाज से कभी देश की सुरक्षा और मजबूती की कल्पना नहीं की जा सकती हैं। आजकल देखा जा रहा है कि देश की समस्या जब सुलझतीं नहीं है सारे मौजूदा तंत्र से तो विदेशी सत्ता के उसमें शामिल होने का वही फटा पुराना डायलॉग इस्तेमाल किया जाता है अपनी जबाबदारी से बचने और नपुंसकता को छिपाने के लिए।
आखिर हम किस समाज को बना रहे हैं और किस समाज की भविष्य में कल्पना कर रहे हैं जरूर सोचिएगा और कोशिश करें कि हम सचमुच रीढ़ युक्त बने जो कि मनुष्य होने की एकमात्र पहचान है ताकि हमारा भविष्य और वर्तमान सुदृढ़ और स्थाई बन सके।
(स्मिता जैन स्वतंत्र लेखिका है और यह उनके निजी विचार हैं)
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