ए. आई. कविता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय (पीएमओ) में विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) के रूप में कार्यरत हीरेन जोशी पर विपक्षी दलों ने गंभीर आरोप लगाते हुए एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा द्वारा लगाए गए इन आरोपों ने न केवल जोशी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि पीएम मोदी की साफ-सुथरी छवि को भी चुनौती दे रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या यह महज राजनीतिक साजिश है या पीएमओ में व्याप्त कथित भ्रष्टाचार का पर्दाफाश? इस विवाद के केंद्र में हीरेन जोशी हैं, जो गुजरात के मूल निवासी और पीएम मोदी के लंबे समय से करीबी सहयोगी माने जाते हैं। 2014 से पीएमओ में संचार और आईटी विभाग के प्रमुख के रूप में उनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है। वे मीडिया प्रबंधन, सोशल मीडिया रणनीति और सरकारी संचार से जुड़े मामलों को संभालते रहे हैं। जोशी को अक्सर ‘पीएमओ का सबसे ताकतवर व्यक्ति’ कहा जाता रहा है, जो मोदी की छवि निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं।

हालांकि, हाल के दिनों में उनकी स्थिति पर सवाल उठने लगे हैं, खासकर जब कांग्रेस ने उनके निजी हितों और सरकारी पद के दुरुपयोग के आरोप लगाए। यह विवाद तब भड़का जब कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने जोशी पर ‘लोकतंत्र की हत्या’ और ‘मीडिया को दबाने’ का आरोप लगाया। खेड़ा के अनुसार, जोशी ने पीएमओ के पद का दुरुपयोग कर निजी व्यवसाय चलाए, जिसमें एक बेटिंग ऐप (महादेव बेटिंग ऐप) में उनकी हिस्सेदारी शामिल है। साथ ही, जोशी पर अमेरिका में संदिग्ध संपर्कों और विदेशी हितों को बढ़ावा देने के गंभीर आरोप भी लगे हैं।
महादेव बेटिंग ऐप कांड को भारत का सबसे बड़ा ऑनलाइन जुआ घोटाला माना जा रहा है, जिसमें अरबों रुपये की हेराफेरी का मामला सामने आया है। कांग्रेस का दावा है कि जोशी इस ऐप में निवेशक थे और पीएमओ से ही इसका संचालन प्रभावित करते रहे। इसके अलावा, मीडिया दमन के मामले में भी पुराने आरोपों को दोहराया गया है, खासकर दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा 2022 में जोशी पर मीडिया एडिटर्स को धमकाने का आरोप लगाया गया था। हाल के आरोपों में यह भी कहा गया है कि जोशी ने ‘गोदी मीडिया’ को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे विपक्षी आवाजें दबाई गईं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जोशी को अचानक उनकी महत्वपूर्ण भूमिका से हटाया गया। विपक्ष इसे ‘भ्रष्टाचार के पर्दाफाश’ का संकेत मान रहा है। यह मामला सोशल मीडिया पर भी तेजी से वायरल हो रहा है, जहां #HirenJoshiScandal जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। विपक्ष ने पीएमओ से पूर्ण पारदर्शिता की मांग की है। पवन खेड़ा ने कहा है, “यदि पीएमओ जवाब नहीं देगा, तो हम सारी डिटेल्स उजागर करेंगे।” आम आदमी पार्टी (आप) ने इसे ‘मोदी सरकार का काला अध्याय’ बताया है, जबकि भाजपा ने इन आरोपों को ‘विपक्ष की साजिश’ करार दिया है। लेकिन अभी तक भाजपा की ओर से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है, जो इस विवाद को और भी संवेदनशील बनाता है।
यह विवाद सीधे तौर पर पीएम मोदी की छवि पर असर डालता दिखता है। मोदी की सबसे मजबूत छवि रही है कि वे ‘साफ-सुथरे’ और ‘भ्रष्टाचार-मुक्त’ नेता हैं। जोशी जैसे करीबी सहयोगी पर लगे आरोप इस छवि को चुनौती दे सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, महादेव ऐप जैसे घोटाले से जुड़ाव पीएमओ की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाएगा, जो 2014 के ‘नए भारत’ के वादे के विपरीत है। साथ ही, मीडिया दमन के आरोप विपक्ष को ‘लोकतंत्र बचाओ’ का मुद्दा देंगे, खासकर आगामी 2029 के चुनावों से पहले।
इससे मोदी के ‘ट्रस्टेड सर्कल’ में दरार दिख सकती है, जो उनकी ‘स्ट्रॉन्ग लीडर’ इमेज को कमजोर करने का काम करेगा। विपक्ष इस विवाद का फायदा उठाकर राजनीतिक मोर्चे पर मजबूत हो सकता है। हालांकि, यदि जांच में जोशी के खिलाफ कोई बड़ा सबूत नहीं मिलता है, तो भाजपा इसे ‘फर्जीवाड़ा’ साबित कर उल्टा ही फायदा उठा सकती है। कुल मिलाकर, यह विवाद मोदी की छवि को तात्कालिक तौर पर झटका दे सकता है, पर इसका स्थायी प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार इस पर किस तरह जवाब देती है। यदि पारदर्शिता दिखाई गई तो नुकसान सीमित रह सकता है; अन्यथा यह विपक्ष के लिए सुनहरा मुद्दा बन जाएगा।
हीरेन जोशी विवाद ने पीएमओ की दीवारों में छिपे रहस्यों को बाहर ला दिया है। यह न केवल एक व्यक्ति का मामला है बल्कि सत्ता के गलियारों में व्याप्त कथित अनियमितताओं का प्रतीक बन चुका है। पीएम मोदी, जो हमेशा पारदर्शिता की बात करते रहे हैं, अब इस परीक्षा में खरे उतरने का मौका पा रहे हैं। क्या वे इसे एक सबक बनाकर मजबूत लौटेंगे या यह उनकी चमकदार छवि पर स्थायी दाग छोड़ जाएगा? आने वाले दिनों की राजनीति ही इसका फैसला करेगी।
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