जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली। संचार साथी मोबाइल एप्लिकेशन को लेकर मचे राजनीतिक विवाद के बीच केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए स्मार्टफोन्स में ऐप को अनिवार्य रूप से इंस्टॉल करने का आदेश वापस ले लिया है। साइबर सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए सरकार ने 28 नवंबर को सभी नए और पुराने मोबाइल हैंडसेट्स में संचार साथी ऐप को प्री-इंस्टॉल्ड करने का निर्देश जारी किया था, लेकिन अब इसे रद्द कर दिया गया है।

“फ्रॉड से बचाने के लिए किया गया था अनिवार्य” — सरकार
सरकार ने कहा कि संचार साथी ऐप लोगों को साइबर फ्रॉड से बचाने के उद्देश्य से विकसित किया गया है। ऐप की लोकप्रियता तेजी से बढ़ने के कारण इसे अनिवार्य करने की योजना बनाई गई थी।
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पिछले 1 दिन में 6 लाख से अधिक लोगों ने रजिस्ट्रेशन किया, जो पहले की तुलना में 10 गुना ज्यादा है।
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अब तक 1.4 करोड़ यूजर्स ऐप डाउनलोड कर चुके हैं।
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ऐप के माध्यम से रोजाना लगभग 2000 साइबर फ्रॉड शिकायतें मिल रही हैं।
सरकार का कहना है कि कम जागरूक नागरिकों तक साइबर सुरक्षा पहुंचाना ही उद्देश्य था।
कांग्रेस ने उठाए निजता के अधिकार पर सवाल
राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान कांग्रेस सांसद रणदीप सुरजेवाला ने ऐप पर गंभीर प्रश्न उठाते हुए कहा कि इसकी विशेषताओं को लेकर आशंका है कि:
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यूजर्स की रियल-टाइम लोकेशन,
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सर्च हिस्ट्री,
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वित्तीय लेनदेन,
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SMS और व्हाट्सऐप चैट
की निगरानी की जा सकती है।
कांग्रेस ने इसे निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया और सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए।
केंद्र का स्पष्टीकरण: “जासूसी असंभव, ऐप सुरक्षित”
विवाद बढ़ने पर संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लोकसभा में साफ कहा कि:
“संचार साथी ऐप के माध्यम से न तो जासूसी संभव है और न होगी।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि:
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ऐप यूजर्स की सुरक्षा के लिए है, निगरानी के लिए नहीं।
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मोदी सरकार जनता को सशक्त बनाना चाहती है, न कि उनके अधिकारों का उल्लंघन।
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लोगों की प्रतिक्रिया के आधार पर ऐप में सुधार लाए जाएंगे।
क्या था आदेश और क्यों हटा?
28 नवंबर को केंद्र ने मोबाइल कंपनियों को निर्देश दिया था कि:
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सभी नए स्मार्टफोन्स में संचार साथी ऐप प्री-इंस्टॉल हो।
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पुराने हैंडसेट्स में सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए ऐप पहुंचाया जाए।
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पहली बार डिवाइस सेटअप के दौरान ऐप स्पष्ट रूप से दिखाई दे।
कांग्रेस और कुछ डिजिटल अधिकार संगठनों ने इसे “अत्यधिक निगरानी” का खतरा बताया, जिसके बाद सरकार ने आदेश को वापस लेने का फैसला किया।
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राजनीतिक घमासान जारी
जहाँ BJP का कहना है कि ऐप फ्रॉड रोकने का साधन है, वहीं विपक्ष इसे निजता पर हमला बता रहा है। सरकार ने आदेश वापस लेकर संकेत दिया है कि वह जनता की प्रतिक्रिया को प्राथमिकता देगी।
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