जुबिली स्पेशल डेस्क
कर्नाटक में कांग्रेस की आंतरिक सत्ता संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम व प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार, दोनों ही अपने-अपने तरीके से आलाकमान पर दबाव बनाते हुए नेतृत्व परिवर्तन की मांग को तेज कर चुके हैं।
सूत्रों के अनुसार, चुनावों से पहले ही यह तय हुआ था कि सरकार बनने पर पहले ढाई साल तक सिद्धारमैया मुख्यमंत्री रहेंगे और उसके बाद डीके शिवकुमार को कुर्सी सौंपी जाएगी। तब तक डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष दोनों पदों पर बने रहने का वादा किया गया था।

जैसे ही ढाई साल पूरे होने का समय करीब आया, डीके शिवकुमार ने अपनी दावेदारी आलाकमान के सामने रख दी। इसी बीच, सिद्धारमैया ने भी अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल की मांग कर दी। बताया जाता है कि अगस्त में राहुल गांधी ने दोनों नेताओं से अलग-अलग मुलाकात की, लेकिन कोई अंतिम निर्णय नहीं किया। राहुल ने दोनों को अपने-अपने काम पर फोकस करने की सलाह दी, जिसके बाद मामला लंबित है।
कैबिनेट विस्तार का मुद्दा भी अटका
वक्त बीतता देख डीके शिवकुमार ने विधायकों को दिल्ली भेजकर दबाव बढ़ाने की कोशिश की। कुछ विधायक सिद्धारमैया के पक्ष में कैबिनेट विस्तार की मांग कर रहे थे, जबकि कई विधायक डीके को मुख्यमंत्री बनाए जाने के समर्थन में बयान दे रहे थे।
इस बढ़ती बयानबाज़ी के बाद कर्नाटक मामलों के प्रभारी महासचिव ने सोशल मीडिया पर सभी नेताओं को सार्वजनिक टिप्पणी से दूर रहने की चेतावनी दी। दिल्ली पहुंचे विधायकों से संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी मुलाकात नहीं की, जिससे उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा।
हालांकि इस प्रक्रिया में डीके शिवकुमार को एक सफलता जरूर मिली, सिद्धारमैया की कैबिनेट फेरबदल की मांग को यह कहते हुए ठंडे बस्ते में डाल दिया गया कि पहले नेतृत्व पर फैसला होने दिया जाए।
इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने स्पष्ट किया कि फैसला आलाकमान यानी वह खुद, राहुल गांधी और सोनिया गांधी मिलकर करेंगे। सोनिया गांधी 4–5 दिसंबर तक विदेश से लौटेंगी, जिसके बाद निर्णय की संभावना जताई जा रही है।
आखिर क्यों उलझा है आलाकमान?
कांग्रेस आलाकमान की दिक्कत यह है कि मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में उसके लिए सिद्धारमैया जैसे बड़े कद के नेता को किनारे करना आसान नहीं है। सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय के सबसे बड़े नेता और राज्य में बड़े जनाधार वाले चेहरे हैं।
दूसरी तरफ डीके शिवकुमार पार्टी के लिए एक मजबूत मैनेजर, मेहनती और वफादार नेता माने जाते हैं। हालांकि कुछ कारक उनके खिलाफ जाते हैं—जैसे:
- उनकी उम्र सिद्धारमैया से कम है (63 वर्ष बनाम 80+)
- उनके भाई डीके सुरेश 2024 का लोकसभा चुनाव हार गए
- विधायकों की संख्या में भी सिद्धारमैया का पलड़ा भारी है
- वोक्कालिगा समुदाय में देवगौड़ा परिवार का भी दबदबा है
- ईडी के मामलों ने डीके की स्थिति को कमजोर किया है
इन सब कारणों से आलाकमान फूंक-फूंककर कदम रखना चाहता है—चाहे नेतृत्व परिवर्तन करना हो या मौजूदा व्यवस्था को बरकरार रखना। यही वजह है कि निर्णय में देरी हो रही है, जबकि राज्य में राजनीतिक बेचैनी लगातार बढ़ रही है।
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