जुबिली स्पेशल डेस्क
पटना. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती खड़ी है। सवाल यही है कि क्या पार्टी इस बार भी 2020 वाला इतिहास दोहराने जा रही है? साल 2020 में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था और सिर्फ 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार पार्टी 61 सीटों पर ही मैदान में है यानी पिछली बार से 9 सीटें कम।
दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस को जिन 61 सीटों पर मौका मिला है, उनमें से 9 सीटों पर वह महागठबंधन के घटक दलों आरजेडी, सीपीआई और वीआईपी — के साथ फ्रेंडली फाइट में है। यानी इन सीटों पर सीधा मुकाबला सहयोगियों के बीच है, जिससे एनडीए को अप्रत्यक्ष फायदा मिल सकता है।
अब बात बाकी 52 सीटों की करें, तो इनमें से 23 सीटें ऐसी हैं, जहां महागठबंधन पिछले सात चुनावों में एक भी बार नहीं जीत सका। वहीं बाकी 29 सीटों में से 15 सीटों पर महागठबंधन सिर्फ एक बार ही जीत दर्ज कर पाया है। यह आंकड़ा कांग्रेस और पूरे महागठबंधन के लिए खतरे की घंटी है।
‘करो या मरो’ की स्थिति में कांग्रेस
बिहार चुनाव 2025 कांग्रेस के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं। पार्टी जिन 61 सीटों पर लड़ रही है, उनमें से 38 सीटें ऐसी हैं, जहां महागठबंधन का कोई ठोस जनाधार नहीं है। इतिहास बताता है कि इन इलाकों में एनडीए का वर्चस्व लगातार कायम रहा है। ऐसे में कांग्रेस की चुनौती यह होगी कि वह इन परंपरागत रूप से कमजोर सीटों पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा पाए या नहीं।
महागठबंधन पर भी असर तय
कांग्रेस की यह स्थिति केवल पार्टी तक सीमित नहीं रहेगी। इसका सीधा असर तेजस्वी यादव और आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के भविष्य पर पड़ेगा। क्योंकि अगर कांग्रेस अपने हिस्से की सीटों पर बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई, तो महागठबंधन का समूचा समीकरण बिगड़ सकता है।
कुल मिलाकर, कांग्रेस के लिए यह चुनाव सिर्फ सीट जीतने का नहीं बल्कि राजनीतिक अस्तित्व बचाने का संघर्ष बन चुका है। बिहार में उसका प्रदर्शन यह तय करेगा कि क्या वह राज्य की राजनीति में फिर से पैर जमा पाएगी या 2020 की तरह 2025 भी हार का इतिहास दोहराएगा।
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