Friday - 7 November 2025 - 11:51 AM

आजादी के आंदोलन में हर जगह गूंजने वाला वंदे मातरम, मुस्लिम विरोधी क्यों माना गया?

जुबिली स्पेशल डेस्क 

नई दिल्ली। 7 नवंबर 2025 को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की अमर रचना “वंदे मातरम” के 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस अवसर पर केंद्र और राज्य सरकारें देशभर में धूमधाम से आयोजन कर रही हैं और सार्वजनिक स्थलों पर सामूहिक गायन कार्यक्रम तय किए गए हैं। दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में होने वाले उद्घाटन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे।

बंकिम की अमर रचना और आजादी के आंदोलन में योगदान

“वंदे मातरम” गीत बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास “आनंदमठ” (1882) का हिस्सा है। लेकिन गीत की रचना स्वयं बंकिम ने 7 नवंबर 1875 को की थी। उपन्यास में संन्यासी ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह का संदेश फैलाते हैं और गीत मातृभूमि को मां दुर्गा के रूप में चित्रित करता है। इसका उद्देश्य भारतीयों में मातृभूमि के प्रति प्रेम और विदेशी शासन के खिलाफ संघर्ष की भावना जगाना था।

जल्द ही यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन में गूंजने लगा। 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसकी पहली सार्वजनिक प्रस्तुति दी। 1905 में बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन में हर आंदोलनकारी के होठों पर यह गीत था। अंग्रेज चिंतित हुए और 1907 में इसके सार्वजनिक गायन पर पाबंदी लगा दी।

विरोध और समाधान: मुस्लिम लीग और कांग्रेस का मध्य मार्ग

अंग्रेजों ने “बांटो और राज करो” नीति के तहत हिंदू-मुस्लिम दूरी बढ़ाने का प्रयास किया। मुस्लिम लीग ने वंदे मातरम को इस्लाम विरोधी करार देते हुए इसका विरोध किया। कांग्रेस के सामने दोहरे दबाव थे: एक ओर हिंदू आंदोलनकारी इसे राष्ट्रभक्ति का मंत्र मानते थे, दूसरी ओर मुस्लिम विरोध का असर भी देखना था।

1937 में कांग्रेस की एक कमेटी ने समाधान निकाला: गीत के केवल शुरुआती दो पद्य गाए जाएँ, जिनमें धार्मिक पहलू न हो। 1938 के हरीपुरा अधिवेशन में यही पद्य गाए गए।

संविधान सभा और राष्ट्रगीत का दर्जा

संविधान सभा (2 साल 11 महीने 18 दिन) में राष्ट्रगान पर बहस लंबी चली। 22 जुलाई 1947 को सरोजिनी नायडू ने राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान पर सवाल उठाया। कई नेताओं ने समय-समय पर इस मुद्दे पर विचार किया। स्वतंत्रता के दिन, 14-15 अगस्त 1947 को “वंदे मातरम” का गायन हुआ।

25 अगस्त 1948 को जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा को बताया कि “जन गण मन” को राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया गया, लेकिन “वंदे मातरम” को राष्ट्रगीत का दर्जा देते हुए जन गण मन के बराबर सम्मान देने की घोषणा की गई।

 

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