डा. उत्कर्ष सिन्हा
नेपाल की राजनीति एक ऐसे चौराहे पर खड़ी है जहाँ पुराने रास्ते परिचित तो हैं, लेकिन वे कहीं नहीं ले जाते, और नए रास्तों पर अनिश्चितता के कांटे बिछे हैं। दशकों से नेपाली सियासत के.पी. शर्मा ओली, पुष्प कमल दहल “प्रचंड” और शेर बहादुर देउबा जैसे कुछ गिने-चुने चेहरों के इर्द-गिर्द घूम रही है। उनकी सत्ता की अदला-बदली और गठबंधनों का बनना-बिगड़ना अब देश के लिए एक थकाऊ और निराशाजनक तमाशा बन चुका है। इसी पृष्ठभूमि में, जब वामपंथी धड़ों को एक बार फिर “एकजुट” करने की कोशिशें हो रही हैं, तब एक मुखर और जुझारू आवाज ने इस खोखले अभ्यास से खुद को अलग कर लिया है। वह आवाज है राम कुमारी झाक्री की। CPN (एकीकृत समाजवादी) की सचिव झाक्री का हालिया फैसला, जिसमें उन्होंने इस तथाकथित एकजुटता प्रक्रिया से दूरी बना ली है, महज़ एक राजनीतिक बयान नहीं है; यह उस गहरे पीढ़ीगत विद्रोह का संकेत है जो नेपाल की सड़ी-गली राजनीतिक व्यवस्था को चुनौती दे रहा है। सवाल यह है कि क्या इस विद्रोह का नेतृत्व करते हुए झाक्री अपने लिए और नेपाल की नई पीढ़ी के लिए एक नई राजनीतिक जगह बना पाएंगी?
CPN (यूनिफाइड सोशलिस्ट) नेता राम कुमारी झाकड़ी ने घोषणा की है कि पार्टी के साथ उनका राजनीतिक सफर खत्म हो गया है। बुधवार को काठमांडू में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए, झाकड़ी ने कहा कि पार्टी आज दोपहर 1 बजे आधिकारिक तौर पर भंग हो जाएगी, जिससे पार्टी में उनकी भागीदारी खत्म हो जाएगी। झाकड़ी ने कहा, “पार्टी के साथ मेरा चैप्टर खत्म हो गया है। यह हमारी राजनीतिक यात्रा का मौजूदा पड़ाव है।” उन्होंने कहा कि Gen Z आंदोलन के बाद, नेपाल की बड़ी राजनीतिक पार्टियां लोगों की नज़र में आ गई हैं।
झाकड़ी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राजनीतिक पार्टियों को लोकतंत्र की रक्षा करने और देश में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। पिछली पार्टी मर्जर की आलोचना करते हुए, उन्होंने तर्क दिया कि UML और माओवादी सेंटर के बीच एकता, जिससे नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (CPN) बनी थी, ने पहले ही अंदरूनी लोकतंत्र को खत्म कर दिया था। उनके अनुसार, माओवादी सेंटर, यूनिफाइड सोशलिस्ट और सात अन्य वामपंथी समूहों के बीच चल रहा मर्जर लोकतांत्रिक मूल्यों को और कमज़ोर करेगा।

एकजुटता का भ्रम और झाक्री का मोहभंग
वामपंथी एकता की मौजूदा कवायद 2018 में बने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (NCP) के असफल प्रयोग की ही एक फीकी नकल लगती है। लगभग दो-तिहाई बहुमत के साथ बनी वह सरकार तीन साल के भीतर ही शीर्ष नेताओं के व्यक्तिगत अहंकार और सत्ता की नग्न लड़ाई की भेंट चढ़ गई। आज फिर वही नेता, उन्हीं पुराने मुद्दों और उन्हीं व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के साथ एकता का राग अलाप रहे हैं। उनके लिए यह एकता विचारधारा या देश के भविष्य के लिए नहीं, बल्कि अगला चुनाव जीतने और सत्ता के पदों का बंदरबांट करने का एक गणितीय समीकरण मात्र है।
राम कुमारी झाक्री जैसी नेता, जिनका राजनीतिक उदय छात्र आंदोलन और ज़मीनी संघर्ष से हुआ है, इस दिखावे को बखूबी समझती हैं। उनका इस प्रक्रिया से खुद को अलग करना इस बात की स्वीकारोक्ति है कि इन पुराने नेताओं के साथ मिलकर कोई नई दिशा नहीं तय की जा सकती। उनके लिए यह “एकजुटता” एक ऐसा पिंजरा है जो नई सोच, नई ऊर्जा और नई पीढ़ी की आकांक्षाओं को कैद कर लेगा। झाक्री का यह कदम एक साहसपूर्ण घोषणा है कि वह उस बस में सवार नहीं होंगी जिसका ड्राइवर बार-बार गाड़ी को खाई में गिरा चुका हो। वह एक नई दिशा की ओर इशारा कर रही हैं, एक ऐसी दिशा जो पार्टी मुख्यालयों के बंद कमरों से नहीं, बल्कि देश के युवाओं की हताशा और सपनों से निकलेगी।
एक नए राजनीतिक पथ की तलाश
तो झाक्री की यह “नई दिशा” क्या है? यह केवल एक और वामपंथी धड़ा बनाने या किसी दूसरे दल में शामिल होने तक सीमित नहीं हो सकती। यह नेपाल में राजनीति करने के तरीके को ही चुनौती देने का एक प्रयास है। इसके कई पहलू हो सकते हैं:
- पीढ़ीगत गठबंधन का निर्माण: झाक्री यह समझती हैं कि व्यवस्था से हताशा केवल उनकी पार्टी तक सीमित नहीं है। नेपाली कांग्रेस में गगन थापा और विश्व प्रकाश शर्मा जैसे नेता भी अपनी ही पार्टी के बुजुर्ग नेतृत्व से जूझ रहे हैं। झाक्री के लिए अवसर इस पीढ़ीगत असंतोष को एक वैचारिक मंच प्रदान करने में है, जो पार्टी लाइनों से ऊपर उठकर सुशासन, पारदर्शिता, भ्रष्टाचार-विरोध और आर्थिक अवसरों जैसे मुद्दों पर केंद्रित हो।
- मुद्दों पर आधारित राजनीति: दशकों से नेपाल की राजनीति पहचान और सत्ता-साझेदारी के इर्द-गिर्द घूमती रही है। झाक्री इसे बदलकर नीति और प्रदर्शन (Policy and Performance) पर आधारित राजनीति की ओर ले जा सकती हैं। युवाओं के लिए रोजगार, महिलाओं के अधिकार, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे उनकी राजनीति का केंद्र बन सकते हैं, जो पुराने नेताओं के भाषणों से अक्सर गायब रहते हैं।
- संगठन से परे एक आंदोलन: स्थापित पार्टियों की ताकत उनका कैडर और सांगठनिक ढांचा है। लेकिन आज के डिजिटल युग में, एक मजबूत विचार और एक विश्वसनीय चेहरा एक आंदोलन खड़ा कर सकता है जो पारंपरिक संगठनात्मक सीमाओं को लांघ जाए। झाक्री अपनी निर्भीक छवि और मुखरता का उपयोग करके एक ऐसा ही आंदोलन खड़ा कर सकती हैं जो सीधे युवाओं, पेशेवरों और उन नागरिकों से जुड़े जो मौजूदा राजनीति से निराश हो चुके हैं।
चुनौतियां और संभावनाएं
हालांकि, राम कुमारी झाक्री का रास्ता आसान नहीं है। नेपाल का राजनीतिक परिदृश्य बेहद पितृसत्तात्मक और पदसोपानिक (hierarchical) है। एक महिला नेता के लिए स्थापित पुरुष नेताओं के गढ़ को तोड़ना एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, एक नया राजनीतिक आंदोलन खड़ा करने के लिए भारी वित्तीय संसाधनों और संगठनात्मक कौशल की आवश्यकता होती है, जिसमें स्थापित दल उन्हें मीलों पीछे छोड़ सकते हैं। उन्हें “पार्टी तोड़ने वाली” या “अति-महत्वाकांक्षी” जैसे आरोपों का भी सामना करना पड़ेगा।
लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद, संभावनाएं कहीं अधिक प्रबल हैं। देश की लगभग 40% आबादी युवा है, और यह पीढ़ी अब और इंतजार करने को तैयार नहीं है। हाल के “जेन-जेड” विरोध प्रदर्शनों ने दिखाया है कि उनमें संगठित होने और अपनी आवाज उठाने की जबरदस्त क्षमता है। जनता का मौजूदा राजनीतिक वर्ग से मोहभंग अपने चरम पर है। मतदाता नए और विश्वसनीय चेहरों को एक मौका देने के लिए तैयार हैं, जैसा कि हाल के चुनावों में स्वतंत्र उम्मीदवारों की जीत ने साबित किया है।
राम कुमारी झाक्री उस चौराहे पर खड़ी हैं जहाँ जोखिम और अवसर दोनों हैं। उन्होंने यथास्थिति को अस्वीकार कर पहला और सबसे कठिन कदम उठा लिया है। अब उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या वह अपने व्यक्तिगत विद्रोह को एक सामूहिक युवा आंदोलन में बदल पाती हैं। क्या वह अन्य युवा नेताओं के साथ मिलकर एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम बना पाती हैं? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या वह देश को यह विश्वास दिला पाती हैं कि उनके पास केवल आलोचना नहीं, बल्कि एक ठोस वैकल्पिक दृष्टिकोण भी है?
नेपाल का युवा विद्रोह अब केवल सड़कों पर नारों तक सीमित नहीं है; यह एक राजनीतिक आकार लेने की कोशिश कर रहा है। राम कुमारी झाक्री इस आकार को गढ़ने वाली एक महत्वपूर्ण शिल्पकार हो सकती हैं। यदि वह अपनी जगह बनाने में सफल होती हैं, तो यह न केवल उनकी व्यक्तिगत जीत होगी, बल्कि यह इस बात का भी प्रमाण होगा कि नेपाल की राजनीति आखिरकार अपनी पुरानी पीढ़ी के बोझ से मुक्त होकर भविष्य की ओर कदम बढ़ाने के लिए तैयार है।
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