जुबिली न्यूज डेस्क
लखनऊ: राजधानी में एक बड़े पैमाने पर हुए ड्रोन सर्वेक्षण ने चौंका देने वाला खुलासा किया है — एलडीए की अनदेखी के बीच 97 अवैध टाउनशिप बन चुकी हैं। इनमें कई ऐसी टाउनशिप शामिल हैं, जिनके पीछे कथित रूप से एलडीए के ही अधिकारी तथा इंजीनियर जुड़े हुए हैं।

खुलासा कि कैसे बनी टाउनशिप
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ड्रोन सर्वे में मिली जानकारी के अनुसार, ये टाउनशिप संरचनाएँ बिना किसी मान्यता या नक्शा स्वीकृति के विकसित की गई हैं।
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इसके निर्माण में प्राइवेट दस्ते, एलडीए के क्षेत्रीय कर्मचारियों और कथित रूप से स्मारक समिति की संलिप्तता की अफवाहें उठ रही हैं।
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उन 97 टाउनशिप में दो नाम विशेष रूप से चर्चा में आ रहे हैं — जी ई दिनेश कुमार और विपिन बिहारी राय। पहला अभी हाल ही में नौकरी में शामिल हुआ है, जबकि राय का नाम पहले भी पूर्व मंडलायुक्त रोशन जैकब ने शासन को कार्रवाई हेतु भेजा था।
“जीरो टॉलरेंस” वादे और हकीकत
राज्य सरकार व एलडीए शासन स्तर पर अक्सर यह घोषणाएँ करती रही है कि अवैध निर्माणों पर जीरो टॉलरेंस होगा। इसके लिए प्रतिनियुक्ति पर अधिकारियों और इंजीनियरों को लगाया गया है।
लेकिन राजधानी में जो स्थिति सामने आई है, वह इन दावों की पोल खोलती है —
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अधिकारी स्वयं जुड़े टाउनशिप निर्माण में पर्याय बन गए।
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अतीत में कार्रवाई का आदेश मिलने के बाद भी, कुछ टाउनशिपों को नक्शा / स्वीकृति देने की खबरें प्रकाश में आई हैं।
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अफसोस कि कार्रवाई टीम को “कमरा मिलने” जैसी सुगबुगाहटें भी सुनी जा रही हैं — यानी अधिकारी अपने निजी समन्वय और सुविधा के तहत काम कर रहे हों।
सवाल जिसने उठाए दबाव
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अगर अधिकारियों ने इन टाउनशिपों को बनने दिया है, तो निगरानी ब्रेकडाउन किस स्तर पर हुआ?
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क्या ये निर्माण पहले से सूचीबद्ध थे, या अचानक नज़रअंदाज़ किए गए?
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शासन स्तर से दिए गए “जीरो टॉलरेंस” के दावे कितने निष्पक्ष हैं, जब भ्रष्टाचार और संरक्षण की खबरें आ रही हैं?
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अब जब नाम पहले से ज्ञात अधिकारियों का सामने आ रहा है — रोशन जैकब द्वारा शिकायत, विपिन बिहारी राय, दिनेश कुमार — तो क्या उच्च स्तरीय जांच होगी?
राजधानी लखनऊ में अवैध निर्माण और टाउनशिप्स की भरमार ने “जीरो टॉलरेंस” के दावे को संदेह की दृष्टि में ला दिया है। ड्रोन सर्वे जैसे डिजिटल उपकरणों के उपयोग से खुलासा हुआ कि जिन अधिकारियों पर कार्रवाई की जिम्मेदारी थी, उनमें से कई स्वयं इस सिस्टम का हिस्सा बने हुए हैं।यदि शासन और न्यायपालिका सचमुच निष्पक्ष और सख्त नियंत्रण देना चाहें, तो इस मामले की पारदर्शी, उच्च स्तरीय और स्वतंत्र जांच होना आवश्यक है — जिससे यह भरोसा हो सके कि कोई भी निर्माण कानून से ऊपर नहीं है।
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