जुबिली न्यूज डेस्क
लद्दाख, भारत का वह सुदूर हिमालयी क्षेत्र, जहां बर्फीली चोटियां और बौद्ध मठों की शांति कभी इसकी पहचान थी, आज गुस्से और आंदोलन की आग में जल रहा है। 24 सितंबर 2025 को लेह की सड़कों पर हजारों लोग—युवा, छात्र, और स्थानीय निवासी—केंद्र सरकार के खिलाफ नारे लगाते हुए उतर आए। यह आंदोलन लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर है। लेकिन शांतिपूर्ण प्रदर्शन जल्द ही हिंसक हो गया। बीजेपी कार्यालय में आग लगाई गई, पुलिस वाहनों को जलाया गया, और पथराव के जवाब में आंसू गैस के गोले छोड़े गए। इस आंदोलन के केंद्र में हैं सोनम वांगचुक, जिनकी अगुवाई में लद्दाख की आवाज दिल्ली तक पहुंच रही है। यह लेख इस आंदोलन की पृष्ठभूमि, कारणों, और वांगचुक की भूमिका को विस्तार से देखेगा।
आंदोलन की पृष्ठभूमि और कारण
लद्दाख का यह आंदोलन नया नहीं है। इसकी जड़ें 2019 में तब गहरी हुईं, जब जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांटकर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। लेह के बौद्ध बहुल और कारगिल के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों ने इसे अपनी सांस्कृतिक और क्षेत्रीय पहचान की रक्षा के रूप में देखा। केंद्र सरकार ने वादा किया था कि लद्दाख को विकास, नौकरियां, और स्वायत्तता मिलेगी। लेकिन पांच साल बाद, ये वादे खोखले साबित हुए। स्थानीय नौकरियों में 85% आरक्षण का वादा अधूरा रहा, बाहरी उद्योगपतियों को जमीन बेचने की आशंका ने स्थानीय संस्कृति और पर्यावरण को खतरे में डाल दिया। लेह और कारगिल के लोग अपनी जमीन, नौकरियों, और पहचान को बचाने के लिए सड़कों पर हैं।
लद्दाख की मांगें चार बिंदुओं पर केंद्रित हैं:
पहला, पूर्ण राज्य का दर्जा, ताकि दिल्ली से सीधा नियंत्रण खत्म हो। दूसरा, छठी अनुसूची में शामिल कर आदिवासी क्षेत्रों को संरक्षण देना, जिससे जमीन और नौकरियां स्थानीय लोगों के पास रहें। तीसरा, लेह और कारगिल के लिए अलग-अलग लोकसभा सीटें। चौथा, पर्यटन और बागवानी को बढ़ावा देकर आर्थिक विकास। लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) ने इन मांगों को उठाने के लिए 2023 में केंद्र की उच्च स्तरीय समिति से बातचीत शुरू की। लेकिन नौ दौर की वार्ता के बाद भी कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। यह निराशा ही सड़कों पर उतरी है।
24 सितंबर का हिंसक प्रदर्शन
24 सितंबर 2025 को लेह में LAB की युवा इकाई ने पूर्ण बंद का आह्वान किया। हजारों छात्र और युवा सड़कों पर उतरे, नारे लगाते हुए: “लद्दाख को राज्य दो, छठी अनुसूची लागू करो!” प्रदर्शनकारी लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (LAHDC) कार्यालय की ओर बढ़े, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया। जवाब में पथराव शुरू हुआ। गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी कार्यालय में आग लगा दी और एक CRPF वाहन को जला दिया। कारगिल में KDA ने 25 सितंबर को बंद का ऐलान किया, जिससे तनाव और बढ़ गया। सुरक्षा बलों ने ITBP और CRPF की अतिरिक्त टुकड़ियां तैनात कीं। हालांकि कोई मौत नहीं हुई, लेकिन कई लोग घायल हुए, और लेह की सड़कों पर तनाव का माहौल है।
सोनम वांगचुक: आंदोलन का चेहरा
इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं सोनम वांगचुक, जिन्हें लद्दाख का “मसीहा” कहा जा रहा है। पर्यावरणविद, शिक्षाविद, और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता वांगचुक ने लद्दाख की आवाज को राष्ट्रीय मंच पर पहुंचाया है। 10 सितंबर 2025 को उन्होंने लेह में 12,000 फुट की ऊंचाई पर 35 दिनों का अनशन शुरू किया, जो अब 14वें दिन में है। उनके साथ 15 अन्य लोग, जिनमें पूर्व सैनिक और स्थानीय कार्यकर्ता शामिल हैं, भूख हड़ताल पर हैं। इस अनशन ने न केवल लद्दाख, बल्कि पूरे देश का ध्यान खींचा है। लेकिन ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी और ठंड ने इसे जानलेवा बना दिया है। दो प्रदर्शनकारियों को डिहाइड्रेशन और स्वास्थ्य समस्याओं के कारण अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।
वांगचुक का जीवन और कार्य लद्दाख के लिए उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक है। 1994 में उन्होंने स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (SECMOL) की स्थापना की, जो स्थानीय युवाओं को शिक्षा और नेतृत्व के अवसर देता है। उनकी पर्यावरणीय पहल, जैसे “आइस स्टूपा” प्रोजेक्ट, ने लद्दाख में पानी की कमी को दूर करने में मदद की। उनकी प्रेरणा 2009 की फिल्म 3 इडियट्स के किरदार “फुंसुक वांगडू” से भी मिलती है, जिसे उनके जीवन पर आधारित माना जाता है। वांगचुक ने हमेशा अहिंसक और शांतिपूर्ण तरीकों पर जोर दिया। 24 सितंबर के हिंसक प्रदर्शन के बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर अपील की: “हिंसा हमारी लड़ाई को कमजोर करेगी। शांति बनाए रखें।” उनकी यह अपील नेल्सन मंडेला की अहिंसक प्रतिरोध की याद दिलाती है।
वांगचुक की रणनीति और प्रभाव
वांगचुक की रणनीति सिर्फ अनशन तक सीमित नहीं है। उन्होंने LAB और KDA के साथ मिलकर आंदोलन को अपोलिटिकल रखा। कांग्रेस के कुछ नेताओं को LAB से हटाया गया, ताकि यह धार्मिक और सामाजिक संगठनों का साझा मंच बना रहे। उनकी सोशल मीडिया उपस्थिति ने आंदोलन को वैश्विक मंच पर ले जाया। उनके ट्वीट्स और वीडियो, जिसमें वे सरकार से सवाल पूछते हैं, लाखों लोगों तक पहुंच रहे हैं। उन्होंने कहा, “हमारी मांगे जायज हैं। लद्दाख की जमीन और संस्कृति बिकाऊ नहीं है।” उनकी यह स्पष्टता और दृढ़ता युवाओं में जोश भर रही है।वांगचुक ने पर्यावरण संरक्षण को भी आंदोलन का हिस्सा बनाया। लद्दाख का नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण का सामना नहीं कर सकता। बाहरी कंपनियों को जमीन बेचने से ग्लेशियरों और स्थानीय जल स्रोतों को खतरा है। वांगचुक ने इसे “सांस्कृतिक और पर्यावरणीय नरसंहार” करार दिया। उनकी यह बात लद्दाख के लोगों के दिलों को छूती है, क्योंकि उनकी आजीविका खेती, पशुपालन, और पर्यटन पर निर्भर है।
ये भी पढ़ें-लेह में उग्र विरोध: सोनम वांगचुक के समर्थन में छात्रों ने खोला मोर्चा, CRPF की गाड़ी को लगाई आग
सरकार का रवैया और भविष्य
केंद्र सरकार ने 20 सितंबर को 6 अक्टूबर के लिए बातचीत का प्रस्ताव रखा, लेकिन LAB ने इसे एकतरफा करार दिया। चेरिंग डोरजे लक्रुक, LAB के सह-कन्वीनर, ने कहा, “ऊंचाई पर अनशन दिल्ली जितना आसान नहीं। सरकार को हमारी गंभीरता समझनी होगी।” आगामी LAHDC चुनाव इस आंदोलन को और तेज कर सकते हैं। 2020 में बीजेपी ने लेह में जीत हासिल की थी, लेकिन अब स्थानीय असंतोष बढ़ रहा है।लद्दाख का यह आंदोलन केवल एक क्षेत्र की मांग नहीं है। यह भारत की संघीय संरचना और अल्पसंख्यक क्षेत्रों की आवाज का प्रतीक है। सोनम वांगचुक की अगुवाई में यह लड़ाई लंबी हो सकती है, लेकिन उनकी अहिंसक दृष्टि और लद्दाख की एकजुटता इसे कमजोर नहीं होने देगी। अगर सरकार ने वादे पूरे नहीं किए, तो हिमालय की वादियां और गूंजेंगी। लद्दाख की यह पुकार दिल्ली तक नहीं, बल्कि दुनिया तक पहुंच रही है।