जुबिली स्पेशल डेस्क
इस्लाम धर्म में ईद-ए-मिलाद-उन-नबी (Eid-e-Milad-un-Nabi) का विशेष महत्व है। हिजरी कैलेंडर के अनुसार, यह पर्व रबी-उल-अव्वल महीने की 12वीं तारीख को मनाया जाता है।
इस बार यह तारीख 5 सितंबर 2025 को पड़ी है और दुनियाभर में मुसलमान इसे अकीदत और इबादत के साथ मना रहे हैं।
इस दिन का महत्व पैगंबर मोहम्मद साहब से जुड़ा है। माना जाता है कि उनका जन्म लगभग 570 ईस्वी में मक्का शरीफ में हुआ था। इस्लामिक परंपराओं के अनुसार, उन्हें अल्लाह ने इंसानियत को राह दिखाने, बुराइयों का अंत करने और समाज से अज्ञानता का अंधकार मिटाने के लिए भेजा था।
यही वजह है कि यह दिन मुसलमानों के लिए बेहद पवित्र माना जाता है। दिलचस्प बात यह भी है कि रिवायतों के अनुसार, रबी-उल-अव्वल की इसी 12वीं तारीख को उनका इंतकाल भी हुआ था।
इसलिए कुछ लोग इसे खुशी का दिन मानते हैं और जश्न मनाते हैं, वहीं कुछ लोग इसे शोक का दिन मानकर सादगी से याद करते हैं।
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी को मनाने का तरीका भी खास होता है। इस दिन लोग अपने घरों और मस्जिदों को सजाते हैं। मस्जिद में नमाज अदा की जाती है और दरगाहों पर चादर चढ़ाई जाती है।
कई स्थानों पर जुलूस भी निकाले जाते हैं, जिनमें लोग पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं और उनके बताए रास्तों को याद करते हैं।
इस अवसर पर लोग एक-दूसरे को गले लगाकर मुबारकबाद देते हैं और दुआएं मांगते हैं। सबसे अहम बात यह है कि इस दिन अल्लाह की इबादत और नेक काम करने पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
इस तरह ईद-ए-मिलाद-उन-नबी सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं को याद करने और अमल में लाने का दिन भी है।
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