जुबिली स्पेशल डेस्क
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का नाम भारतीय खेल इतिहास में अमर है। तीन-तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने देश को उस दौर में पहचान दिलाई जब आज़ादी की लड़ाई भी जारी थी। लेकिन आज जब भारत खेलों में लगातार नई ऊंचाइयां छू रहा है, तब सवाल उठता है-क्या देश में नए ध्यानचंद तैयार हो रहे हैं?
छोटे कस्बों और गांवों में छुपी प्रतिभा
भारत के सुदूर इलाकों में आज भी बच्चे टूटी-फूटी हॉकी स्टिक और ईंट-पत्थरों से बनाए गए गोलपोस्ट के बीच सपनों का खेल खेलते हैं। झारखंड, ओडिशा, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य हॉकी की नर्सरी माने जाते हैं। यहां से हर साल सैकड़ों खिलाड़ी निकलते हैं।
झारखंड और ओडिशा की बेटियां भारतीय महिला हॉकी टीम की ताकत बन चुकी हैं। लेकिन कठिन आर्थिक हालात और सुविधाओं की कमी कई खिलाड़ियों के सफर को अधूरा छोड़ देती है।
नई पीढ़ी की कामयाबियां
टोक्यो ओलंपिक 2021 भारत के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। पुरुष हॉकी टीम ने 41 साल बाद कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा। महिला टीम भी पहली बार सेमीफाइनल तक पहुंची और भले ही पदक न जीत पाई, लेकिन देशभर में उनकी तारीफ हुई। हरमनप्रीत सिंह, सविता पूनिया, मनदीप सिंह और नवनीत कौर जैसे खिलाड़ी अब भारतीय हॉकी की नई पहचान बन गए हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सफलता इस बात का सबूत है कि भारत में प्रतिभा की कमी नहीं है। जरुरत है तो उन्हें आधुनिक प्रशिक्षण और विश्वस्तरीय सुविधाएं देने की।
सरकार और नीतियों का योगदान
हॉकी को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र ने मिलकर कदम उठाए हैं। ओडिशा सरकार ने तो हॉकी इंडिया का आधिकारिक प्रायोजक बनकर एक मिसाल कायम की।
इसके अलावा ‘खेलो इंडिया’ और ‘फिट इंडिया मूवमेंट’ जैसे अभियानों से नई पीढ़ी को खेलों से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। हॉकी इंडिया लीग ने भी खिलाड़ियों को बड़े मंच पर अनुभव जुटाने का मौका दिया।
चुनौतियां अब भी बरकरार
हालांकि तस्वीर पूरी तरह उजली नहीं है। बुनियादी स्तर पर कोचिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर और खिलाड़ियों के लिए आर्थिक सुरक्षा आज भी बड़ी चुनौती है। कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी गरीबी और संसाधनों की कमी के कारण मैदान से बाहर हो जाते हैं। खेल विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ध्यानचंद जैसे सितारे चाहिए तो जमीनी स्तर पर प्रशिक्षण और सुविधाओं का जाल बिछाना होगा।
मेजर ध्यानचंद से प्रेरणा
हर साल 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मेजर ध्यानचंद की याद में मनाया जाता है। लेकिन सवाल सिर्फ श्रद्धांजलि तक सीमित नहीं है।
असली श्रद्धांजलि तब होगी जब देश में हजारों-लाखों बच्चे उनके रास्ते पर चलकर नए कीर्तिमान गढ़ें। हॉकी प्रेमियों का मानना है कि ध्यानचंद की तरह समर्पण और अनुशासन से ही नए सितारे उभरेंगे।
भारत में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। गांव-गांव के मैदान और छोटे-छोटे स्कूल हॉस्टल्स आज भी संभावित ध्यानचंदों से भरे पड़े हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि उन्हें पहचानने और सही दिशा देने की जिम्मेदारी कौन उठाएगा। अगर सिस्टम और समाज ने मिलकर यह जिम्मेदारी निभाई तो वह दिन दूर नहीं जब यह सवाल-“भारत में कितने ध्यानचंद निकल रहे हैं?”—का जवाब गर्व से दिया जा सकेगा: “असंख्य।”