जुबिली स्पेशल डेस्क
बिहार की राजनीति में एक बार फिर सीट बंटवारे को लेकर खींचतान तेज हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार घोषणाओं व विकास योजनाओं से एनडीए का माहौल मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन चिराग पासवान की 40 सीटों की डिमांड गठबंधन के लिए नई सिरदर्दी बन गई है।
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए में बीजेपी, जेडीयू, चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास), जीतनराम मांझी की हम पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम शामिल हैं।
सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी-जेडीयू बराबर-बराबर यानी 100-105 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हैं। ऐसे में बाकी दलों के लिए 30-40 सीटें बचती हैं। मांझी और कुशवाहा के लिए 7-10 सीटें छोड़ने के बाद चिराग पासवान के हिस्से में 20-25 सीटें ही आ सकती हैं।
2020 का अनुभव और 2025 की चुनौती
2020 में सीटों को लेकर असहमति के बाद चिराग ने एनडीए से अलग होकर 135 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। उन्होंने जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार खड़े कर नीतीश कुमार को बड़ा नुकसान पहुँचाया और पार्टी सिर्फ 43 सीटों पर सिमट गई थी, जबकि बीजेपी 74 सीटें जीत गई थी। इस बार भी यही डर है कि अगर चिराग नाराज हुए तो एनडीए की गणित बिगड़ सकती है।
चिराग का तर्क और राजनीतिक आधार
चिराग पासवान का दावा है कि 2024 लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने सभी पांच सीटें जीतकर 6% वोट शेयर हासिल किया। विधानसभा की लगभग 30 सीटों पर उन्हें बढ़त मिली।
इसी आधार पर वह 40 सीटों की मांग कर रहे हैं। एलजेपी का आधार दलित और अतिपिछड़े वर्गों में माना जाता है, जिससे उनका वोट शेयर किसी भी गठबंधन के लिए निर्णायक हो सकता है।
एनडीए के लिए जोखिम
बीजेपी और जेडीयू चिराग की मांग पूरी करने में असमर्थ दिख रही हैं। लेकिन अगर वह अलग होकर चुनाव लड़ते हैं, तो पिछली बार की तरह “वोट कटवा” की भूमिका दोहरा सकते हैं।
इतना ही नहीं, यदि चिराग प्रशांत किशोर या किसी अन्य तीसरी शक्ति से हाथ मिला लेते हैं, तो चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल सकता है। यही वजह है कि उनकी 40 सीटों की डिमांड एनडीए के लिए “गले की फांस” साबित हो रही है।
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