जुबिली स्पेशल डेस्क
बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही सियासी माहौल गरमाने लगा है। एनडीए और महागठबंधन के नेता मैदान में उतर चुके हैं, लेकिन इस बार तस्वीर कुछ अलग है। जातिगत समीकरणों के लिए मशहूर बिहार में इस बार चर्चा का केंद्र जाति नहीं, बल्कि चुनाव आयोग की धांधली, मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) और बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे मुद्दे बन गए हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी चुनाव आयोग और भाजपा के बीच सांठगांठ का आरोप लगाकर वोट चोरी का मुद्दा उछाल रहे हैं, तो आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी SIR को लेकर मुखर हैं। तेजस्वी ने पहले बिहार बंद का आह्वान किया और चुनाव बहिष्कार तक की धमकी दी। अब इस मुद्दे पर वे चुनाव आयोग से सीधी टक्कर ले रहे हैं। राहुल गांधी भी 17 अगस्त से बिहार यात्रा शुरू कर इन मुद्दों को चुनावी सभाओं में जोर-शोर से उठाने का संकेत दे चुके हैं।
उधर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार फ्रीबीज और योजनाओं का ऐलान कर हर वर्ग को साधने में जुटे हैं, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोक कल्याणकारी परियोजनाओं का उद्घाटन कर रहे हैं। वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने SIR को लेकर राहुल और तेजस्वी पर सवाल दागते हुए कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को वोट का अधिकार नहीं है, क्योंकि वे युवाओं का रोजगार छीन रहे हैं।

इस बार चुनावी मंचों पर अगड़ा-पिछड़ा या दलित-महादलित की चर्चा कम और चुनाव आयोग, SIR और घुसपैठ का मुद्दा ज्यादा छाया है। पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा जैसे राज्यों में घुसपैठ पर राजनीति सामान्य है, लेकिन बिहार में इसका चुनावी मुद्दा बनना नया है।
क्या बदला है बिहार का मतदाता?
राज्य में एक ऐसा मतदाता वर्ग उभरता दिख रहा है जो सिर्फ जाति के आधार पर वोट नहीं करना चाहता। धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति राजनीतिक दलों को उम्मीदवार चयन और मुद्दों में अधिक सतर्क होने के लिए मजबूर कर सकती है, हालांकि इसका प्रभाव चुनावी नतीजों में कितना दिखेगा, यह भविष्य बताएगा।