जुबिली स्पेशल डेस्क
रविवार सुबह अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर बड़ा हमला किया और उन्हें “पूरी तरह तबाह” करने का दावा किया है। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, यूएस एयरफोर्स के B-2 बॉम्बर्स ने ईरान की प्रमुख न्यूक्लियर साइट्स-फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर बमबारी की, जिससे इन क्षेत्रों में भारी तबाही हुई।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इन हमलों को “पूरी तरह सफल” करार दिया, वहीं ईरान ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा है कि उसके परमाणु ठिकाने पूरी तरह सुरक्षित हैं और रेडिएशन लीक का कोई खतरा नहीं है।
इसी बीच, ईरान की संसद ने एक ऐसा प्रस्ताव पारित किया है, जिसका असर बिना एक भी मिसाइल दागे पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। प्रस्ताव में कहा गया है कि यदि हालात और बिगड़ते हैं तो ‘होर्मुज जलडमरूमध्य’ को बंद किया जा सकता है। हालांकि, इस पर अंतिम निर्णय ईरान के सर्वोच्च नेता को लेना है।

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गौरतलब है कि दुनिया के कुल तेल उत्पादन का लगभग 20% हिस्सा इसी रूट से गुजरता है, जो मुख्य रूप से एशियाई देशों — जैसे भारत, चीन और जापान-के लिए बेहद अहम है। इस रूट के बंद होने से वैश्विक तेल कीमतों में भारी उछाल आ सकता है।
वहीं, इस स्थिति से चिंतित अमेरिका अब चीन से मदद मांगता नजर आ रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने 22 जून को फॉक्स न्यूज पर बयान देते हुए चीन से अपील की कि वह ईरान को ‘होर्मुज स्ट्रेट’ बंद करने से रोके, क्योंकि चीन खुद भी अपने तेल आयात के लिए इस जलमार्ग पर निर्भर है। मिडिल ईस्ट के जानकारों का मानना है कि अमेरिका के हमले के बाद ईरान इस जलमार्ग को बंद करने के विकल्प पर गंभीरता से विचार कर सकता है। यदि ऐसा होता है, तो दुनियाभर के देशों को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है।
दुनिया के कुल तेल व्यापार का करीब 20% हिस्सा इसी रूट यानी ‘होर्मुज जलडमरूमध्य’ से होकर गुजरता है। इसमें सबसे ज़्यादा तेल एशियाई देशों को भेजा जाता है।
सिर्फ तेल ही नहीं, बल्कि बड़ी मात्रा में प्राकृतिक गैस की आपूर्ति भी इसी मार्ग से होती है। यह रास्ता मध्य पूर्व से भारत, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के लिए एक अहम व्यापारिक चैनल है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ईरान ने इस रूट को बंद करने का फैसला लागू किया, तो अमेरिका इसकी कड़ी प्रतिक्रिया दे सकता है।
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