जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली: दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बनने के बाद भारत अब एक और बदलाव की ओर बढ़ रहा है — वह है घटती प्रजनन दर। एक ओर जहां भारत की कुल जनसंख्या 1.46 अरब के पार पहुंच चुकी है, वहीं दूसरी ओर हर महिला द्वारा जन्म दिए जाने वाले बच्चों की औसत संख्या तेजी से घट रही है।
बदलती तस्वीर: 5 बच्चों से घटकर 2 से भी नीचे
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1970 में भारत में प्रति महिला औसतन 5 बच्चे जन्म लेते थे। यह संख्या 2024 में घटकर 1.9 तक आ गई है, जो कि 2.1 के ‘जनसंख्या प्रतिस्थापन स्तर’ से भी नीचे है।यानी अब भारतीय महिलाएं उस दर से भी कम बच्चे जन्म दे रही हैं, जिससे आबादी को आने वाली पीढ़ियों तक स्थिर रखा जा सके।
वर्षों में कैसे बदली प्रजनन दर?
वर्ष | औसत जन्म (प्रति महिला) |
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1970 | 5.0 बच्चे |
1997 | 3.3 बच्चे |
2009 | 2.7 बच्चे |
2019-21 | 2.0 बच्चे |
2024 | 1.9 बच्चे (कुछ रिपोर्ट्स अनुसार) |
यह गिरावट बताती है कि भारत अब उसी जनसंख्या विस्फोट की स्थिति में नहीं है जैसा दशकों पहले देखा गया था।
तो जनसंख्या फिर क्यों बढ़ रही है?
हालांकि प्रजनन दर में गिरावट आ रही है, लेकिन भारत की आबादी अभी भी दुनिया में सबसे अधिक बनी हुई है।
2025 तक भारत की जनसंख्या 1.46 बिलियन (146.3 करोड़) तक पहुंचने का अनुमान है। इसकी मुख्य वजह है युवा आबादी की संख्या का ज्यादा होना।
भारत की जनसंख्या प्रोफाइल (UNFPA रिपोर्ट के अनुसार):
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0-14 वर्ष: 24%
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10-19 वर्ष: 17%
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10-24 वर्ष: 26%
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15-64 वर्ष (वर्किंग एज): 68%
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65 वर्ष से अधिक: 7%
बुजुर्ग आबादी का प्रतिशत भले ही अभी कम है, लेकिन जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) बढ़ने से यह आंकड़ा भविष्य में तेजी से बढ़ेगा।
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पुरुषों के लिए औसत आयु: 71 वर्ष
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महिलाओं के लिए: 74 वर्ष (2025 तक अनुमानित)
घटती प्रजनन दर के कारण क्या हैं?
भारत में प्रजनन दर में गिरावट के पीछे कई सामाजिक और आर्थिक कारण हैं:
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महिलाओं की शिक्षा में वृद्धि:
अब पहले से ज्यादा महिलाएं पढ़-लिख रही हैं और उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। -
नौकरी और करियर को प्राथमिकता:
महिलाएं अब पारिवारिक जिम्मेदारियों से पहले अपने करियर को महत्व देने लगी हैं। -
फैमिली प्लानिंग और गर्भनिरोधक उपायों की पहुंच:
अब परिवार नियोजन को लेकर ज्यादा जागरूकता है और गर्भनिरोधक साधनों का अधिक प्रयोग हो रहा है। -
महिलाओं की स्वतंत्रता में वृद्धि:
पहले जहां महिलाएं शादी और मातृत्व को लेकर स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पाती थीं, अब स्थितियां बदल रही हैं।
1960 के दशक में जहां केवल 25% महिलाएं गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करती थीं, आज ये संख्या कई गुना बढ़ गई है।
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घटती प्रजनन दर भारत के लिए एक दोधारी तलवार की तरह है।
सकारात्मक पहलू:
जनसंख्या विस्फोट की समस्या धीरे-धीरे कम हो रही है। संसाधनों पर दबाव थोड़ा कम हो सकता है।
चुनौतीपूर्ण पहलू:
यदि यह दर बहुत ज्यादा गिरती है, तो भविष्य में वर्किंग एज आबादी घट सकती है और बुजुर्गों का अनुपात बढ़ सकता है, जिससे आर्थिक और सामाजिक ढांचे पर असर पड़ेगा।