
विश्व पर्यावरण की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें ! जब तक शिक्षा प्रदूषण समाप्त नहीं होगा, तब तक पर्यावरण सुरक्षित और स्वच्छ नहीं होगा । यह दर्शाता है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए केवल तकनीकी समाधान ही काफी नहीं हैं, बल्कि हमें अपनी शिक्षा और सामाजिक नैतिकता की जड़ों को भी शुद्ध करना होगा।
“शिक्षा प्रदूषण” आज की शिक्षा व्यवस्था की एक गंभीर समस्या को उजागर करता है। यदि शिक्षा व्यवस्था ही भ्रष्ट और दूषित हो जाए, तो वह समाज को सही मायने में शिक्षित नहीं कर सकती, और ऐसे में पर्यावरण सुरक्षा और स्वच्छता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर लोगों को जागरूक करना और उन्हें जिम्मेदार बनाना बेहद मुश्किल हो जाता है।

शिक्षा प्रदूषण: एक गंभीर समस्या
शिक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार और घोटाले “शिक्षा प्रदूषण” का कारण बनते हैं, बहुत महत्वपूर्ण है। जब शिक्षा व्यवस्था में ईमानदारी और गुणवत्ता की कमी होती है, तो इसके कई नकारात्मक परिणाम होते हैं:
ज्ञान की गुणवत्ता में गिरावट: जब परीक्षाएं, डिग्रियां और नियुक्तियां घोटालों से प्रभावित होती हैं, तो वास्तविक ज्ञान और योग्यता का महत्व कम हो जाता है। छात्र रटने और अनुचित साधनों पर अधिक निर्भर हो सकते हैं, जिससे उनकी सीखने की क्षमता प्रभावित होती है।
नैतिक मूल्यों का ह्रास: शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ जानकारी देना नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों का विकास करना भी है। जब छात्र और शिक्षक भ्रष्टाचार को सामान्य मान लेते हैं, तो ईमानदारी, निष्ठा और सामाजिक जिम्मेदारी जैसे मूल्य कमजोर पड़ जाते हैं।
अविश्वास और निराशा: शिक्षा में घोटालों से लोगों का शिक्षा प्रणाली पर से विश्वास उठ जाता है। इससे समाज में निराशा बढ़ती है और लोग महसूस करते हैं कि योग्यता के बजाय पैसे या पहुँच का महत्व अधिक है।
योग्यताहीनता का बढ़ना: फर्जी डिग्री, नकली प्रमाणपत्र और पैसे देकर नौकरी पाने जैसे मामले अयोग्य व्यक्तियों को महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचा देते हैं। ऐसे लोग न तो पर्यावरण जैसे संवेदनशील मुद्दों को समझ पाते हैं और न ही उनके समाधान में योगदान दे पाते हैं।
शिक्षा प्रदूषण और पर्यावरण सुरक्षा का संबंध
जब शिक्षा प्रणाली स्वयं “प्रदूषित” होती है, तो यह पर्यावरण सुरक्षा के प्रयासों को कैसे बाधित करती है, इसे समझना महत्वपूर्ण है:
जागरूकता की कमी: एक प्रदूषित शिक्षा प्रणाली लोगों को पर्यावरण के खतरों और उनके प्रभावों के बारे में सही और पर्याप्त जानकारी नहीं दे पाती है। जब लोगों को यह नहीं पता होगा कि प्लास्टिक का उपयोग क्यों हानिकारक है या पेड़ों को काटना क्यों गलत है, तो वे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील कैसे होंगे?
व्यवहार परिवर्तन में बाधा: शिक्षा सिर्फ जानकारी नहीं देती, बल्कि लोगों को जिम्मेदार व्यवहार अपनाने के लिए भी प्रेरित करती है। यदि शिक्षा प्रणाली ही गलत मूल्यों को बढ़ावा देती है, तो लोग पर्यावरण के प्रति लापरवाह हो सकते हैं।
अनुसंधान और नवाचार का अभाव: पर्यावरण की समस्याओं को हल करने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी नवाचार महत्वपूर्ण हैं। एक भ्रष्ट शिक्षा व्यवस्था योग्य शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों को आगे नहीं बढ़ने देती, जिससे नए समाधानों का विकास रुक जाता है।
गलत नीतियों का निर्माण: यदि शिक्षा के माध्यम से योग्य और ईमानदार नेता और नीति निर्माता तैयार नहीं होते, तो पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रभावी नीतियां बनाना और उन्हें लागू करना मुश्किल हो जाता है। अयोग्य अधिकारी पर्यावरण पर ध्यान देने के बजाय व्यक्तिगत लाभ को प्राथमिकता दे सकते हैं।
(पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर)
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