जुबिली न्यूज डेस्क
मुंबई। अक्टूबर 2010 की दोपहर, मुंबई के पास डोंबिवली के पिंपलेश्वर मंदिर में सन्नाटा पसरा था। गिनती के श्रद्धालु भगवान के दर्शन को पहुंचे थे। तभी मंदिर के मुख्य दरवाजे पर एक महिला और एक पुरुष आए, उनके हाथ में एक बड़ा सूटकेस था। उन्होंने सूटकेस को वहीं रखा और वॉचमैन से कहा, “थोड़ी देर में लौटेंगे।”
वॉचमैन ने सोचा, शायद दोनों दर्शन के लिए गए हैं। लेकिन घंटों बीत गए, वो लौटे नहीं। संदेह हुआ, पुलिस को बुलाया गया। पुलिस ने सूटकेस खोला, तो वहां जो दिखा, उससे सबकी रूह कांप गई—सूटकेस में 25-26 साल के युवक की लाश थी।
उसके मुंह और नाक पर टेप लगी थी। पुलिस ने शव का पंचनामा किया, पोस्टमार्टम के लिए भेजा और छानबीन शुरू की। जल्द ही पता चला कि दिवा इलाके से कुछ दिन पहले एक युवक लापता हुआ था। परिवार को बुलाया गया और शव की पहचान हुई—युवक का नाम था नीलेश सोनार। नीलेश के पिता की ज्वेलरी की दुकान थी। सवाल उठे: कौन थे वो महिला-पुरुष? क्यों और कैसे हुई नीलेश की हत्या?
ट्रेन से शुरू हुई मोहब्बत, खौफनाक अंजाम तक पहुंची
इस कहानी की शुरुआत मडगांव-मुंबई एक्सप्रेस से होती है। उसी ट्रेन में 21 साल की प्राजक्ता शेलार और 22 साल के प्रफुल्ल घाडी की मुलाकात हुई थी। दोनों पास-पास की सीटों पर बैठे थे। बातचीत शुरू हुई, दोस्ती हुई और फिर मोहब्बत।
मुंबई पहुंचते-पहुंचते दोनों के दिल एक हो चुके थे। फोन पर लंबी बातें, साथ में फिल्में देखना, घूमना—यह सब चलता रहा। फिर उन्होंने दिवा इलाके में किराए का कमरा लिया और लिव-इन में रहने लगे।कुछ महीने सब ठीक चला, लेकिन एक दिन प्रफुल्ल की नौकरी चली गई। पैसों की तंगी ने रिश्ते पर दबाव डाला। और यहीं से लालच और धोखे का खेल शुरू हुआ।
नीलेश को बनाया शिकार
प्राजक्ता की नजर पास की ज्वेलरी शॉप में काम करने वाले नीलेश पर पड़ी। वो उसे अपनी मोहब्बत के जाल में फंसाने लगी। बातों-बातों में दोस्ती, और फिर रोमांस।
फिर एक दिन प्राजक्ता ने नीलेश को फोन किया—“मैं घर पर अकेली हूं, आओ।” नीलेश बेखबर, दिल में अरमान लिए पहुंच गया। प्राजक्ता ने उससे कहा, “पहले नहा लो।” उसने कपड़े और सोने की चेन उतारी, और बाथरूम चला गया।
इधर प्राजक्ता ने असली चेन लेकर उसकी जगह नकली चेन रख दी। लेकिन जब नीलेश नहाकर लौटा, तो चेन पहचान गया। सवाल पूछने लगा, गुस्सा हुआ। धमकी दी: “पुलिस बुलाऊंगा!”
प्रेमी ने कर दिया कत्ल
प्राजक्ता घबरा गई। उसने प्रफुल्ल को इशारा किया, जो कमरे में ही छिपा था। प्रफुल्ल ने पीछे से आकर नीलेश का गला दबा दिया। फिर मुंह और नाक पर टेप लगा दी। पुलिस के मुताबिक, नीलेश के प्राइवेट पार्ट को जलाने की कोशिश भी की गई।
दोनों डर गए। लाश को छिपाकर नीलेश की चेन बेचने निकल पड़े। पैसों से एक बड़ा सूटकेस खरीदा, नीलेश की लाश उसमें रखी और ठिकाने लगाने निकल पड़े। पर किस्मत ने साथ नहीं दिया। ऑटो मंदिर के पास खराब हो गया। वहां से सूटकेस लेकर मंदिर पहुंचे और गार्ड से कहा कि थोड़ी देर में आएंगे… लेकिन वो कभी नहीं लौटे।
पुलिस ने ऐसे पकड़ा सुराग
लाश की पहचान के बाद पुलिस नीलेश के पिता की दुकान पहुंची। एक शख्स ने बताया कि उसने नीलेश को आखिरी बार प्राजक्ता के घर की ओर जाते देखा था। पुलिस वहां पहुंची—दरवाजे पर ताला मिला।
आसपास पूछताछ में पता चला कि प्राजक्ता घाटकोपर की रहने वाली थी। वहां पहुंचने पर भी पता चला कि वो कई दिनों से घर नहीं आई। पुलिस ने परिवार को नंबर दिया और लौट आई।कुछ दिन बाद परिवार से फोन आया—“प्राजक्ता शिरडी गई है।” पुलिस ने दिवा इलाके में जाल बिछाया। जब प्राजक्ता और प्रफुल्ल शिरडी से लौटे, पुलिस ने दबोच लिया।
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पश्चाताप करने साईं दरबार पहुंचे थे कातिल
पुलिस के सामने दोनों ने गुनाह कबूल कर लिया। बताया कि शिरडी साईं बाबा के दरबार में अपने पाप का प्रायश्चित करने गए थे। मामला कोर्ट पहुंचा। दिसंबर 2012 में ठाणे सेशन कोर्ट ने दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।एक ट्रेन में शुरू हुआ प्यार, लालच में बदला, और अंत में ले गया सूटकेस में मौत तक।इस केस ने इश्क, धोखा, लालच और क्राइम के उस चेहरे को सामने रखा, जो एक खौफनाक हकीकत बनकर इतिहास में दर्ज हो गया।