जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सेम सैक्स मैरिज को कानून मंजूरी देने की याचिका पर सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस की पांच पीठ की संविधान पीठ ने कहा कि भले ही अदालत समलैंगिकों को शादी करने का अधिकार दे दे, लेकिन गोद लेने, उत्तराधिकार और विरासत समेत कई अधिकारों को देने से कोर्ट बचेगी क्योंकि ये सभी धर्म आधारित कानूनों से जुड़े हुए हैं।

सुनवाई के चौथे दिन प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा अदालत कक्ष में उपस्थित रहे जबकि न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एस आर भट ने ऑनलाइन माध्यम से सुनवाई में भाग लिया। बुधवार को भी इस मामले में सुनवाई जारी रहेगी। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा, आइए बताते हैं।
‘धर्म-आधारित पर्सनल लॉ से जुड़ा है मामला’
अदालत ने कहा, ‘इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ये मुद्दे आंतरिक रूप से धर्म-आधारित पर्सनल लॉ से जुड़े हुए हैं। विशेष विवाह अधिनियम एक धर्मनिरपेक्ष कानून है और इसका उद्देश्य अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक विवाहों को सुविधाजनक बनाना है। लेकिन इस कानून के तहत शादी करने वाले हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख विरासत और अन्य लाभों के लिए अपने पर्सनल लॉ का सहारा लेते हैं।’
‘वसीयत और उत्तराधिकारी का क्या होगा?’
पीठ ने याचिकाकर्ता से सवाल किया ‘जब आप कानून निर्माताओं पर एक सकारात्मक दायित्व डाल रहे हैं, तो क्या कानून के निर्माण का अनुमान लगाना संभव है?’ पीठ ने कहा, भविष्य निधि, पेंशन.. यह वास्तव में यहीं नहीं रुकता, पति-पत्नी को एक-दूसरे के बीच प्रदान की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक सुरक्षा वगैरह..। अगर हम इसका उपयोग करने की घोषणा करते हैं, तो जीवनसाथी के रूप में पुरुष व महिला के लिए स्थानापन्न व्यक्ति को प्रतिस्थापित करते हैं। पीठ ने आगे कहा, मान लीजिए, जब दो हिंदू महिलाओं ने शादी कर ली है या दो हिंदू पुरुषों ने शादी कर ली है और उनमें से एक की मृत्यु हो गई है .. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम कहता है, जब हिंदू पुरुष की बिना वसीयत मृत्यु हो जाती है, तो संपत्ति किसकी होगी। एक महिला को क्या मिलेगा और एक पुरुष को क्या मिलेगा, इसके बीच एक स्पष्ट अंतर है। जब एक महिला की बिना वसीयत मृत्यु हो जाती है तो उत्तराधिकार की एक अलग रेखा होती है।
‘व्यक्तिगत कानूनों में करना पड़ेगा बदलाव’
पीठ ने कहा कि अगर इसे एसएमए में पढ़ा जाता है, तो अन्य व्यक्तिगत कानूनों में भी बदलाव करना होगा और इससे कोई परहेज नहीं है, और यह भी बताया कि धर्म के प्रति तटस्थ होकर एसएमए को एक अपवाद बनाया गया था। यह कहते हुए कि एसएमए और पर्सनल लॉ के बीच संबंध से इनकार नहीं किया जा सकता, पीठ ने कहा, लेकिन एसएमए की धारा 21 (ए) इंगित करती है कि विवाह के अन्य सभी हिस्से पर्सनल लॉ द्वारा शासित होते हैं।
‘जो अपने धर्म को छोड़ना नहीं चाहते हैं उनका क्या?’
CJI ने कहा, ‘शादी के परिणामी विभिन्न अधिकारों को नियंत्रित करने वाले 35 कानून हैं। तर्क यह है कि सुप्रीम कोर्ट को खुद को केवल एसएम एक्ट तक ही सीमित रखने की जरूरत है। इसका मतलब है कि हम समलैंगिक जोड़ों के लिए एक गैर-धार्मिक विवाह ढांचा तैयार करेंगे। क्या अदालत तब समान लिंग के दो धार्मिक व्यक्तियों को समान लाभ देने से इनकार नहीं करेगी, जो अपने धर्म को छोड़ना नहीं चाहते हैं? खंडपीठ ने कहा, ‘यह सब एसएम अधिनियम तक ही सीमित नहीं किया जा सकता है। हमें एसएम एक्ट से आगे जाना होगा। एसएम एक्ट और पर्सनल लॉ के बीच की कड़ी को न तो नकारा जा रहा है और न ही खत्म किया जा रहा है।’
LGBTQIA+ के लिए बोलने के हकदार हैं?’
न्यायमूर्ति भट ने एक और सवाल पूछा, ‘क्या याचिकाकर्ता पूरे LGBTQIA+ समुदाय के लिए बोलने के हकदार हैं? क्या वे वास्तव में पूरे समुदाय के प्रतिनिधि हैं? अलग-अलग विचार हो सकते हैं, अनसुनी आवाजें हो सकती हैं जो अपनी परंपरा को बचाए रखना चाहते हैं। और फिर भी, जिस क्षण हम एसएम अधिनियम के तहत समान-लिंग विवाह अधिकारों को धर्मनिरपेक्ष या संवैधानिक बनाते हैं, हम उन्हें पर्सनल लॉ के तहत उनके अधिकारों से वंचित कर रहे होंगे।
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