जुबिली स्पेशल डेस्क
समाजवादी पार्टी इस वक्त अपने बुरे दौर से गुजर रही है। यूपी में उसका वनवास जारी है। पिछले विधान सभा चुनाव में भी सपा कोई खास कमाल नहीं कर सकी। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद सपा के लिए चुनौती और बढ़ गई है।
अखिलेश यादव ने जब राजनीति में इंट्री मारी थी तब उनका सर पर पिता साया था। अखिलेश यादव जो भी फैसला लेते थे उनमें कही न कही मुलायम की छाप नजर आती थी।
इतना ही नहीं मुलायम भी अपने बेटे को राजनीति की कुछ अहम टिप्स देते थे लेकिन उनके निधन के बाद अखिलेश यादव पर अब दोहरी जिम्मेदारी बढ़ गई है। पहला तो वो अपनी पार्टी को दोबारा जिंदा करना है और इस बार उनको ये जिम्मेदार अकेले उठानी पड़ेगी।
दूसरी ओर परिवार को एकजुट रखना अब अखिलेश के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। मुलायम की जिंदगी में उन्होंने भले ही अपने चाचा शिवपाल यादव से दूरी बना ली हो लेकिन अब शायद वो इस बात को समझ गए है कि राजनीति में अगर आगे जाना है तो परिवार को एकजुट रखना बेहद जरूरी है।

इसका ताजा सबूत तब देखने को मिला जब मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने मंगलवार को स्टार प्रचारकों की लिस्ट जारी कर दी। इस लिस्ट में चाचा शिवपाल यादव को जगह दी गई है। अभी तक अखिलेश यादव अपने चाचा से किनारा करते हुए नजर आते थे। उनको सपा का नेता न मानकर प्रसपा का नेता बताते थे।
इस वजह से उन्होंने शिवपाल को रामपुर और आजमगढ़ उपचुनावों के दौरान प्रचार से दूर रखा गया था। यहां तक कि सपा की बैठकों में भी शिवपाल को नहीं बुलाया जाता था। डिंपल के नामांकन में भी शिवपाल नजर नहीं आए थे। अब दोबारा शिवपाल को प्रचारक बनाने के पीछे अखिलेश की रणनीति कम चाचा के आगे सरेंडर करने की ज्यादा हवा दी जा रही है। हालांकि अखिलेश यादव अब अपने चाचा को लेकर थोड़े नम्र पड़ते नजर आ रहे हैं।
मैनपुरी का चुनाव सपा के लिए उतना आसान नहीं होने जा रहा है जितना अखिलेश यादव समझ रहे हैं क्योंकि बीजेपी ने यहां पर दो बार सांसद और एक बार विधायक रहे रघुराज शाक्य को चुनावी मैदान में उतारकर सपा की मुश्किलें जरूर बढ़ा दी है। आपकी जानकारी के लिए बताना चाहेंगे कि रघुराज शाक्य न केवल शिवपाल यादव बल्कि मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाते रहे हैं।
लोकसभा उपचुनाव के लिए मुलायम सिंह यादव के परिवार में एकजुटता के दावों पर खुद शिवपाल ने सवाल खड़े कर दिए हैं। सोमवार को नामांकन से पहले सपा के प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने कहा कि शिवपाल यादव से पूछकर ही प्रत्याशी तय किया गया है।
शिवपाल को स्टार प्रचारक बनाने के पीछे भाजपा के दांव को काटने की रणनीति भी मानी जा रही है। अब शिवपाल के स्टार प्रचारक बनने से उनके समर्थक डिंपल के साथ जुड़े रह सकते हैं। इतना ही नहीं अखिलेश यादव पुरानी गलतियों से भी सबक ले रहे हैं और उनकी कोशिश है कि किसी भी तरह से परिवार की एकता बनी रही ताकि चुनाव में उन्हें और नु कसान न उठाना पड़े।
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