जुबिली पोस्ट ब्यूरो
लखनऊ। बच्चों में कृषि के प्रति आकर्षण बढ़ाने तथा कुपोषण की समस्या को दूर करने को लेकर अब गांव के साथ- साथ शहरों के स्कूलों में ताजे जैविक फल सब्जी की पैदावार के लिए किचन गार्डेन विकसित किया जायेगा।
युवाओं में कृषि के प्रति उदासिनता को देखते हुए गांवों के स्कूलों में जहां अतिरिक्त जमीन है वहां किचन गार्डेन स्थापित किया जायेगा और शहरों में जहां अतिरिक्त जमीन नहीं है वहां छतों पर और दीवार के सहारे किचन गार्डेन विकसित किया जायेगा।
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इसके लिए फलों एवं सब्जियों की ऐसी किस्मों का चयन किया जायेगा, जो मिट्टी के गमलों जैसे वस्तुओं में तैयार हो तथा इसके फल एवं सब्जी पोषक तत्वों से भरपूर हों। किचन गार्डेन में तैयार होने वाली सब्जियों का उपयोग स्कूलोें के मिड डे मील में किया जायेगा।
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ ने किचन गार्डेन के विकास के लिए गांवों और शहरों के लिए अलग- अलग माडल तैयार कर लिए हैं और इसके लिए स्कूलों को तकनीकी सहयोग देने की भी पेशकश की है।
संस्थान ने इसके लिए एक कार्यशाला का भी आयोजन किया है। स्कूल किचन गार्डेन के लिए केन्द्र सरकार से वित्तीय मदद भी ले सकते हैं। संस्थान के निदेशक डा. शैलेन्द्र राजन ने बताया कि देश के कई राज्यों के स्कूलों में किचन गार्डेन का विकास किया गया है और यहां शिक्षक और छात्र आपसी सहयोग के ताजे फल और सब्जियों की पैदावार लेते हैं और इसका उपयोग खानपान में होता है।

केरल के बहुत से स्कूलों में किचन गार्डेन है। किचन गार्डेन से बच्चों को न केवल प्रकृति को समझने में मदद मिलेगा बल्कि उनकी मेहनत से तैयार हुए ताजे फलों एवं सब्जियों को लेकर विशेष आकर्षण भी पैदा होगा। बच्चे पर्यावरण और विज्ञान को समझ पायेंगे तथा जल संसाधन के सदुपयोग और खाद तैयार करना सीख पायेंगे।
डा. राजन ने बताया कि शहरों में इससे बच्चों खानपान की आदतों में बदलाव होगा। शहरों के बच्चों में फास्ट फूड के प्रति तेजी से आकर्षण बढ़ रहा है जो सब्जी बहुत कम मात्रा में लेते हैं। ऐसे बच्चे अपनी मेहनत से तैयार सब्जियों का भरपूर लाभ ले पायेंगे।
गार्डेन में सब्जियों के अलावा जड़ी बूटी, औषधीय पौधें और मसालों की भी पैदावार ली जा सकती है। कार्यक्रम के लिए कृषि विभाग, कृषि विज्ञान केन्द्र से तकनीकी तथा धार्मिक संस्थाओं से आर्थिक मदद ली जा सकती है।

मनरेगा के माध्यम से भी सहायता ली जा सकती है। जिन स्कूलों के पास जमीन नहीं है वहां मिट्टी के बर्तन, ड्रम और मिट्टी की बोरी में भी पौधे लगाये जा सकते हैं। इसके साथ ही केन्द्र सरकार से प्रति स्कूल 5000 रुपये की वित्तीय सहायता ली जा सकती है।
संस्थान स्कूलों को कुछ ऐसे फलों के पौधे उपलब्ध कराने पर विचार कर रहा है जो कम से कम जगह में हो और विटामिन सी की भरपूर मात्रा दे। उन्होंने कहा कि बहुत से स्कूलों के अहाते में बड़े- बड़े पेड़ और फूल के पौधे होते हैं जिनसे बड़ी मात्रा में सूखी पत्तियां इकट्ठी की जाती है, जिससे आसानी से कम्पोस्ट बनाया जा सकता है जो जैविक उत्पाद के काम आयेगा।
संस्थान उत्तर प्रदेश के मलिहाबाद के कुछ स्कूलों को तकनीकी सहायता के साथ ही उपयोगी पौधों भी उपलब्ध कराने पर विचार कर रहा है, जिससे बच्चों को पौष्टिक आहार मिल सके।
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