न्यूज डेस्क
उत्तर प्रदेश में 12 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनाव से बीजेपी सरकार पर भले ही कोई फर्क न पड़े, लेकिन सूबे की सियासत में इस उनचुनाव ने हलचल मचा दी है। जानकार इन चुनावों को सीएम योगी के लिए लिटमस टेस्ट जैसा बता रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में योगी की मेहनत और मोदी के चेहरे ने बीजेपी को प्रचण्ड जीत दिलाई, लेकिन उपचुनाव में मोदी न तो वोट मांगने आएंगे न ही उनके चेहर को आगे कर चुनाव लड़ा जाएगा। इस बार चुनाव योगी के विकास के कार्यो और उनके चेहरे पर लड़ा जाएगा।
दूसरी ओर योगी पर गोरखपुर, फूलपुर और कैराना उपचुनाव में मिली हार के दाग को मिटाने के साथ ही बीजेपी के पुराने इतिहास को बदलने की जिम्मेदारी भी होगी। जिसे देखने पर इस बात का पता चलता है बीजेपी का उपचुनाव के दौरान प्रदर्शन हमेशा खराब रहा है।

सीएम योगी ने 12 सीटों पर होने वाले उप चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम पर मंथन शुरू कर दिया है। शीर्ष नेतृत्व ने पहले ही यह साफ कर दिया है कि नवनिर्वाचित सांसदों के पुत्र-पुत्रियों को मैदान में लाने की बजाय पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को ही मौका दिया जाए। इसके लिए जिताऊ चेहरों की तलाश शुरू हो गई है।
इसके अलावा चुनाव की तैयारी, सदस्यता अभियान, विभागों का पुनर्गठन, मंत्रिमंडल विस्तार और संभावित कार्यसमिति पर भी चर्चा हुई, जिन 12 सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें नो सीटों पर बीजेपी का कब्जा रहा है। इनमें से रामपुर सपा के पास और अंबेडकरनगर की जलालपुर सीट बसपा के कब्जे में थी। इसके अलावा एक सीट बीजेपी के सहयोगी अपना दल के पास थी।
विधानसभा चुनाव 2017 में बीजेपी ने सहयोगी समेत इन 12 सीटों पर चार अनुसूचित जाति, तीन पिछड़े, दो ब्राह्मण, दो क्षत्रिय और एक कायस्थ पर दांव लगाया था। रामपुर में आजम खां के खिलाफ शिवबहादुर सक्सेना और जलालपुर में बसपा के रीतेश पांडेय के खिलाफ राजेश सिंह चुनाव मैदान में उतरे लेकिन हार गये थे। बीजेपी इन दोनों सीटों को भी हासिल करने के लिए जी जान से जुटेगी।
बीजेपी ने इन सीटों पर जीत के लिए 13 मंत्रियों को जिम्मेदार सौंपी है। उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और प्रदेश मंत्री देवेंद्र चौधरी को रामपुर और कानून मंत्री बृजेश पाठक के साथ ही प्रदेश मंत्री संतोष सिंह को जलालपुर (अंबेडकरनगर) की जिम्मेदारी दी गई है। संकेत यही हैं कि बीजेपी एक-दो सीटों को छोड़कर 2017 का ही जातीय फार्मूला कायम रखेगी।
बीजेपी को उपचुनाव में इस बार मायावती का भी साथ मिला है। समाजवादी पार्टी (सपा) से रिश्ते तोड़ने के बाद मायावती इस बार उपचुनाव में मैदान में उतर रही हैं। आपको बता दें कि आमतौर पर बसपा उपचुनाव से दूरी कर रखती हैं, लेकिन लोकसभा में 10 सीटों पर जीत के बाद उत्साहित मायावती ने करीब नौ साल बाद किसी उपचुनाव में अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है।
अगर मायावती उपचुनाव न लड़ती लड़ाई सपा और बीजेपी सीधे होती है, लेकिन अब बसपा के मैदान में उतरने के बाद त्रिकोणिय लड़ाई होने की संभावना है। जानकारों की माने तो मायावती के उपचुनाव लड़ने के फैसले के बाद बीजेपी ने राहत की सांस ली है। बीजेपी नेताओं का मानना है कि बसपा के मैदान में उतरने से सपा के वोट कटेंगे और बीजेपी का फायदा होगा।
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