
अली रजा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की जनता के हितों को ध्यान में रख कर जनपयोगी योजना का सुचारू रूप से संचालित कर पात्रों को चिन्हित कर सरकार द्वारा जनपयोगी योजनाओं से लाभावन्नित करने के लिए प्रदेश में कई विभाग कार्य कर रहे हैं। लेकिन जब विभागीय कर्मचारी ही उसमें सेंधमारी करने की जुगत में लग जाने की वजह से विभागों की साख पर बट्टा लगता रहता है।
ताजा मामला उत्तर प्रदेश सहकारिता विभाग से जुड़ा हुआ है, जहां अधिकारियों और कर्मचारियों की मनमानी की पराकाष्ठा किसी से छुपी हुई नहीं है। चाहे किसानों को दीर्घकालीन ऋण देने वाले उत्तर प्रदेश भूमि विकास बैंक में हुई मनमानी भर्तीयों जैसे प्रकरण रहे हो या फिर जिला सहकारी बैंकों में 53 सहायक प्रबंधकों की नियक्तियों का आदि का मामला हो।
प्रबंध तंत्र की मानमानिया ही इस बदहाली का कारण रही है जिसका नतीजा यह है कि बैलेंस सीट की जांच में लगभग 400 करोड़ रूपए का हिसाब ही नहीं मिल पा रहा है।
बीते दिनों आरबीआई, सहकारी बैंक पर्यवेक्ष विभाग ने मई 2019 को आयुक्त एवं निबंधक सहकारिता को अवगत कराया कि नाबार्ड द्वारा 31 मार्च 2017 की स्थिति में 38 जिला सहकारी केंद्रीय बैकों, राज्य सहकारी बैंकों का निरीक्षण कर जो रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसके अनुसार 22 जिला सहकारी बैंकों का संचालन वर्तमान एवं भविष्य में जमाकर्ताओं के हित में नहीं है।

नाबार्ड ने इन बैकों के लाइसेन्स जारी रखने की अनुशंसा तो कर दी मगर ये भी कह दिया कि हमारे लिए यह चिन्ता का विषय है कि इन बैकों के लाइसेंस को जारी रखने से जमाकर्ताओं के हित को नुकसान हो सकता है। इसलिए इस मामले की जांच कर बैंकों की वित्तीय व्यवस्था को सुधारा जाय।
इसके बाद आयुक्त एवं निबंधक सहकारिता ने अविलम्ब विभागीय अधिकारियों को जांच के निर्देश दिया है। साथ ही बैंकों को वित्तीय स्थिति तथा प्रबंधन सुधारने के लिए वित्तीय सलाहकार सहकारिता से विचार-विर्मश करके कार्ययोजना तैयार कर आवश्यक कार्यवाही के लिए निर्देशित किया।
इसके बाद जिला सहकारी बैंक अलीगढ़, इलाहाबाद, आजमगढ़, बलिया, बस्ती, बहराइच, बदायूं, देवरिया, फतेहपुर, गाजियाबाद, गोरखपुर, हरदोई, वाराणसी, सुल्तानपुर, सीतापुर, सिद्घार्तनगर, कानपुर, मैनपुरी, मथुरा, मऊ और गाजीपुर के सचिव, मुख्य कार्यपालक अधिकारी को जांच पत्र भेजा जा चुका है।
जानकारों की माने तो इस अनियमिततायें सामने आने पर उत्तर प्रदेश सहकारी बैंके के साथ ही प्रदेश की सभी 50 जिला सहकारी बैंकों के वित्तीय वर्ष 2010-12 से 2015-16 की बैलेंस सीट की जांच शुरू कराई। दो माह से चल रही इस जांच में पता चला कि पूर्ववर्ती बसपा और सपा सरकारों के दौरान जिला सहकारी बैकों में बड़े पैमाने पर घोटाले हुए। खाताधारकों के हस्ताक्षर, फोटोग्राफ और केवाईसी तक बैंक सिस्टम में अपलोड नहीं हैं। गलत तरीके से कुछ लोगों को बड़े लोन देकर बैंकों की कमर तोड़ी गयी। 35 से अधिक जिला सहकारी बैकों की बैलेंस सीट की जांच में अब तक करीब 400 करोड़ रुपए के घोटाले सामने आ चुके हैं।
यह भी पढ़ें : आईएएस अजय भल्ला होंगे नए केंद्रीय गृह सचिव
यह भी पढ़ें : तोता बन गया बाज, नेताओं पर गाज
Jubilee Post | जुबिली पोस्ट News & Information Portal
