अशोक कुमार
विश्वविद्यालय का मूल अर्थ स्वायत्तता एवं स्वतंत्र विचारों की अभिव्यक्ति से गहराई से जुड़ा हुआ है।
स्वायत्तता का महत्व
विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता इसलिए दी जाती है ताकि वे बाहरी दबावों, विशेषकर राजनीतिक या आर्थिक प्रभावों से मुक्त होकर अपने शैक्षिक और अनुसंधान संबंधी कार्यों को स्वतंत्र रूप से संचालित कर सकें।
इसका मतलब है : शैक्षणिक स्वतंत्रता: विश्वविद्यालय अपने पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों और शोध विषयों को स्वयं निर्धारित कर सकते हैं।
इससे उन्हें नए विचारों और ज्ञान के क्षेत्रों का अन्वेषण करने की स्वतंत्रता मिलती है। प्रशासनिक स्वतंत्रता: विश्वविद्यालय अपने आंतरिक मामलों, जैसे नियुक्तियाँ, मूल्यांकन और वित्तीय प्रबंधन, में स्वतंत्र होते हैं। यह उन्हें कुशलतापूर्वक कार्य करने और अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप निर्णय लेने में मदद करता है।
शोध और नवाचार : स्वायत्तता शोधकर्ताओं को बिना किसी पूर्वाग्रह या दबाव के नए विचारों का पीछा करने और नवाचार करने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह ज्ञान के विकास और समाज की प्रगति के लिए आवश्यक है।
स्वतंत्र विचारों की अभिव्यक्ति
विश्वविद्यालय हमेशा से ऐसे स्थान रहे हैं जहाँ विचारों का खुला आदान-प्रदान होता है। यह स्वतंत्र अभिव्यक्ति के कई पहलुओं को समाहित करता है : मुक्त बहस और चर्चा: विश्वविद्यालय छात्रों और शिक्षकों को विभिन्न विषयों पर खुले तौर पर बहस और चर्चा करने के लिए एक मंच प्रदान करते हैं, भले ही वे विचार कितने भी विवादास्पद क्यों न हों। यह आलोचनात्मक सोच और तार्किक विश्लेषण को बढ़ावा देता है।
अकादमिक स्वतंत्रता : शिक्षकों और शोधकर्ताओं को अपने विषयों के भीतर शोध करने, पढ़ाने और अपने निष्कर्षों को प्रकाशित करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, भले ही वे स्थापित विचारों से भिन्न क्यों न हों।
विविधता और समावेशन : एक विश्वविद्यालय को विभिन्न पृष्ठभूमि, विचारों और दृष्टिकोणों वाले व्यक्तियों का स्वागत करना चाहिए। यह विचारों की विविधता को बढ़ाता है और एक समृद्ध सीखने के माहौल को बढ़ावा देता है।
क्यों ये तत्व महत्वपूर्ण हैं?
यह स्वायत्तता और स्वतंत्र विचारों की अभिव्यक्ति ही है जो विश्वविद्यालयों को केवल डिग्री देने वाले संस्थानों से कहीं अधिक बनाती है।
वे ज्ञान के केंद्र होते हैं जहाँ
- नए विचारों का जन्म होता है।
- मौजूदा विचारों को चुनौती दी जाती है।
- सामाजिक समस्याओं का समाधान खोजा जाता है।
- भविष्य के नेताओं और विचारकों का निर्माण होता है।
जब विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जाता है, तो उनकी मूल पहचान कमजोर हो जाती है और समाज में उनकी भूमिका सीमित हो जाती है।
(लेखक : पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर)