जुबिली स्पेशल डेस्क
केंद्र सरकार ने देश की उच्च शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को संसद में ‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक 2025’ पेश किया।
इस विधेयक का उद्देश्य उच्च शिक्षा के नियमन, मान्यता और प्रशासन से जुड़ी मौजूदा जटिल और बहुस्तरीय व्यवस्था को पूरी तरह पुनर्गठित करना है। सरकार ने इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेज दिया है, जहां विस्तृत चर्चा के बाद इसे अंतिम रूप दिया जाएगा।
एक शीर्ष आयोग, तीन स्वतंत्र परिषदें
विधेयक के तहत उच्च शिक्षा के लिए एक कानूनी शीर्ष आयोग गठित करने का प्रस्ताव है, जो नीति निर्धारण और समन्वय की सर्वोच्च संस्था होगी। यह आयोग सरकार को रणनीतिक सलाह देगा, भारत को वैश्विक शिक्षा केंद्र बनाने पर काम करेगा और भारतीय ज्ञान परंपरा व भाषाओं को उच्च शिक्षा से जोड़ने की दिशा में पहल करेगा।
आयोग की संरचना क्या होगी?
प्रस्तावित आयोग में एक अध्यक्ष, वरिष्ठ शिक्षाविद, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ, केंद्र सरकार के प्रतिनिधि और एक पूर्णकालिक सदस्य सचिव शामिल होंगे। आयोग के अधीन तीन स्वतंत्र परिषदें गठित की जाएंगी, ताकि शक्तियों का टकराव न हो और व्यवस्था पारदर्शी बनी रहे।
तीनों परिषदों की जिम्मेदारियां
नियामक परिषद (Regulatory Council): यह परिषद उच्च शिक्षा संस्थानों की निगरानी करेगी। प्रशासनिक व्यवस्था, वित्तीय पारदर्शिता, शिकायत निवारण और शिक्षा के व्यावसायीकरण पर रोक लगाने की जिम्मेदारी इसी के पास होगी।
मान्यता परिषद (Accreditation Council):संस्थानों की मान्यता प्रक्रिया इस परिषद के अधीन होगी। यह परिणाम आधारित मानदंड तय करेगी, मान्यता एजेंसियों को सूचीबद्ध करेगी और सभी मान्यता संबंधी जानकारी सार्वजनिक करेगी।
मानक परिषद (Standards Council): यह परिषद शैक्षणिक गुणवत्ता सुनिश्चित करेगी। पाठ्यक्रम के परिणाम, क्रेडिट ट्रांसफर, छात्र गतिशीलता और शिक्षकों के न्यूनतम मानकों को तय करने का काम करेगी।
किन संस्थानों पर लागू होगा कानून?
यह कानून केंद्रीय व राज्य विश्वविद्यालयों, डीम्ड यूनिवर्सिटी, IIT, NIT जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों, कॉलेजों, ऑनलाइन और दूरस्थ शिक्षा संस्थानों तथा ‘इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस’ पर लागू होगा।
हालांकि मेडिकल, कानून, फार्मेसी, नर्सिंग और संबद्ध स्वास्थ्य शिक्षा सीधे इसके दायरे में नहीं आएंगी, लेकिन उन्हें भी नए शैक्षणिक मानकों का पालन करना होगा।
स्वायत्तता के साथ सख्त जवाबदेही
विधेयक में ग्रेडेड ऑटोनॉमी का प्रावधान किया गया है। बेहतर मान्यता प्राप्त संस्थानों को अधिक शैक्षणिक, प्रशासनिक और वित्तीय स्वतंत्रता मिलेगी। मान्यता प्रक्रिया तकनीक आधारित और परिणाम केंद्रित होगी। संस्थानों को अपनी फैकल्टी, वित्तीय स्थिति, पाठ्यक्रम, छात्र परिणाम और ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक करनी होंगी। गलत जानकारी देने पर नियामक परिषद 60 दिनों के भीतर कार्रवाई कर सकेगी।
उल्लंघन पर भारी जुर्माने का प्रावधान
विधेयक में यह प्रावधान भी है कि मान्यता प्राप्त गैर-विश्वविद्यालय संस्थानों को केंद्र की मंजूरी से डिग्री देने का अधिकार मिल सकता है, जिसे नियमों के उल्लंघन पर वापस लिया जा सकेगा।
जुर्माने के प्रावधान सख्त हैं—पहली बार उल्लंघन पर 10 लाख रुपये, बार-बार नियम तोड़ने पर 30 से 75 लाख रुपये या उससे अधिक का जुर्माना लगाया जा सकेगा।
अवैध विश्वविद्यालय खोलने पर कम से कम 2 करोड़ रुपये का जुर्माना और तत्काल बंदी का प्रावधान भी किया गया है। सरकार का कहना है कि किसी भी दंडात्मक कार्रवाई का असर छात्रों पर नहीं पड़ना चाहिए।
विदेशी विश्वविद्यालयों को भी मिलेगी अनुमति
विधेयक के तहत चुनिंदा विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैंपस खोलने की अनुमति दी जाएगी, बशर्ते वे सरकारी मंजूरी और तय नियमों का पालन करें। वहीं, बेहतर प्रदर्शन करने वाले भारतीय विश्वविद्यालयों को विदेश में अपने कैंपस खोलने की छूट भी मिलेगी।
विपक्ष की आपत्तियां
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने विधेयक पर आपत्ति जताई है। विपक्ष का कहना है कि इतने व्यापक शिक्षा सुधार पर सांसदों को अध्ययन के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया। कई दलों ने शिक्षा को समवर्ती विषय बताते हुए केंद्र पर अत्यधिक केंद्रीकरण का आरोप लगाया। विपक्ष की मांग के बाद सरकार ने विधेयक को JPC के पास भेजने का फैसला किया है।
बहरहाल, ‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक 2025’ को उच्च शिक्षा सुधार की दिशा में एक निर्णायक कदम माना जा रहा है। अब सभी की नजरें संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिशों पर टिकी हैं, जो यह तय करेंगी कि यह विधेयक भारतीय उच्च शिक्षा के भविष्य को किस दिशा में ले जाएगा।
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