जुबिली स्पेशल डेस्क
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नोबेल शांति पुरस्कार जीतने का सपना एक बार फिर अधूरा रह गया है। 2025 का नोबेल पीस प्राइज इस बार वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को मिला है। उन्हें यह सम्मान अपने देश में लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए शांतिपूर्ण संघर्ष के लिए दिया गया।
ट्रंप का दावा ‘सात युद्ध रोक चुका हूं’
अपने पहले कार्यकाल से ही डोनाल्ड ट्रंप इस बात पर केंद्रित रहे कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिल सके। उन्होंने कई बार दावा किया कि वे “सात युद्ध रोक चुके हैं और इजरायल-हमास संघर्ष को खत्म करने के करीब हैं।”
हालांकि, इस बार भी उनके दावे काम नहीं आए और नोबेल कमेटी ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया।

चार अमेरिकी राष्ट्रपति को मिल चुका है नोबेल पुरस्कार
ट्रंप से पहले अमेरिका के चार राष्ट्रपति-थियोडोर रूजवेल्ट, वुडरो विल्सन, जिमी कार्टर और बराक ओबामा — नोबेल शांति पुरस्कार जीत चुके हैं। इनमें से कार्टर को छोड़ बाकी तीनों को यह सम्मान राष्ट्रपति पद पर रहते हुए मिला।
बराक ओबामा को भी कार्यकाल शुरू होने के केवल नौ महीने बाद ही यह सम्मान दिया गया था, जो उस समय काफी विवादित फैसला माना गया।
कई बार हुआ नामांकन, पर फिर भी नाकामी
ट्रंप को 2018 से अब तक कई बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया जा चुका है।
हाल ही में अमेरिकी सांसद क्लाउडिया टेनी ने भी ट्रंप का नाम आगे बढ़ाते हुए कहा था कि 2020 में उन्होंने “अब्राहम समझौता” कराया, जिससे इजरायल और अरब देशों के बीच संबंध सुधरे।
इस बार भी इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू और पाकिस्तान सरकार की ओर से उनके नामांकन की कोशिश हुई, लेकिन समय सीमा बीत जाने के कारण नाम स्वीकृत नहीं हुआ।
नोबेल कमेटी ने क्यों ठुकराया ट्रंप का नाम?
- नोबेल शांति पुरस्कार के लिए तीन मुख्य मानदंड देखे जाते हैं —
- युद्ध या हिंसा को रोकने का प्रयास
- हथियारों में कटौती की दिशा में कदम
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना
नॉर्वे की नोबेल कमेटी के मुताबिक, ट्रंप की नीतियाँ इन तीनों मानदंडों के विपरीत मानी गईं।
ट्रेड दबाव और धमकी के जरिए शांति कायम करने की रणनीति स्थायी समाधान नहीं मानी गई।
गाजा डील आई देर से
इजरायल-हमास के बीच ट्रंप की मध्यस्थता से हुई गाजा शांति डील की घोषणा उस वक्त हुई जब नोबेल कमेटी पहले ही फैसला ले चुकी थी।
भले ही यह डील सफल रही हो, लेकिन देर से होने के कारण इसका असर नोबेल के फैसले पर नहीं पड़ा।
टिकाऊ नहीं मानी गईं कोशिशें
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, कमेटी आमतौर पर लंबे समय तक असर डालने वाले प्रयासों को प्राथमिकता देती है।
ट्रंप के शांति प्रयासों को तेज़, लेकिन कम टिकाऊ समझौतों के रूप में देखा गया।
कई समझौतों से बाहर निकलना भी बना कारण
ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका ने पेरिस जलवायु समझौते और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) जैसे कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से खुद को अलग कर लिया। यह कदम भी उनके खिलाफ गया, क्योंकि इससे अमेरिका की वैश्विक सहयोग छवि कमजोर हुई।
क्या अब भी है उम्मीद?
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के कूटनीतिक प्रयास अगर लंबे समय तक असर दिखाते हैं, तो भविष्य में उन्हें फिर से मौका मिल सकता है। नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति को बार-बार नामांकित किया जा सकता है। इसलिए ट्रंप की अगली कोशिशों से नोबेल की उम्मीदें पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं।
2025 का नोबेल शांति पुरस्कार भले ही ट्रंप के हाथ से निकल गया हो, लेकिन अगर उनकी भविष्य की नीतियाँ स्थायी शांति और वैश्विक सहयोग की दिशा में असर डालती हैं, तो आने वाले वर्षों में वे फिर दौड़ में शामिल हो सकते हैं।
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