Saturday - 25 October 2025 - 9:26 PM

तेजस्वी VS नीतीश: बिहार की 42 सीटों पर अब होगा ‘मल्लाह फैक्टर’ का टेस्ट

जुबिली स्पेशल डेस्क

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग नजदीक आते ही सियासी दलों ने EBC (अत्यंत पिछड़े वर्ग) के वोट बैंक पर फोकस बढ़ा दिया है। एनडीए (NDA) और महागठबंधन (Grand Alliance) दोनों ही यह समझ चुके हैं कि इस वर्ग की भूमिका इस हाई-प्रोफाइल मुकाबले में निर्णायक साबित हो सकती है।

महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने ऐलान किया है कि अगर सत्ता में आए तो ‘सन ऑफ मल्लाह’ मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा। यह कदम स्पष्ट रूप से EBC मतदाताओं को साधने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है, जो अब तक परंपरागत रूप से नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के समर्थक माने जाते रहे हैं।

30 सीटों पर निर्णायक असर

निषाद समुदाय जिसमें मल्लाह, केवट, बिंद और कश्यप जैसी जातियां शामिल हैं—बिहार की आबादी का करीब 5.5 प्रतिशत हिस्सा है। यह समुदाय राज्य की लगभग 30 विधानसभा सीटों पर सीधा असर रखता है, खासकर उत्तर और उत्तर-पश्चिम बिहार के क्षेत्रों में।

तेजस्वी यादव ने इस बार सहनी को डिप्टी सीएम पद का वादा तो किया है, लेकिन अनुसूचित जाति का दर्जा देने जैसी संवेदनशील मांग से दूरी बनाए रखी है, ताकि दलित वोटरों की नाराजगी न झेलनी पड़े।

EBC की ओर RJD का रुख और NDA की मुश्किलें

आरजेडी ने अपना फोकस पश्चिम चंपारण से लेकर मुजफ्फरपुर और दरभंगा तक फैली उन 42 सीटों पर केंद्रित किया है, जिन्हें परंपरागत रूप से NDA का गढ़ माना जाता है।
2020 के विधानसभा चुनाव में NDA और महागठबंधन के बीच वोट शेयर का अंतर सिर्फ 0.03% था—जो बिहार के चुनावी इतिहास का सबसे करीबी मुकाबला था।

इसी पृष्ठभूमि में तेजस्वी अब मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण से आगे बढ़कर “A to Z” और “MyBaap” फॉर्मूला (मुस्लिम, यादव, बहुजन, अगड़े, महिलाएं और गरीब) के सहारे नया गठजोड़ बनाने की कोशिश में हैं।

कुशवाहा समीकरण से भी साधा संतुलन

लोकसभा चुनावों में कुशवाहा समुदाय को लेकर हुए प्रयोग से सबक लेते हुए, इस बार आरजेडी ने इस वर्ग से एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार उतारे हैं।\

NDA के नेता उपेंद्र कुशवाहा भले ही इस समुदाय के प्रतिनिधि माने जाते हैं, लेकिन टिकट वितरण को लेकर उनकी नाराजगी ने आरजेडी के लिए नया अवसर खोल दिया है।

EBC राजनीति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लोग लंबे समय तक नीतीश कुमार की विकास और कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े रहे हैं, जबकि प्रधानमंत्री मोदी की पृष्ठभूमि से उन्हें अतिरिक्त जुड़ाव महसूस होता रहा है।

हालांकि, राज्य के वोटिंग पैटर्न में विधानसभा और लोकसभा चुनावों में हमेशा अंतर दिखता है विधानसभा में मतदाता स्थानीय उम्मीदवारों और जातीय प्रतिनिधित्व को तरजीह देते हैं।

कर्पूरी ठाकुर के जमाने से अब तक EBC की 112 उप-जातियों में से कोई बड़ा राज्यस्तरीय नेता उभर नहीं पाया है। यही खाली जगह तेजस्वी यादव भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।

महागठबंधन की रणनीति और NDA की जवाबी चाल

महागठबंधन की ओर से मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाना इस बात का संकेत है कि लालू यादव परिवार अब अन्य समुदायों के साथ सत्ता साझेदारी का संदेश देना चाहता है। तेजस्वी ने यह भी इशारा किया है कि सत्ता में आने पर एक से अधिक डिप्टी सीएम होंगे, लेकिन उन्होंने जातीय पहचान उजागर नहीं की—यह कदम मतदाताओं के ध्रुवीकरण से बचने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।

दूसरी ओर, बढ़ती चुनौती को भांपते हुए BJP ने भी मल्लाह वोटों को साधने की कोशिश शुरू कर दी है। पार्टी ने हाल ही में पूर्व सांसद अजय निषाद को फिर से जोड़ा है और उनकी पत्नी को औराई सीट से उम्मीदवार बनाया है।
अजय निषाद, चार बार के सांसद कैप्टन जय नारायण निषाद के बेटे हैं। उन्होंने 2019 में बीजेपी टिकट पर मुजफ्फरपुर से जीत दर्ज की थी, हालांकि 2024 में उन्हें टिकट नहीं मिला था।

कहां है असली टक्कर

मछुआरा समुदाय का प्रभाव मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, वैशाली, दरभंगा और खगड़िया जिलों में सबसे अधिक है ये इलाके अभी भी बीजेपी के गढ़ माने जाते हैं।
2020 में बीजेपी ने चंपारण की 21 में से 15, मुजफ्फरपुर की 11 में से 9, और दरभंगा की 10 में से 9 सीटें जीती थीं।

इस बार मुकाबला पहले से कहीं ज्यादा दिलचस्प है—तेजस्वी यादव जातीय सीमाओं को तोड़कर नई सामाजिक बुनावट तैयार करने की कोशिश में हैं, जबकि एनडीए अपने परंपरागत वोट बैंक को बचाने के लिए हरसंभव कदम उठा रहा है।

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