डा. रवीन्द्र अरजरिया सामाजिकता का स्थान अब निजता लेने लगी है। सार्वजनिक संपत्ति को व्यक्तिगत हितों के लिए उपयोग करने की परम्परा चल निकली है। पैसा बटोरने की लालसा ने व्यक्ति की मानवीयता को तिलांजलि दे दी है। पैसा भी केवल भौतिक संसाधनों को जोडने में खर्च किया जा रहा …
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