जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने मंदिरों में दर्शन व्यवस्था और अनुष्ठानों को लेकर अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि “लोग भगवान को भी आराम नहीं करने देते।”

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील दी कि बांके बिहारी मंदिर में दर्शन का समय बदलना एक संवेदनशील मुद्दा है, क्योंकि दर्शन के समय मंदिर की परंपराओं और अनुष्ठानों का अभिन्न हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से इन समयों का सख्ती से पालन होता आया है और अन्य मंदिरों के मुकाबले यहां लचीलापन अलग तरह से देखा जाना चाहिए।
इस पर CJI ने सवाल किया कि अगर दर्शन का समय बढ़ाया जाता है तो इसमें समस्या क्या है? उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि कई बार तथाकथित धनी लोग भारी रकम चुकाकर विशेष अनुष्ठानों की अनुमति हासिल कर लेते हैं।
CJI ने कहा, “यह वही समय होता है जब हर तरह की प्रथाएं अपनाई जाती हैं और उन लोगों को बुलाया जाता है जो ज्यादा पैसा दे सकते हैं।”
वकील श्याम दीवान ने इस आशंका को स्वीकार करते हुए कहा कि यह एक अलग मुद्दा है, जबकि मौजूदा याचिका का उद्देश्य श्रद्धालुओं की सुरक्षा और परंपराओं की रक्षा करना है। उन्होंने कहा कि मंदिर में भगदड़ जैसी स्थिति से बचना और श्रद्धालुओं की आवाजाही को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है।
सुनवाई के दौरान CJI ने दैनिक पूजा की परंपरा पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि अगर मूल समय में 10-15 हजार श्रद्धालुओं की कमी हो जाए तो इससे क्या फर्क पड़ेगा, जबकि भीड़ प्रबंधन ज्यादा जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बांके बिहारी मंदिर उच्चाधिकार समिति और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। अदालत ने कहा कि इस याचिका पर जनवरी में कोर्ट खुलने के बाद पहले सप्ताह में दोबारा सुनवाई की जाएगी।
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गौरतलब है कि याचिका का उद्देश्य 1939 की प्रबंधन योजना को राज्य-नियंत्रित ट्रस्ट से बदलना है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई से इनकार किया था, जिसके बाद मंदिर के दैनिक कामकाज की निगरानी और पर्यवेक्षण के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अशोक कुमार की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया था। वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि इस मामले में चार अहम पहलू हैं, जिन पर अदालत को गंभीरता से विचार करना चाहिए।
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