जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली: कांग्रेस नेता शशि थरूर के हालिया बयान ने पार्टी के भीतर नई राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। थरूर ने वंशवादी राजनीति को भारतीय लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बताया और कहा कि अब समय आ गया है जब देश को “वंश के बजाय योग्यता” को प्राथमिकता देनी चाहिए।

‘प्रोजेक्ट सिंडिकेट’ में प्रकाशित अपने लेख में थरूर ने लिखा कि जब राजनीतिक शक्ति का निर्धारण योग्यता, प्रतिबद्धता या जनता से जुड़ाव के बजाय पारिवारिक वंश पर आधारित होता है, तो इससे लोकतंत्र की गुणवत्ता कमजोर होती है और शासन की जवाबदेही घटती है।
थरूर का यह बयान ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों पर वंशवाद के आरोप लगातार लगते रहे हैं। उनके इस लेख ने भारत की राजनीति में गहराई तक जमी इस प्रवृत्ति को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है।
भारत में वंशवाद की हकीकत: ADR-NEW रिपोर्ट के आंकड़े
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और नेशनल इलेक्शन वॉच (NEW) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार —
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देश के कुल 5,204 जनप्रतिनिधियों में से 1,107 (21%) ऐसे हैं जो राजनीतिक परिवारों से आते हैं।
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लोकसभा में वंशवाद की दर सबसे अधिक 31%, जबकि राज्य विधानसभा में लगभग 20% है।
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राज्यसभा में 21% और विधान परिषदों (MLCs) में 22% सदस्य पारिवारिक राजनीतिक पृष्ठभूमि से हैं।
राज्यवार तस्वीर: आंध्र प्रदेश सबसे आगे
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आंध्र प्रदेश: 255 में से 86 (34%) वंशवादी नेता
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महाराष्ट्र: 32%
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कर्नाटक: 29%
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बिहार: 27%
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उत्तर प्रदेश: 23%
वहीं, असम और पूर्वोत्तर राज्यों में वंशवाद का स्तर सबसे कम (9%) पाया गया है।
राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों में वंशवाद की तुलना
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कांग्रेस: 32% जनप्रतिनिधि वंशवादी
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भाजपा: 18%
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CPI(M): 8%
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NCP (शरद पवार गुट): 42%
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वाईएसआर कांग्रेस: 38%
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टीडीपी: 36%
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टीएमसी: 10%
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एआईएडीएमके: 4%
महिलाओं में वंशवाद पुरुषों से दोगुना
रिपोर्ट बताती है कि राजनीति में प्रवेश करने वाली 47% महिला प्रतिनिधि किसी न किसी राजनीतिक परिवार से आती हैं, जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 18% है।
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महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में 69% महिला नेता वंशवादी हैं।
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बिहार: 57%
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तेलंगाना: 64%
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गोवा, पुडुचेरी, दादरा नगर हवेली: 100% महिलाएं वंशवादी पृष्ठभूमि की हैं।
राजनीतिक विश्लेषण
विशेषज्ञों के मुताबिक, वंशवाद केवल सामाजिक पहचान का मुद्दा नहीं, बल्कि राजनीतिक संसाधनों और चुनावी नेटवर्क पर नियंत्रण से जुड़ा है। धन, संगठन और प्रचार मशीनरी तक पहुंच रखने वाले परिवार आधारित नेताओं को टिकट वितरण में प्राथमिकता मिलती है।
कई मतदाता भी वंशवादी नेताओं को भरोसेमंद मानते हैं, क्योंकि उनके पास “पहचाना हुआ नाम और पारिवारिक प्रभाव” होता है।
निष्कर्ष
शशि थरूर का यह बयान न सिर्फ कांग्रेस के लिए एक आंतरिक आत्ममंथन का विषय बन गया है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र में योग्यता बनाम विरासत की बहस को भी नई ऊर्जा दे गया है।
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