जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि दंपती के बीच मामूली मनमुटाव और भरोसे की कमी को मानसिक क्रूरता माना नहीं जा सकता है। हाई कोर्ट ने कहा कि शारीरिक संबंध से इनकार करना मानसिक क्रूरता का एक रूप माना तो जा सकता है, लेकिन तब जब यह लगातार, जानबूझकर और काफी समय तक हो। हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी पत्नी पक्ष की अपील मंजूर करते हुए की।

बता दे कि महिला ने परिवार अदालत के फैसले के खिलाफ यह अपील दायर की थी, जिसने मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए पति के आवेदन को मंजूर कर लिया था। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले से असहमति जताई और कहा कि यह कायम रहने लायक नहीं है।
पति ने लगाया ये आरोप
पति ने मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक मांगा। आरोप लगाया कि उसे ससुराल में उसके साथ रहने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और वह चाहती थी कि पति उसके साथ उसके मायके में ‘घर जमाई’ बन जाए। दोनों की शादी 1996 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई। 1998 में इनके यहां एक बच्ची का जन्म हुआ। पति ने दावा किया था कि उनकी पत्नी किसी न किसी बहाने से उसे अकेला छोड़ देती थी। वह एक कोचिंग सेंटर चलाती थी और उसी ही चलाने में उसकी रुचि थी। पति ने यह भी आरोप लगाया कि यहां तक कि पत्नी उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने से भी मना कर देती थी।
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अदालत को सावधानी बरतने की जरूरत
जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस मनोज जैन की बेंच ने कहा कि हालांकि यौन संबंध से इनकार करना मानसिक क्रूरता का एक रूप माना जा सकता है, लेकिन तब जब यह लगातार, जानबूझकर और काफी समय तक हो। लेकिन, अदालत को ऐसे संवेदनशील और नाजुक मुद्दे से निपटने में बहुत ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है। इस तरह के आरोप केवल अस्पष्ट बयानों के आधार पर साबित नहीं किए जा सकते, खासकर तब जब शादी विधिवत पूर्ण हुई हो।
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