जुबिली स्पेशल डेस्क
यूपी टी-20 लीग को घरेलू क्रिकेट में टैलेंट खोजने और आगे बढ़ाने का जरिया माना जा रहा था, लेकिन इस बार लीग में रेलवे टीम के 11 खिलाड़ियों की एंट्री ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
ये खिलाड़ी भले ही इस लीग में खेलेंगे, लेकिन ना ही यूपी के लिए रणजी ट्रॉफी खेल सकते हैं और ना ही यूपी क्रिकेट को दीर्घकालिक फायदा पहुंचा सकते हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन बाहरी खिलाड़ियों की मौजूदगी से यूपी के घरेलू खिलाड़ियों को मौका कैसे मिलेगा?
रेलवे बोर्ड के ये खिलाड़ी साल भर अपने विभाग के लिए ही खेलते हैं, ऐसे में यूपी के लोकल खिलाड़ियों के लिए न तो स्पॉट बचे और न ही मंच। जबकि इस लीग को लॉन्च ही इस मंशा से किया गया था कि गांव-देहात और छोटे शहरों से निकलने वाले क्रिकेटरों को बड़ा मंच मिले।
क्रिकेट कोच गोपाल सिंह ने रखी बेबाक राय : “रेलवे नौकरी दे रहा है, बाकी कौन दे रहा है?”
एलडीए स्टेडियम लखनऊ के वरिष्ठ कोच गोपाल सिंह का कहना है कि रेलवे टीम में शामिल अधिकांश खिलाड़ी मूल रूप से उत्तर प्रदेश के ही हैं, इसलिए उन्हें पूरी तरह बाहरी कहना ठीक नहीं होगा।
“भले ही ये खिलाड़ी रेलवे की टीम से खेलते हैं, लेकिन हैं तो यूपी के ही। आज के समय में कोई भी सरकारी विभाग खिलाड़ियों को नौकरी नहीं दे रहा, सिर्फ रेलवे ऐसा कर रहा है। यही वजह है कि हमारे यूपी के ही खिलाड़ी रेलवे को जॉइन कर रहे हैं।”
कोच गोपाल सिंह ने यह भी स्वीकार किया कि रेलवे के अनुभवी खिलाड़ियों के आने से लीग में
प्रतिस्पर्धा जरूर बढ़ेगी, जो सकारात्मक है। “जहां तक यूपी टी-20 लीग का सवाल है, तो यह बात नजरअंदाज नहीं की जा सकती कि अगर ऐसे खिलाड़ी हिस्सा लेंगे जो कभी यूपी के लिए रणजी ट्रॉफी या विजय हजारे ट्रॉफी नहीं खेल सकते, तो फिर इस लीग की उपयोगिता पर सवाल उठना लाज़मी है। इससे लोकल टैलेंट का हक मारा जाएगा।”
रेलवे के खिलाड़ी बेशक अनुभवी हैं, लेकिन अगर वे यूपी क्रिकेट की मुख्यधारा से जुड़े नहीं हैं तो फिर उनके खेलने का क्या औचित्य? क्रिकेट बोर्ड को यह तय करना होगा कि लीग का असली मकसद – “यूपी के टैलेंट को मौका देना” – कहीं केवल एक नारा बनकर न रह जाए।