Saturday - 21 June 2025 - 5:23 PM

राहुल गांधी का चुनाव आयोग पर हमला: “45 दिन में डेटा मिटाना लोकतंत्र के खिलाफ

जुबिली न्यूज डेस्क 

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने शनिवार को चुनाव आयोग की एक हालिया अधिसूचना को लेकर तीखा हमला बोला है। उन्होंने इस कदम को “लोकतंत्र के लिए खतरा” बताते हुए चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

क्या है मामला?

चुनाव आयोग ने 30 मई को सभी राज्य निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश जारी किया था कि अगर चुनाव परिणामों को 45 दिनों के भीतर अदालत में चुनौती नहीं दी जाती, तो वे चुनाव से जुड़े सीसीटीवी फुटेज, वेबकास्टिंग रिकॉर्डिंग और वीडियोग्राफी को नष्ट कर सकते हैं।

आयोग ने कहा कि ये रिकॉर्डिंग पारदर्शिता बनाए रखने के लिए होती हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इनका इस्तेमाल “दुर्भावनापूर्ण विमर्श” बनाने में किया गया है जिससे संस्था की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हुए।

राहुल गांधी ने क्या कहा?

राहुल गांधी ने इस पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा:”वोटर लिस्ट? ‘मशीन रीडेबल फॉर्मेट’ नहीं देंगे।सीसीटीवी फुटेज? कानून बदलकर छिपा दी।चुनाव की फोटो-वीडियो? अब 1 साल नहीं, 45 दिनों में ही मिटा देंगे।”उन्होंने सीधा आरोप लगाया कि “जिनसे जवाब मांगा जाना चाहिए, वही अब सबूत मिटा रहे हैं।”
राहुल ने इसे “मैच फिक्स” बताते हुए कहा कि ऐसा चुनाव लोकतंत्र के लिए “जहर” है।

पारदर्शिता बनाम प्रक्रियात्मक नियंत्रण

चुनाव आयोग के अनुसार:

  • रिकॉर्ड नष्ट करने की यह समयसीमा कानूनी प्रक्रिया और संसाधनों के प्रबंधन के आधार पर तय की गई है।

  • इसका उद्देश्य डेटा के अनुचित इस्तेमाल और गलत नैरेटिव फैलाने से बचाना है।

लेकिन विपक्ष का आरोप है कि:

  • आयोग पारदर्शिता को कमजोर कर रहा है।

  • रिकॉर्ड समय से पहले मिटाने का आदेश जनता के विश्वास को कमजोर करता है।

2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने पहले ही कई बार ईवीएम, वोटर डेटा और मतदाता सूचियों को लेकर सवाल खड़े किए थे।राहुल गांधी इससे पहले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी चुनाव आयोग पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगा चुके हैं। उस समय आयोग और राहुल के बीच सार्वजनिक तौर पर तीखी बयानबाज़ी हुई थी।

ये भी पढ़ें-बिहार में चुनाव से पहले बड़ा ऐलान: सामाजिक पेंशन में तीन गुना बढ़ोतरी, अब हर महीने मिलेंगे इतने रुपये

राहुल गांधी का यह बयान 2024 चुनाव के बाद चुनाव आयोग और विपक्ष के बीच गहराते अविश्वास को दर्शाता है।
एक तरफ आयोग चुनावी प्रक्रिया की “प्रक्रियात्मक मजबूरी” बता रहा है, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष इसे जनमत के साथ छेड़छाड़ और लोकतंत्र के लिए खतरनाक बता रहा है।क्या 45 दिनों में डेटा मिटाना लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है या किसी बड़े पर्दे के पीछे चल रही ‘मैच फिक्सिंग’ का संकेत?

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com