जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि भ्रष्टाचार के दोषी सरकारी अधिकारी को तब तक दोबारा नौकरी पर नहीं लिया जा सकता, जब तक उसे उच्च अदालत से दोषमुक्त घोषित नहीं किया जाता। कोर्ट ने यह टिप्पणी एक रेलवे सुरक्षा बल (RPF) के इंस्पेक्टर की याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसे रिश्वत लेने के मामले में दोषी ठहराया गया था।
जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने की सुनवाई
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने साफ शब्दों में कहा:”अगर किसी सरकारी कर्मचारी को भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी ठहराया गया है, तो वह सेवा में लौटने का हकदार नहीं है, जब तक कि सभी आरोपों से उसे बरी नहीं कर दिया जाता। ऐसा करना जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाएगा।”
कोर्ट ने कहा कि ऐसे दोषी अधिकारियों की बहाली न सिर्फ सिस्टम की नींव को कमजोर करती है, बल्कि ईमानदार अधिकारियों का भी अपमान करती है।
क्या थी याचिका की मांग?
रेलवे सुरक्षा बल के इंस्पेक्टर ने अपनी याचिका में कहा कि:
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उसे गुजरात की निचली अदालत ने रिश्वत मामले में दोषी ठहराया और दो साल की सजा सुनाई।
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गुजरात हाई कोर्ट ने उसकी सजा को सस्पेंड कर जमानत तो दे दी, लेकिन दोषसिद्धि को निलंबित नहीं किया।
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वकील नितिन कुमार सिन्हा ने दलील दी कि अभियुक्त के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है, जिससे यह साबित हो कि उसने रिश्वत मांगी या ली।
इसी आधार पर इंस्पेक्टर ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि उसे फिर से नौकरी पर बहाल होने की अनुमति दी जाए।
कोर्ट ने सख्ती से याचिका खारिज की
कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए “के.सी. सरीन बनाम भारत संघ” मामले का हवाला दिया। उस केस में भी कोर्ट ने कहा था:”जब तक एक लोक सेवक को उच्च अदालत दोषमुक्त नहीं ठहराती, उसे भ्रष्ट माना जाना चाहिए।”
बेंच ने यह भी जोड़ा कि कोई भी ऐसा व्यक्ति, जो भ्रष्टाचार के अपराध में दोषी हो, उसे सिर्फ अपील लंबित होने के आधार पर सेवा में बने रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
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सुप्रीम कोर्ट का सख्त संदेश
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन मामलों में नजीर बन सकता है जहां दोषसिद्ध अधिकारी अपनी सेवा बहाल कराने के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाते हैं। यह निर्णय साफ संदेश देता है कि भ्रष्टाचार में दोषी पाए गए कर्मचारियों को सेवा में वापस नहीं लाया जा सकता, जब तक वे पूरी तरह निर्दोष साबित न हो जाएं।