जुबिली स्पेशल डेस्क
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के कार्यक्रम का ऐलान होते ही राज्य की सियासत में ‘काउंटडाउन’ शुरू हो गया है। चुनाव आयोग ने दो चरणों में मतदान की घोषणा की है, पहला चरण 6 नवंबर और दूसरा 11 नवंबर को होगा, जबकि 14 नवंबर को नतीजे आएंगे।
दिलचस्प बात यह है कि उसी दिन देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती भी है, और इसी दिन तय होगा कि सत्ता की कुर्सी पर इस बार नीतीश कुमार (चाचा) बैठेंगे या तेजस्वी यादव (भतीजा) अपना सपना पूरा करेंगे।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बिहार चुनाव को “Mother of All Elections” करार देते हुए कहा कि यहां से शुरू होने वाली 17 नई पहलें (initiatives) आगे पूरे देश में लागू की जाएंगी। इनमें SIR सिस्टम, 1950 वोटर हेल्पलाइन, और मतदाता सूची की शुद्धता पर खास ध्यान जैसी पहलें शामिल हैं। आयोग ने दावा किया है कि बिहार में अब तक का सबसे पारदर्शी और तकनीकी रूप से सशक्त चुनाव कराया जाएगा।

NDA बनाम महागठबंधन: टिकट बंटवारे पर माथापच्ची
चुनाव तारीखों के एलान के बाद दोनों ही राजनीतिक खेमों में सीटों के बंटवारे को लेकर मंथन तेज हो गया है। बीजेपी ने अपने सहयोगियों के साथ बातचीत शुरू कर दी है, वहीं चिराग पासवान की पार्टी LJP (रामविलास) अधिक सीटों की मांग पर अड़ी हुई है।
दूसरी तरफ महागठबंधन में भी हलचल बढ़ी है। हालांकि अभी तक सीएम पद के चेहरे को लेकर स्थिति साफ नहीं हुई है, लेकिन मुकेश सहनी ने खुद को उपमुख्यमंत्री पद का दावेदार बताते हुए माहौल गर्म कर दिया है।
राहुल गांधी के आरोपों पर परीक्षा की घड़ी
कांग्रेस और आरजेडी के साझा मोर्चे के लिए यह चुनाव किसी लिटमस टेस्ट से कम नहीं होगा। राहुल गांधी के “वोट चोरी” वाले आरोपों के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष मतदाताओं का भरोसा कितना जीत पाता है।
वहीं, NDA अपनी “निरंतरता और विकास” की नीति पर मैदान में उतरा है, महिलाओं को 10-10 हजार रुपये की सहायता योजना, पटना मेट्रो प्रोजेक्ट, और इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधार जैसी घोषणाओं के सहारे बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने प्रचार को धार दी है।
छवि और रणनीति का चुनाव
बिहार का यह चुनाव सिर्फ दलों के गठजोड़ का नहीं बल्कि छवि, रणनीति और भरोसे का भी इम्तिहान है। एक तरफ नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक साख को बचाने में जुटे हैं, तो दूसरी ओर तेजस्वी यादव ‘परिवर्तन’ की बयार के साथ मैदान में उतर रहे हैं।
14 नवंबर का दिन न सिर्फ नतीजों का, बल्कि बिहार की नई सियासी दिशा का भी प्रतीक बनकर उभरेगा — और शायद इसी वजह से इसे कहा जा रहा है “मदर ऑफ ऑल इलेक्शन”।
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