जुबिली न्यूज डेस्क
लखनऊ | बहुजन समाज पार्टी (BSP) की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने लंबी दूरी की ट्रेनों के किराये में प्रस्तावित वृद्धि को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि रेल किराया बढ़ाने का फैसला जनहित के खिलाफ है और यह सरकार की व्यवसायिक सोच को दर्शाता है, न कि संविधान के कल्याणकारी उद्देश्य को।
रेल किराया वृद्धि की तुलना GST से
मायावती ने रेलवे बोर्ड के इस प्रस्ताव की तुलना जीएसटी से करते हुए कहा,”सरकार ‘राष्ट्र प्रथम’ के नाम पर आम जन का GST की तरह ही रेलवे के माध्यम से दैनिक जीवन पर बोझ बढ़ाकर शोषण कर रही है, जो घोर अनुचित परंपरा है। सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि देश में पहले से ही महंगाई, बेरोजगारी और कमाई घटने की मार से आम जनता परेशान है, ऐसे में रेल किराया बढ़ाना उनके साथ अन्याय है।
“रेल यात्रा मजबूरी है, न कि पर्यटन”
बसपा प्रमुख ने कहा कि”देश के करोड़ों लोगों के लिए रेल यात्रा कोई शौक या पर्यटन नहीं, बल्कि मजबूरी और जरूरत है। गरीबी, रोजगार की कमी और पलायन के चलते आम लोग रेल से सफर करते हैं। ऐसे में किराया बढ़ाना उनके ज़ख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है।”
दिल्ली में झुग्गियां गिराने पर भी बोलीं मायावती
रेल किराया के अलावा दिल्ली में झुग्गियां गिराने की कार्रवाई को लेकर भी मायावती ने दिल्ली सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि”दिल्ली सरकार कोर्ट का बहाना बनाकर गरीबों की झुग्गियां बेरहमी से उजाड़ रही है। सरकार की जिम्मेदारी है कि पहले उनका वैकल्पिक इंतजाम करे, फिर झुग्गियां हटाए।”
उन्होंने सवाल उठाया कि देश की राजधानी में गरीबों को बेघर करना कहां तक न्यायसंगत है, जब सरकार खुद उनके पुनर्वास की जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं है?
राजनीतिक संदेश भी साफ
मायावती के बयान को केवल रेलवे या दिल्ली तक सीमित नहीं माना जा रहा, बल्कि इसे केंद्र सरकार और आम आदमी पार्टी की नीतियों पर समग्र रूप से एक राजनीतिक हमला माना जा रहा है। इससे आने वाले चुनावों में गरीब, मजदूर और पलायन करने वाले तबकों को साधने की कोशिश के संकेत भी मिलते हैं।
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बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती का यह बयान सरकार की नीतियों पर सीधा हमला है, जिसमें उन्होंने गरीबों के हक में आवाज उठाते हुए रेल किराया बढ़ोतरी और झुग्गी तोड़ने की कार्रवाई को जनविरोधी और संवेदनहीन करार दिया है। अब देखना होगा कि सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है और विपक्ष इस मुद्दे को कितना आगे ले जाता है।