Wednesday - 10 January 2024 - 6:52 AM

महाराष्ट्र में महा आश्चर्य

रतन मणि लाल

राजनीति में कब क्या हो जाए, यह सब जानते है, लेकिन इसके बावजूद किसी भी राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर रखने वाले विश्लेषक काफी हद तक सटीक विश्लेषण कर ले जाते हैं। और उनकी राजनीतिक भविष्यवाणी सच हो जाती हैं।

फिर मीडिया जगत में ऐसे भी दिग्गजों की कमी नहीं जो किसी आश्चर्यजनक घटना के बाद बड़े विश्वास के साथ कहते हैं कि उन्होंने तो पहले ही बता दिया था कि ऐसा होने वाला है…

लेकिन महाराष्ट्र में शनिवार 23 नवम्बर की सवेरे जो हुआ उसकी शायद दो सम्बंधित दलों – भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (या एनसीपी) के कुछ नेताओं के अलावा किसी को भी कोई जानकारी नहीं थी।

सूर्योदय के कुछ देर बाद महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया, और कुछ ही देर बाद राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी ने भाजपा नेता देवेन्द्र फडनवीस को प्रदेश के अगले मुख्य मंत्री, और एनसीपी नेता अजित पवार को उप मुख्य मंत्री पद की शपथ दिलाई।

देश भर में कई लोगों को जब दिन की शुरुआत में ही अपने मोबाइल की समाचार चैनल में ये खबर मिली तो उन्होंने अनायास ही सोचा कि यह कोई फेक न्यूज़ या स्पैम होगा। लेकिन तुरंत टीवी देखते ही इस खबर की पुष्टि हो गयी।

इसमें कोई संदेह नहीं कि स्पष्ट बहुमत न मिलने की वजह से महाराष्ट्र में चारों राजनीतिक दलों को सरकार बनाने की सम्भावना पर विचार करना वाजिब था, और एनसीपी, शिव सेना व कांग्रेस ने ऐसा किया भी। दर्जनों बैठकों और बयानों से यह तो संकेत मिल रहे थे कि तीनो दल किसी नतीजे पर पहुचने ही वाले हैं।

दो दिन पहले तो संभावित मंत्रिमंडल के सदस्यों और उनके विभागों पर भी चर्चा होने लगी थी। मुंबई के सूत्र यह भी बताते हैं कि इस संभावित मंत्रिमंडल और विभागों के बंटवारे के बाद गठबंधन का समझौता लगभग तय होने से पहले टूट गया। एनसीपी व कांग्रेस का महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रखने का निर्णय शिव सेना को पसंद नहीं आया और गठबंधन की घोषणा कुछ दिन और टल गई थी।

यही वह मौका था जिसकी भाजपा को तलाश थी, और अजित पवार को उप मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय इसमें निर्णायक साबित हुआ। एनसीपी प्रमुख शरद पवार राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं, और पार्टियों का साथ देना, उनसे अलग होना और फिर साथ देना उनके लिए कोई नई बात नहीं है।

एक समय पर वे तत्कालीन कांग्रेस के भरोसेमंद नेता थे, फिर सोनिया गाँधी की नागरिकता को लेकर उन्होंने पार्टी छोड़ी, और अब वे उसी सोनिया गांधी की नेतृत्त्व वाली कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश में थे।

लेकिन, सवेरे के झटके के बाद शिव सेना और एनसीपी के लिए अपने को सहज कर पाना इतना मुश्किल हो गया था कि अपनी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में शिव सेना के राउत, एनसीपी के शरद पवार, और शिव सेना के उद्धव ठाकरे इस घटनाक्रम पर कुछ कह ही नहीं पा रहे थे।

इन सबका केवल यही कहना था कि ऐसा हो सकता है इसका उन्हें कोई आभास नहीं था, अजित पवार ने उन सबको धोखा दिया। एनसीपी के उतने विधायक अजित पवार के साथ नहीं हैं जितना अजित पवार दावा कर रहे हैं।अजित पवार सदन में बहुमत नहीं साबित कर पाएंगे और महाराष्ट्र की जनता इस धोखे का बदला जरूर लेगी।

लेकिन वर्तमान राजनीति को करीब से देखने वाले समझते हैं कि बयानों से केवल निराशा और अपनी कमजोरी झलकती है। शिव सेना का बार बार यह कहना कि अजित पवार के फैसले की जानकारी शरद पवार को भी नहीं थी। यह दिखाता है कि शरद पवार की पकड़ अपने संगठन पर, और अपने ही परिवार के अजित पर कितनी कमजोर है।

अब, एनसीपी और शिव सेना के नेता व कार्यकर्त्ता तो यही समझेंगे कि उनके नेताओं को यहीं नहीं पता कि वास्तव में हो क्या रहा है। और यह एहसास कार्यकर्ताओं को निराश करता है, उनका अपने शीर्ष नेताओं पर विश्वास कम होता है।

इस महा-आश्चर्यजनक घटनाक्रम से महाराष्ट्र में पिछले एक महीने से चल रहे राजनीतिक उहापोह का दौर थमा नहीं है। बल्कि उसमे एक नया मोड़ आया है। फडनवीस को 29 नवम्बर तक महाराष्ट्र विधान सभा के सदन में अपना बहुमत सिद्ध करना है। यानी, आने वाले छः दिनों तक बयानबाजी, रहस्योद्घाटन और आरोपों का सिलसिला तेज रहेगा।

फिलहाल, आज के घटनाक्रम से कुछ बातें तो स्पष्ट हैं 

• महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों के बाद, भाजपा शिव सेना के साथ पूर्व-निर्धारित समझौते के अनुसार सरकार न बना पाने के बाद से ही सक्रिय हो चुकी थी, और शिव सेना को एक सीमा के बाद अपने समीकरण से बाहर कर चुकी थी। अब शिव सेना के लिए अपने राजनीतिक सफ़र में किसी का भी साथ मिल पाना बहुत कठिन है।

• शिव सेना के नेताओं, ख़ास तौर पर उद्धव ठाकरे और संजय राउत ने, भाजपा के साथ इतने लम्बे समय के गठबंधन के बाद भी यह नहीं समझा कि भाजपा अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्त्व में वह पुरानी पार्टी नहीं रह गई थी, जिसके साथ वे इतने सालों से सरकार चला रहे थे।

• चुनाव के पहले ही एनसीपी नेताओं को उनके ऊपर भ्रष्टाचार या अन्य गड़बड़ियों के अंतर्गत कार्यवाई का डर एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा था।

• शरद पवार के इस बयान से, कि महाराष्ट्र की जनता ने भाजपा और शिव सेना को सरकार बनाने के लिए चुना है, और एनसीपी विपक्ष में ही बैठेगी, उनकी पार्टी के कई नेता सहमत नहीं थे, क्योंकि चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद सरकार बनाने की कोशिश करना आजकल की जमीनी राजनीति का हिस्सा है।

• कांग्रेस और एनसीपी में शिव सेना के साथ मिलकर सरकार बनाने पर आम राय नहीं थी, क्योंकि ये दोनों ही दल आने वाले समय में अन्य राज्य के चुनावों में इस गठबंधन का औचित्य स्थापित न कर पाते।

• यही नहीं, महाराष्ट्र में जिला और तालुका स्तर पर ये दोनों दलों शिव सेना के साथ टकराए थे। और अब उसके साथ यदि सरकार बनती, तो वे उस टकराव का राजनीतिक (या स्थानीय) बदला नहीं निकाल पाते।

• शरद पवार प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए अक्सर नर्म बयान देते रहे हैं। महाराष्ट्र में राजनीतिक अनिश्चितता के बीच वे दिल्ली आकर मोदी से मिले। यह संभव है कि उस दौरान भाजपा-एनसीपी के मिलकर सरकार बनाने की संभावनाओं पर विचार हुआ हो।

तीन महत्वपूर्ण दलों के गठबंधन सरकार बनाने के ठीक पहले उस गठबंधन में एक दल को अपने साथ मिला कर सरकार बना लेना भाजपा के राजनीतिक कौशल का बड़ा उदहारण है।

इससे एक बार फिर साफ़ हो जाता है कि भाजपा के लिए सत्ता प्राप्त करना, और फिर में बने रहना, किसी भी अन्य मुद्दे से ज्यादा जरूरी है, क्योंकि पार्टी के दीर्घ-कालीन सामाजिक/राजनीतिक परिवर्तन लाने के उद्देश्य के लिए यह पहली और सबसे बड़ी जरूरत है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक बार फिर दिखा दिया है कि वे इस रणनीति के माहिर खिलाड़ी हैं।

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