जुबिली स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली। पारिवारिक संबंध घरेलू, अविवाहित सहजीवन या समलैंगिक रिश्ते को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद अहम बात कही है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार पारिवारिक संबंध घरेलू, अविवाहित सहजीवन या समलैंगिक रिश्ते के रूप में भी हो सकते हैं।
इतना ही नहीं कोर्ट ने इसको लेकर उल्लेख किया है कि एक इकाई के तौर पर परिवार की ‘असामान्य’ अभिव्यक्ति उतनी ही वास्तविक है जितनी कि परिवार को लेकर पारंपरिक व्यवस्था। यह भी कानून के तहत सुरक्षा का हकदार है।
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कोर्ट यही नहीं रूकी उसने आगे कहा कि कानून और समाज दोनों में परिवार की अवधारणा की प्रमुख समझ यह है कि’ इसमें एक मां और एक पिता (जो संबंध समय के साथ स्थिर रहते हैं) और उनके बच्चों के साथ एक एकल, अपरिवर्तनीय इकाई होती है।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने एक आदेश में कहा ‘‘यह धारणा दोनों की उपेक्षा करती है, कई परिस्थितियां जो किसी के पारिवारिक ढांचे में बदलाव ला सकती हैं, और यह तथ्य कि कई परिवार इस अपेक्षा के अनुरूप नहीं हैं। पारिवारिक संबंध घरेलू, अविवाहित सहजीवन या समलैंगिक संबंधों का रूप ले सकते हैं।’’
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बता दे कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया था । इस केस की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा था कि अगर कोई अगर पुरुष और महिला सालों तक हस्बैंड एंड वाइफ की तरह एक साथ रहते हैं और तो मान लिया जाता है कि दोनों में शादी हुई होगी और इतना ही नहीं इसी वजह से उनके बच्चों का पैतृक संपत्ति पर भी हक रहेगा।
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दरअसल मामला साल 2009 का जब संपत्ति विवाद को लेकर केरल हाईकोर्ट ने इस मामले में पैतृक संपत्ति पर लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे पुरुष-महिला के बेटे को पैतृक संपत्ति पर अधिकार देने से मना कर दिया था लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने उसी फैसले को पूरी तरह से पलट दिया है और कहा है कि बेटे को पैतृक संपत्ति पर हक देने से मना नहीं किया जा सकता।
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