जुबिली न्यूज डेस्क
वॉशिंगटन D.C.: एक तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मध्य-पूर्व में ईरान और इजरायल के बीच चल रहे युद्ध में सक्रिय भूमिका निभाने की तैयारी कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ उनके अपने देश की आर्थिक हालत नाजुक मोड़ पर पहुंचती दिख रही है। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका का राष्ट्रीय कर्ज अब 37 ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो चुका है, जो अमेरिका की आर्थिक स्थिरता के लिए खतरे की घंटी मानी जा रही है।
37 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज, सालाना घाटा 2 ट्रिलियन
कांग्रेस के बजट कार्यालय (CBO) के अनुसार, यदि वर्तमान हालात में कोई बड़ा सुधार नहीं किया गया, तो साल 2055 तक अमेरिका का कर्ज GDP के 156% तक पहुंच सकता है। अभी की स्थिति में ही अमेरिका को सालाना करीब 2 ट्रिलियन डॉलर का घाटा झेलना पड़ रहा है, जो कर्ज को और अधिक बढ़ा रहा है।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि टैक्स से हो रही कमाई का लगभग 25% हिस्सा सिर्फ ब्याज चुकाने में जा रहा है, जिससे अमेरिका सामाजिक सुरक्षा (Social Security), मेडिकेयर और डिफेंस जैसे अहम क्षेत्रों पर खर्च घटाने को मजबूर हो सकता है।
इकोनॉमिस्ट्स ने दी चेतावनी
आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि कर्ज के बढ़ते बोझ से निजी निवेश (Private Investment) प्रभावित हो सकता है, क्योंकि सरकार ज्यादा कर्ज लेने लगेगी और ब्याज दरें बढ़ने की आशंका रहेगी। इससे अमेरिका में उधारी महंगी हो सकती है और आम नागरिकों की आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ेगा।
अर्थशास्त्री गुंथर ईगलमैन ने भी इस संबंध में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा:
” Just surpassed $37,000,000,000,000.00 in debt.
Something has to change.”
क्या डॉलर भी हो सकता है कमजोर?
कर्ज की वजह से अब एक और चिंता सामने आ रही है — डॉलर की गिरावट। विशेषज्ञों के मुताबिक यदि अमेरिका ने अपनी कर्ज नीति में सुधार नहीं किया, तो डॉलर की अंतरराष्ट्रीय साख पर असर पड़ सकता है।
हालांकि राहत की बात यह है कि अमेरिका की GDP अब भी बढ़ रही है, लेकिन ग्रोथ रेट बेहद धीमा है। वर्ष 2025 के लिए GDP वृद्धि दर महज 1.4% से 1.6% के बीच अनुमानित की गई है।
डोनाल्ड ट्रंप की सरकार भले ही ईरान-इजरायल संघर्ष में एक निर्णायक भूमिका निभाने की दिशा में बढ़ रही हो, लेकिन अमेरिका का भीतरू आर्थिक संकट उसे कमजोर कर सकता है।
यदि अमेरिका ने जल्द राजकोषीय अनुशासन नहीं अपनाया, तो कर्ज की यह रफ्तार एक दिन पूरे आर्थिक सिस्टम को खतरे में डाल सकती है।