जुबिली स्पेशल डेस्क
‘वोट अधिकार यात्रा’ की शुरुआत पर सासाराम में हुए कार्यक्रम में वीआईपी सुप्रीमो मुकेश सहनी का बदला हुआ तेवर साफ दिखाई दिया।
मंच से उन्होंने विपक्ष की एकजुटता से भाजपा को सबक सिखाने की बात तो दोहराई, लेकिन हैरानी की बात रही कि इस बार उन्होंने तेजस्वी यादव और लालू प्रसाद यादव का नाम लेने से परहेज़ किया।
न तेजस्वी का गुणगान, न ही उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की अपील—जैसा वे महागठबंधन की सभाओं में अक्सर करते रहे हैं। यही नहीं, उन्होंने खुद को डिप्टी सीएम के तौर पर पेश करने की लाइन भी छोड़ दी।
महागठबंधन में बढ़ती खींचतान
बिहार की राजनीति में इस समय कई स्तरों पर टकराव दिखाई दे रहा है। VIP की 60 सीटों की मांग महागठबंधन के लिए बड़ी मुश्किल बन चुकी है।
सहनी का दावा है कि वे निषाद समाज (12-13% वोट) का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए उनकी हिस्सेदारी बड़ी होनी चाहिए।साथ ही, सहनी ने उपमुख्यमंत्री पद पर भी दावेदारी ठोक दी है। वे कहते हैं कि अति पिछड़ा वर्ग (37% आबादी) को नेतृत्व देने के लिए उनकी भूमिका ज़रूरी है। उधर, कांग्रेस भी सीटों में कटौती को तैयार नहीं है। पिछली बार की 70 सीटें बनाए रखना चाहती है।

RJD बैकफुट पर
महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी RJD चाहती है कि तेजस्वी यादव को ही सीएम चेहरा घोषित किया जाए। लेकिन सहनी की ज़िद और कांग्रेस की रणनीति ने पार्टी को मुश्किल में डाल दिया है। RJD नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने तो सहनी की डिप्टी सीएम की दावेदारी को सिरे से खारिज कर दिया। यही वजह है कि सहनी ने मंच से तेजस्वी का नाम तक नहीं लिया।
NDA की ओर झुकाव?
सियासी गलियारों में चर्चा है कि सहनी एक बार फिर NDA की ओर रुख कर सकते हैं। पिछली बार भी वे चुनाव से पहले पाला बदल चुके हैं और भाजपा ने उन्हें 11 सीटें देकर अपने पाले में कर लिया था। सूत्र बताते हैं कि इस बार भी उनकी भाजपा नेतृत्व से बातचीत हुई है।
क्या निकल पाएगा रास्ता?
महागठबंधन के सामने चुनौती है कि VIP और कांग्रेस की मांगों के बीच संतुलन कैसे साधा जाए। माना जा रहा है कि सहनी को 20–25 सीटें और कुछ विशेष क्षेत्रों में प्राथमिकता देकर मनाने की कोशिश हो सकती है।
लेकिन डिप्टी सीएम की कुर्सी का सवाल सबसे बड़ी बाधा है। अगर सहनी अलग रास्ता चुनते हैं तो यह RJD और पूरे महागठबंधन के लिए बड़ा झटका साबित होगा।
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