जुबिली न्यूज डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा कि “भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां किसी को भी रहने दिया जाए।” यह टिप्पणी अदालत ने श्रीलंका से भारत आए एक पूर्व एलटीटीई (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) सदस्य की याचिका खारिज करते हुए की। याचिकाकर्ता भारत में स्थायी रूप से रहने की अनुमति मांग रहा था।

कौन है याचिकाकर्ता?
याचिकाकर्ता का नाम सुभास्करण उर्फ जीवन उर्फ राजा उर्फ प्रभा है, जो 2015 में तमिलनाडु में गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने उसे शक के आधार पर पकड़ा था और जांच में सामने आया कि वह एक अवैध रूप से भारत में घुसा हुआ श्रीलंकाई तमिल उग्रवादी है।
कोर्ट की कार्यवाही और सजा
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निचली अदालत ने उसे UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत 10 साल की सजा सुनाई थी।
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2022 में मद्रास हाई कोर्ट ने उसकी सजा को घटाकर 7 साल कर दिया, लेकिन स्पष्ट निर्देश दिया कि सजा पूरी होते ही उसे भारत छोड़कर श्रीलंका लौटना होगा।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका और दलीलें
सुभास्करण ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
उसने कहा कि:
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उसने 2009 के श्रीलंकाई गृह युद्ध में एलटीटीई की तरफ से लड़ाई लड़ी थी।
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अगर वह श्रीलंका लौटा तो उसे गिरफ्तार कर प्रताड़ित किया जाएगा।
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उसकी पत्नी और बेटा भारत में ही हैं और दोनों गंभीर रूप से बीमार हैं, इसलिए उसे यहीं रहने दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस के. सुभाष चंद्रा की पीठ ने याचिकाकर्ता की सभी दलीलों को खारिज करते हुए स्पष्ट किया:”भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां किसी को भी आकर रहने दिया जाए। पहले ही यहां 140 करोड़ की आबादी है।“
अदालत ने यह भी कहा:
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भारत में रहने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को संविधान के तहत प्राप्त है, किसी विदेशी को नहीं।
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याचिकाकर्ता गैरकानूनी तरीके से भारत में आया और उसकी मौजूदगी देश की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकती है।
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सजा पूरी होते ही उसे श्रीलंका वापस भेजा जाएगा, इसमें कोई राहत नहीं दी जाएगी।
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