Tuesday - 16 January 2024 - 7:09 AM

बहुत संकुचित है आर्थिक पैकेज का वास्तविक लाभ

अर्थशास्त्री की राय

योगेश बन्धु

वास्तव इसे “लोकल पर वोकल” की औद्योगिक नीति कहना ज्यादा बेहतर होगा. इस आर्थिक पैकेज में अर्थवयवस्था की आपूर्ति पक्ष का ही ध्यान रखा गया है, जबकि मांग पक्ष जिसे हम आम उपभोक्ता वर्ग, किसान और ग्रामीण भारत कह सकते हैं पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल लॉकडाउन झेल रहे देश की आर्थिक हालत सुधारने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया था. वितमंत्री निर्मला सीतारमण ने आज उस 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज के पहले चरण का ब्योरा देश के सामने पेश किया. इस आर्थिक पैकेज में वित्तमंत्री ने कुल 15 उपायों का एलान किया है. इनमें सबसे अहम 6 उपाय एमएसएमई सेक्टर के लिए है, एक उपाय डिस्काम के लिए, तीन टैक्स से जुड़े उपाय हैं और शेष उपाय रियल एस्टेट सेक्टर और एनबीएफसी के लिए हैं. यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात है कि इसमें बड़े देश के सबसे बड़ी कारपोरेट लाबी वाले बड़े उद्योगों और सेवा क्षेत्र को फिलहाल कुछ खास हाथ नही आया है.

इस आर्थिक पैकेज में ज्यादा जोर सूक्ष्म, लघु और माध्यम उद्योगों के लिए लिक्विडिटी बढ़ाने पर रहा है, जिसके अंतर्गत 100 करोड़ टर्नओवर वाले एमएसएमई को 25 करोड़ तक लोन की सुविधा आफर की गयी है. सरकार इसके लिए फंड ऑफ फंड बनाएगी, जिसका मकसद एमएसएमई के लिए 50,000 करोड़ रुपये की इक्विटी की व्यवस्था करना है. जो एमएसएमई विस्तार करना चाहते हैं उन्हें इस फंड ऑफ फंड से मदद मिलेगी. जो प्रधानमंत्री के “लोकल पर वोकल” या आत्मनिर्भर भारत की नीति को सीधे तौर पर बढ़ावा देगी. इसके लिए एमएसएमई की परिभाषा में भी बदलाव किया जा रहा है. अब एक करोड़ से कम निवेश वाले और 5 करोड़ टर्नओवर वाले को माइक्रो कहा जाएगा, जिसके परिणाम स्वरुप इन उद्योगों का निवेश आकार बड़ा हो जाने पर भी उन्हें कई नीतिगत छूट मिलती रहेगी. हालांकि इसका नुकसान नये निवेशकर्ताओ और बहुत छोटी पूंजी वाले उद्यमियों को होगा जिन्हें अब ज्यादा कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पडेगा. सरकारी खरीद के लिए अब 200 करोड़ रुपये से कम के लिए ग्लोबल टेंडर नहीं होगा, जो सीधे तौर पर एमएसएमई के लिए ज्यादा अनुकूल माहौल बनाएगा, इस प्राविधान पर विदेशी निवेशको को आपत्ति हो सकती है, लेकिन इस समय दुनिया की सभी बड़ी अर्थ व्यवस्थाये “एंटी-ग्लोबलाईजेशन” की नीति का पालन कर रहे हैं. एमएसएमई के लिए ई-मार्केट बेहतर व्यापार अनुकूल माहौल बनाने में सहायक होगा.

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इसके अतिरिक्त बिजली वितरण कंपनियों के लिए 90000 करोड़ रुपये का का प्रावधान किया गया है. रियल एस्टेट कंपनियों की भी मदद लिए अर्बन डेलपमेंट मिनिस्ट्री राज्यों को कंपलिशन और रजिस्ट्रेशन डेट छह महीने के लिए आगे बढ़ाने की एडवायजरी भेजी जा रही रही है. जिससे इन्हें थोड़े समय के लिए राहत मिलेगी. विवाद से विश्वास स्कीम की समय-सीमा बढाकर साल के अंत तक की जा रही है और इनके आयकर के रिफंड जल्द जारी कर दिए जाएंगे. इससे चैरिटेबल ट्रस्ट, नॉन-कॉर्पोरेट बिजनेस आदि को फायदा होगा.

अगर आम आदमी और सामान्य कर्मचारियों की बात की जाए तो, आम करदाताओं को वित्त वर्ष 2019-20 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की समय सीमा बढ़ाकर 30 नवंबर 2020 कर दी गई है, लेकिन इस कदम का वर्त्तमान अथवा भविष्य की जिसका आय पर कोई अनुकूल प्रभाव नही पड़ने वाला है. टीडीएस और टीटीएस रेट में भी 25 फीसदी कटौती का प्रस्ताव है, जिससे 100 रुपये टीडीएस की जगह 75 रुपये ही देना होगा. आंकड़ों के तौर पर तो इससे लोगों के हाथ में 50000 करोड़ रुपये बचेंगे, लेकिन इस उपाय से भी आम आदमी की कुल आय पर किसी तरह का प्रभाव नही पड़ने वाला, हालांकि इससे बाजार में वर्तमान व्यय को बढ़ाने में मदद मिलेगी जो व्यापार और सरकार दोनों के लिए फायदेमंद है. इसके अतिरिक्त सरकार ने और तीन महीने के लिए ईपीओओ में योगदान करने का प्रस्ताव किया है और ईपीएफ में स्टेचुअरी कंट्रिब्यूशन को भी 12 से घटाकर 10 फीसदी किया है, लेकिन केंद्रीय सरकारी उपक्रमों में यह कंट्रिब्यूशन 12 फीसदी ही रहेगा. इससे कर्मचारी और नियोक्ता को फौरी राहत तो मिलेगी, लेकिन उनकी भविष्य निधियों का आकार कम हो जाएगा.

अगर कमजोर वर्ग की बात की जाए तो 30000 करोड़ रुपये की स्पेशल लिक्विडिटी स्कीम का लाभ एमएफआई, एनबीएफसी और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को मिलेगा. इसके 45000 करोड़ लिक्विडिटी की आंशिक ऋण गारंटी योजना भी सरकार शुरू कर रही है. जिसका लाभ सूक्ष्म ऋण लेने वालो ग्रामीण और शहरी लोगों को इसका कुछ लाभ मिल सकता है, लेकिन अभी तक का अनुभव ये बताता है कि इस तरह के प्रावधानों का वास्तविक लाभ अग्रणी बैंकिग वित्त कंपनियों को ज्यादा और आम आदमी को कम ही मिला है.

कोविड-19 के बाद जिस तरह पूरे देश में खासकर गरीब, मजदूर और सामान्य प्रवासियों में जिस तरह अफरा तफरी का माहौल रहा है, उन्हें इन घोषणाओं से निराशा ही हाथ लगी है. जैसा कि पहले ही कहा गया कि यह आर्थिक पैकेज में अर्थव्यवस्था की आपूर्ति पक्ष तक सिमटा है और मांग बढ़ाने वाले आम उपभोक्ता वर्ग, किसान और ग्रामीण भारत की उपेक्षा की गयी है. इसलिए इस आर्थिक पैकेज को फिलहाल बिना संकोच अधूरा कहा जा सकता है.

(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं)

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