Sunday - 7 January 2024 - 2:37 AM

अखिलेश के दावे में कितना दम है

सैय्यद मोहम्मद अब्बास

लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए चुनाव के लिए आज वोटिंग खत्म हो रही है। यूपी में सातवें चरण के लिए मतदान शुरू हो गया है। ऐसे में नई सरकार बनने के लिए उल्टी गिनती भी शुरू हो गई है।

हालांकि दस मार्च को नई सरकार का गठन हो जायेगा लेकिन उससे पहले कई तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। बीजेपी से लेकर सपा अपनी-अपनी जीत के दावे जरूर कर रहे हैं।

अगर समाजवादी पार्टी की बात की जाये तो इस बार अखिलेश यादव को अपनी सरकार बनने की पूरी उम्मीद है और उन्होंने पूरे चुनाव में दमदार तरीके से लड़ा है। 2017 के बाद से अखिलेश यादव ने अपने राजनीतिक जीवन में कई बदलाव किये हैं।

इतना ही नहीं यूपी में सपा की सरकार बनाने के लिए अखिलेश यादव ने इस बार फूंक-फूंक कर कदम रखे हैं। चाहे वो गठबंधन करना हो या फिर टिकट बटवारा करना होगा। सभी में अखिलेश यादव ने सूझबूझ के साथ फैसला लिया है। इसके आलावा अखिलेश यादव ने लम्बे वक्त से नाराज चल रहे अपने चाचा शिवपाल यादव को भी मना लिया लेकिन इस दौरान अपर्णा यादव ने बीजेपी का दामन थाम लिया।

छोटे दलों को मिलाया साथ

अखिलेश यादव ने पिछले चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था लेकिन जनता को ये पसंद नहीं आया था और अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी को जनता ने नाकार दिया था।

ऐसे में अखिलेश यादव ने इस बार किसी भी बड़े दल के साथ नहीं जाने का फैसला किया। इस वजह से अखिलेश यादव ने छोटे-छोटे दलों को अपने साथ लेकर चलने का फैसला किया।

बीजेपी से नाराज चल रही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के साथ अखिलेश यादव ने हाथ मिलाया। माना जाता है कि इस पार्टी का पूर्वांचल अच्छा दखल है। वहीं रालोद के साथ भी गठबंधन किया है। इसके आलावा वोट बैंक के हिसाब से अन्य छोटे-छोटे दलों को साथ लिया है।

जनता तक पहुंचने के लिए कई बड़े वादे कर डाले

जहां एक ओर जनता के दिल में उतरने के लिए प्रियंका गांधी लगातर  वायदों की झड़ी लगा रही थी तो वही अखिलेश यादव ने फ्री बिजली व पेंशन बहाली  जैसे वादे कर अन्य पार्टियों पर अच्छा खासा दबाव बना डाला। इतना ही नहीं अखिलेश यादव ने अपने घोषणा पत्र में कई लोकलुभावन वायदों की लम्बी लिस्ट है जो उनको चुनाव में मदद कर सकती है।

विवादों से दूर रहने की कोशिश

पूरे चुनाव में देखा जाये तो अखिलेश यादव का पूरा फोकस यूपी रहा है और उनका टारगेट केवल योगी रहे हैं। हालांकि इस दौरान जिन्ना प्रकरण की वजह से उनपर बीजेपी ने सख्त प्रहार किया था लेकिन इसके बाद अखिलेश यादव ने बेहद संभलकर राजनीति की है और कई विवादित मुद्दो पर बयान देने से बचते रहे हैं।

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