Tuesday - 30 January 2024 - 9:53 PM

सोरेन भी लालू के दिखाए रास्ते पर तो नहीं चल रहे हैं?

रांची। जमीन घोटाले को लेकर प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई लगातार झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर शिकंजा कसती हुई नजर आ रही है। हेमंत सोरेन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।

उनसे पूछताछ के लिए ईडी उनके घर पहुंच गई लेकिन वहां से पहले ही निकल गए। दिल्ली वाले घर पर ईडी की टीम दो दिन से उनकी ताक में लगी रही है लेकिन हेमंत सोरेन रांची पहुंच गए।

दरअसल बीजेपी ने कहा था कि हेमंत सोरेन पूछताछ से बचने के लिए वो लापता है लेकिन रांची में वो सीएम हाउस में सत्ता पक्ष के साथ अहम बैठक की और इस बैठक में उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की मौजूद थीं।

इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था कि उनकी पत्नी किसी बैठक में शामिल हुई लेकिन माना जा रहा है कि अगर हेमंत सोरेन को जमीन घोटाले में जेल जाने की नौबत आई, तो उनकी पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम की कुर्सी सौंपी जा सकती है। ये ऐसा ही होगा जैसे बरसो पहले लालू यादव ने किया था जब 26 साल पहले इसी तरह की मीटिंग में राबड़ी देवी को देखा गया था।

बता दें कि चारा घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण इस्तीफा देने के लिए मजबूर होने के बाद राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू यादव ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया था। ऐसे में कहा जा रहा है कि हेमंत सोरेन भी ऐसा ही कुछ कर सकते हैं और अपनी पत्नी की ताजपोशी करा सकते हैं।

इस मॉडल के तहत जिस तरह से लालू चारा घोटाले में नाम आने के बाद उनको जेल जाना पड़़ा था तब उन्होंने बेहद चालाकी से सत्ता अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दी थी।

इसी तरह चाहे तो हेमंत सोरेन अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री पद पर काबिज करा सकते हैं। इतना ही नहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन का विकल्प भी मौजूद हैं लेकिन ये आसान नहीं होगा क्योंकि शिबू सोरेन अब सक्रिय राजनीति में नहीं। दरअसल उनकी उम्र और स्वास्थ्य इसमें बड़ा रोड़ा है। कहा जा रहा है कि हेमंत सोरेन के पास ‘लालू मॉडल’ का खुला रास्ता है जो अपनाते हुए अपनी पत्नी को सीएम बना सकते हैं।

हेमंत सोरेन चाहे तो महागठबंधन सहयोगी कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष वाला फॉर्मूला भी अपना सकते हैं। इसके तहत हेमंत सोरेन को इस्तीफे के बाद महागठबंधन के विधायक उन्हें अपना नेता चुन सकते हैं।

इसके बाद सोरेन को एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी होगी और छह महीने के भीतर विधानसभा की सदस्यता लेनी होगी। बता दें कि 2006 में यूपीए-1 की सरकार के समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का आरोप लगा था। इसके बाद उनको रायबरेली सांसद पद छोडऩा पड़ा था लेकिन फिर से चुनाव लडक़र संसद पहुंच गई थी।

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