Sunday - 15 June 2025 - 5:03 PM

प्रशासन में सचिवों का बार-बार तबादला

शोक कुमार

“प्रशासन में सचिवों का बार-बार तबादला” एक ऐसा मुद्दा है जिस पर अक्सर बहस होती रहती है, खासकर जब इसका असर नीति निर्माण और कार्यान्वयन पर पड़ता है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढाँचे और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में देखा जा सकता है।

प्रशासनिक स्थिरता का महत्व

यह समझना ज़रूरी है कि किसी भी नीति को सफल बनाने के लिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण और निरंतरता बहुत महत्वपूर्ण होती है।

जब शीर्ष अधिकारी, जैसे कि सचिव, बार-बार बदलते हैं, तो हर नए व्यक्ति की अपनी प्राथमिकताएँ और कार्यशैली होती है। इससे पिछली योजनाओं को बीच में ही छोड़ दिया जा सकता है, या उनमें लगातार बदलाव किए जा सकते हैं, जिससे कोई भी नीति कभी भी अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुँच पाती।

प्रभाव

संस्थागत स्मृति का नुकसान: लगातार तबादलों से विभाग की संस्थागत स्मृति कमजोर होती है। नए अधिकारी को पिछली सफलताओं और विफलताओं को समझने में समय लगता है।

विश्वास और समन्वय में कमी: नीति निर्माण में विभिन्न हितधारकों (मंत्रालयों, विशेषज्ञों, ज़मीनी कार्यकर्ताओं) के साथ समन्वय ज़रूरी होता है। जब नेतृत्व लगातार बदलता है, तो इन संबंधों को स्थापित करने और विश्वास बनाने में बाधा आती है।

कार्यान्वयन में बाधा: नीतियों को ज़मीन पर उतारने के लिए एक स्पष्ट रोडमैप और निरंतर निगरानी की आवश्यकता होती है। नेतृत्व बदलने से कार्यान्वयन की गति और दिशा प्रभावित हो सकती है।

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जवाबदेही का निर्धारण मुश्किल: जब कोई अधिकारी लंबे समय तक एक परियोजना का हिस्सा नहीं रहता, तो उसकी जवाबदेही तय करना मुश्किल हो जाता है।

समाधान की आवश्यकता

सरकार अक्सर प्रशासनिक दक्षता और लचीलेपन के नाम पर तबादलों को ज़रूरी मानती है। हालाँकि, यह महत्वपूर्ण है कि स्थिरता और निरंतरता के बीच एक संतुलन स्थापित किया जाए।

इस समस्या का समाधान केवल प्रशासनिक बदलावों से नहीं, बल्कि व्यापक नीतिगत सुधारों से हो सकता है। इसमें अधिकारियों के कार्यकाल को एक निश्चित अवधि के लिए तय करना और उन्हें पर्याप्त समय देना शामिल हो सकता है ताकि वे अपने विभागों में सुधार ला सकें और नीतियों को सफलतापूर्वक लागू कर सकें।

यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर गंभीरता से विचार-विमर्श की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रशासनिक निर्णय देश के विकास और नीतिगत लक्ष्यों में बाधा न बनें।

सरकार प्रत्यक्ष रूप से इस मुद्दे पर कोई ठोस नीतिगत बयान नहीं देती है, लेकिन यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर शिक्षा विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं द्वारा लगातार बहस की जाती है। स्थिरता निश्चित रूप से एक अच्छी नीति के निर्माण और सफल कार्यान्वयन के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है। सरकार को प्रशासनिक आवश्यकताओं और स्थिरता के बीच एक संतुलन खोजने की आवश्यकता है ताकि शिक्षा क्षेत्र को इसका अधिकतम लाभ मिल सके। यह संभव है कि सरकार आंतरिक रूप से इस पर विचार करती हो, लेकिन प्रशासनिक दक्षता और लचीलेपन को भी उतना ही महत्वपूर्ण मानती हो। स्थिरता के बिना एक सुदृढ़ नीति का निर्माण और उसे सफलतापूर्वक लागू करना लगभग असंभव है। यह सिर्फ शिक्षा नीति पर ही नहीं, बल्कि किसी भी क्षेत्र की नीति पर लागू होता है।

संक्षेप में, स्थिरता केवल नीति के सफल कार्यान्वयन के लिए ही नहीं, बल्कि उसके कुशल और प्रभावी निर्माण के लिए भी एक पूर्व शर्त है। जब तक शीर्ष पदों पर पर्याप्त स्थिरता नहीं होगी, तब तक न तो दूरगामी और प्रभावी नीतियां बन पाएंगी और न ही उन्हें जमीन पर सफलतापूर्वक उतारा जा सकेगा।

सरकार को इस पहलू पर गंभीरता से विचार करना चाहिए ताकि शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में वास्तविक और स्थायी सुधार लाए जा सकें।

क्या आप मानते हैं कि इस समस्या का समाधान केवल प्रशासनिक बदलावों से हो सकता है, या इसके लिए व्यापक नीतिगत सुधारों की भी आवश्यकता है?

(लेखक, कानपुर एवं गोरखपुर विश्वविद्यालयों के पूर्व कुलपति तथा राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के पूर्व विभागाध्यक्ष हैं।)”

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